युनुस एमरा (सन् १२४९-१३२१ ई.) तुर्की का एक प्रसिद्ध सूफी कवि। इसका जन्म तुर्की में सारीकूवे नामक कस्बे में हुआ था, जो एसकी शहर के पास स्थित है। अपने आरंभिक जीवनकाल में वह साधरण किसान था और खेती बारी करता था किंतु उसे तसव्वकुफ़ (सूफी भावना) से प्रेम हो गया तथा तुर्की के प्रसिद्ध सूफी हाजी बेक्ताश ओर तापतूक एमरा के सत्संग से वह पक्का सूफी बन गया। एशियाई कीवचक्र, शाम, आजुर बाईजान आदि के यात्राकाल में उसकी भेंट मौलाना जलालुद्दीन रूमी से भी हुई, जो मौलवी परंपरा का प्रवर्तक था। वह हज्ज की इच्छा से मक्का भी गया। यूनुस एमरा तुर्की के हर स्तर के लोगों में प्रिय हैं। इस पर भी उसके जीवनवृत्त संबंधी बहुत सी बातों का अनुसंधान होना अभी बाकी है। तुर्की प्रजातंत्र में लगभग १० कब्रें ऐसी हैं जो युनूस एमरा संबंध कही जाती है अभी तक निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि इनमें कौन वस्तुत: उसकी है, यद्यपि कुछ तुर्क अन्वेषकों का कहना है कि उसकी वास्तविक कब्र उसी स्थान पर है जहाँ वह पैदा हुआ था।

युनुस एमरा का परिणान तुर्की भाषा के उच्च कोटि के कवियों में होता है। नई खोजों ने प्रमाणित कर दिया है कि उसने नियमित रूप से शिक्षा प्राप्त की थी। उसके शेरों से भी स्पष्ट पता चलता है कि वह न केवल कुरा, हदीस, तफसीर (व्याख्या) तथा फिल्सफा (तत्वज्ञान) का विद्वान और अरबी तथा तुकीं का पंडित था प्रत्युत यूनान विद्याओं तथा गुणों का भी ज्ञाता था। उसी प्रभाव से उसने एक मसनवी रिसालतुन्नुस्हिय: और बहुत सी गजलें अरबी तथा फारसी शब्दों का प्रयोग किया है। यों उसके दीवान का विशेषांक लोकगीतों के बहरे हिजाई पर आधारित है जो ईरानी प्रभाव के कारण तुर्की काव्यद्वोत्र से एक बड़ी सीमा तक उठ