यूरेनियम श्(Uranium) आवर्त सारणी की एक अंतर्वर्ती श्रेणी, ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series),का तृतीय तत्व है। इस श्रेणी में आंतरिक इलेक्ट्रॉनीय परिकक्षा (५ परिकक्षा) के इलेक्ट्रॉन स्थान लेते हैं। प्रकृति में पाए गए तत्वों में यह सबसे गुरू तत्व है। कुछ समय पहले तक इस तत्व को छठे अंतर्वर्ती समूह का अंतिम तत्व माना जाता था। यूरेनियम के समस्थानिक और इनकी अर्धजीवन अवधियाँ निम्नांकित हैं:
समस्थानिक अर्धजीवन अवधिश्श् मुक्त कण स्रोत
यूरेनियम २३८ ४.५१x१०९ वर्ष ऐल्फा कण प्राकृतिक
यूरेनियम २३५ ७.०७x१०९ वर्ष ऐल्फा कण प्राकृतिक
यूरेनियम २३४ २.३५x१०५श् वर्ष ऐल्फा कण प्राकृतिक
यूरेनियम २३९ २३मिनट बीटा कण कृत्रिम
यूरेनियम २३७ ६.८दिन बीटा कण कृत्रिम
यूरेनियम २३३ १.६२x१०५ वर्ष ऐल्फा कण कृत्रिम
यूरेनियम २३२ ७० वर्ष ऐल्फा कण कृत्रिम
यूरेनियम २३१ ४.२ दिन के इलेक्ट्रॉन ग्रहणश्श् कृत्रिम
यूरेनियम २३० २०.८ दिन ऐल्फा कण कृत्रिम
यूरेनियम २२९ ५८ मिनट के इलेक्ट्रॉन ग्रहणश् कृत्रिम
यूरेनियम २२८ ९.३ मिनट ऐल्फा कण कृत्रिम
प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त यूरेनियम में २३८ समस्थानिक ९९.२८ प्रतिशत, २३५ समस्थानिक ०.७१ प्रतिशत और २३४ समस्थानिक ०.००६ उपस्थित रहते हैं।
इतिहास- यूरेनियम तत्व की खोज १७८९ ई० में क्लाप्रोट (Klaproth) द्वारा पिचब्लेंड नामक अयस्क से हुई। उसने नए तत्व का नाम कुछ वर्ष पहले ज्ञात यूरेनस ग्रह के आधार पर यूरेनियम रखा। इस खोज के ५२ वर्ष पश्चात् पेलीगाट ने १८४१ ई० में यह प्रदर्शित किया कि क्लाप्रोट द्वारा खोजा गया पदार्थ यूरेनियम टेट्राक्लोराइड के पोटैशियम (K) द्वारा अपचयन से यूरेनियम धातु तैयार की।
१८९६ ई० में हेनरी बेक्वरेल ने यूरेनियम में रेडियों ऐक्टिवता की खोज की। उसके अनुसंधानों से ज्ञात हुआ कि यह गुण यूरेनियम के सब यौगिकों में तथा कुछ अन्य अयस्कों में भी वर्तमान है। इन निरीक्षणें के फलस्वरूप ही पिचब्लेंड अयस्क से रेडियम की ऐतिहासिक खोज संभव हो सकी थी।
उपस्थिति- यूरेनियम पृथ्वी की संपूर्ण ऊपरी सतह पर फैला है। ऐसा अनुमान है कि पृथ्वी की पपड़ी में यूरेनियम की मात्रा लगभग १०१४ टन है। इस प्रकार इसकी मात्रा लगभग १ ग्राम शैल में ४x१०-६ होगी। इसकी मात्रा अम्लीय शैल (जैसे ग्रैनाइट) में अधिक और क्षारीय शैल (जैसे बेसाल्ट) में कम रहती है। समुद्री जल में भी यूरेनियम उपस्थित है, यद्यपि समुद्री जल में इसकी मात्रा शैल में उपस्थित मात्रा का १/२०००वाँ भाग है। इतने विस्तार से फैले होने के पश्चात् भी इसके केवल दो मुख्य अयस्क ज्ञात हैं, एक पिचब्लेंड और दूसरा कॉर्नोटाइट। पिचब्लेंड गहरे नीले काले रंग का अयसक है, जिसमें यूरेनियम ऑक्साइड, यू३ औ७ (u3 o3), उपस्थित रहता है। कॉर्नोटाइट मुख्यत: पोटैशियम और यूरेनियम का जब्लि वैनेडेट, पोयू२ बै औ १२.३ हा२औ (k2 u2 v2 o12, 3H2 o) ज्ञात होता है। पिचब्लैंड अयस्क के मुख्य निक्षेप कांगों, अफ्रीका तथा कैनाडा में हैं। इनके अतिरिक्त चेकोस्लोवाकिया, ऑस्ट्रेलिया अमरीका, पूर्वी अफ्रीका, इंग्लैंड में भी यह अयस्क मिलता है। कॉर्नोटाइट अमरीका तथा ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। भारत के बिहार प्रदेश में यूरेनियम के अयस्कों की खोज हुई है।
यूरेनिययम अयस्क पर अम्ल द्वारा अभिक्रिया करने से यूरेनियम घुल जाता है। तत्पश्चात् सोडियम कार्बोनेट तथा अन्य यौगिकों की अभिक्रिया से अशुद्धियाँ दूर की जाती हैं। अंत में यूरेनियम ऑक्साइड, यू३ औ८ (u3 o3) बनता है। ऑक्साइड का कार्बन द्वारा भट्टी में अपचयन हो सकता है। इस प्रकार प्राप्त धातु द्वारा यूरेनियम फ्लोराइड के उपचयन से प्राप्त होता है।
गुणधर्म- यूरेनियम चमकदार श्वेत रंग की धातु है। इसका संकेत यू (u), परमाणु संख्या ९२, परमाणु भार २३८.०३, गलनांक १,१३०� सें०, क्वथनांक अनुमानित ३,५००� सें०, घनत्व १९.०५ ग्राम प्रति घन सेंमी०, विद्युत् प्रतिरोधकता ३२.७६x१०९ ओहम् सेंमी० तथा क्रिस्टल संरचना त्रिद्कि पार्श्व, कमरे के ताप पर।
यूरेनियम सक्रिय तत्व है। पूर्ण अवस्था में यह स्वत: वायु में जल सकता है। इसके द्वारा जल का विघटन होकर हाइड्रोजन मुक्त होता है। यह ऑक्सीजन से १९०� सें, क्लोरीन से १८०�सें०, ब्रोमीन से २१०� सें०, आयोडीन से २६०�सें और हाईड्रोजन से २५०� सें० पर क्रिया कर यौगिक बनाता है। इनके अतिरिक्त यूरेनियम नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं अनेक गैसों से अभिक्रिया करता है। अम्लों से क्रिया कर यूरेनियम के त्रिसंयोंजक एवं चतुस्संयोजक यौगिक बनते हैं तथा हाइड्रोजन मुक्त होती है।
यूरेनियम की ५ संयोजकताएँ हैं। इसकी मुख्य संयोजकताएँ ४ और ६ हैं। यूरेनियम के लवण बड़ी सरलता से जटिल आयन बनाते हैं। यौगिक- इसके निम्नलिखित यौगिक हैं:
यूरेनियम औक्साइड यूरेनियम के पाँच औक्साइड ज्ञात हैं।
यदि किसी यूरेनियम औक्साइड का ७००� सें० ताप पर वायु में दहन किया जाय तो यू३ औ८ (U3 O3) बनता है। यूरेनिल नाइट्रेट के ३००� सें० पर ऊष्मा विघटन से यू औ३ (UO3) का निर्माण होगा। यू औ३ (UO3) के अनेक क्रिस्टलीय रूपांतरण (crystal modifications) हैं। सकइ ५००� सें० ताप पर यू औ३ (UO3) का हाइड्रोजन द्वारा अपचयन किया जाय, तो यू औ२ (UO2) बन जायगा। यूरेनियम के समस्त ऑक्साइड नाइट्रिक अम्ल में घुलकर यूरेनिल नाइट्रेट बनाते हैं।
यूरेनिययम हाइड्राइड- यूरेनियम धातु हाइड्रोजन से लगभग २५०� सें० ताप पर क्रिया कर यूरेनियम हाइड्राइउ, यू हा३ श्(UH3), बनाता है। अधिक ताप पर इस हाइड्राइड, का विघटन हो जाता है। यूरेनियम हाइड्राइड के उच्च ताप पर विघटन से चूर्ण यूरेनियम प्राप्त होता है। इस कारण इस हाइड्राइड द्वारा क्रियाशील यूरेनियम चूर्ण बनाया जाता है।
यूरेनियम कार्बाइड- यूरेनियम के दो कार्बाइड ज्ञात हैं। ये कार्बन और द्रव यूरेनियम की अभिक्रिया द्वारा बनाए जाते हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड और यूरेनियम धातु की उच्च ताप पर अभिक्रिया द्वारा भी यह बन सकते हैं।
यूरेनियम नाईट्राइड- नाइट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया कर यूरेनियम अनेक यौगिक बनाता है, जिनमें सबसे सरल यूरेनियम मोनोनाइट्राइड, यू ना (UN)है।
यूरेनियम हैलाइड- यूरेनियम अनेक हैलाइड बनाता है। इसके सात फ्लोराइड, चार क्लोराइड, दो ब्रोमाइड और दो आयोडाइड ज्ञात हैं।
यूरेनियम के अन्य हैलाइड यौगिक तत्वों की अभिक्रिया, अथवा हाइड्राइड पर हेलोजन अम्ल की क्रिया, द्वारा बनाए जा सकते हैं।
उपयोग- नाभिक ऊर्जा युग के पहले यूरेनियम के अधिक उपयोग न थे। इसका उपयोग कुछ विशेष प्रकार के तंतुओं में होता था। इसके लवण रेशम को रंगने का कार्य करते हैं। सोडियम डाइयूरेनेट का उपयोग पोर्सलीन के बरतनों को रंगने में हुआ है।
परमाणु ऊर्जा प्रयोगों के कारण यूरेनियम अत्यधिक उपयोगी तत्व हो गया है। इसका उपयोग नाभिक श्रंखला प्रतिक्रिया में हुआ है। इस क्रिया में २३५ भार संख्या वाला समस्थानिक उपयोगी सिद्ध हुआ है। अनियंत्रित अवस्था में इस क्रिया द्वारा भयंकर विस्फोट हो सकता है, जैसा कि परमाणु बमों में हुआ है, परंतु नियंत्रित रूप में आता है। कुछ रिऐक्टर (atomic reactor) चलाने के काम आता है। कुछ रिऐक्टरों में साधारण यूरेनियम (जिसमें २३५ समस्थानिक ०.७१ प्रतिशत हो) उपयोग में लाया जाता है, परंतु अनेक रिऐक्टरों में समृद्ध यूरेनियम (enriched uranium) काम में लाते हैं। इसमें २३५ समस्थानिक का प्रतिशत बढ़ा देते हैं। इन क्रियाओं में यूरेनियम नाभिक के न्यूट्रॉन का आक्रमण द्वारा विखंडन (fission) हो जाता हैश् और न्यूट्रॉन भी मुक्त होते है, जिनसे श्रृखंला चलती है।
१२यूरेनियम२३५ + न्यूट्रॉन � विखंडित पदार्थ + न्यूटॉन + ऊर्जा साथ में उपस्थित यूरेनियम २३८ समस्थानिक पर न्यट्रॉन प्रतिक्रिया द्वारा एक नया तत्व प्लूटोनियम, प्लू (Pu), बनता है, जिसमें यूरेनियम २३५ वाले खंडनीय गुण वर्तमान हैं।
१२यूरेनियम२३८ + न्यूटॉन � १२यूरेनियम२३९ �नेपच्थूनियम२३९
�
९४ प्लूटोनियम२३९
इस प्रकार २३८ समस्थानिक भी ऊर्जाशीलश् पदार्थ में परिवर्तित हो सकता है।
अब यह भी ज्ञात है कि अति उच्च ताप पर तीव्र नयूट्रॉनों के आक्रमण द्वारा यूरेनियम २३८ समस्थानिक का भी खंडन हो सकता है। इस क्रिया का उपयोग आजकल अनेक कथित तापनाभिकीय (thermonuclear) बमों में हुआ है।श्श् [रमेशचंद्र कपूर]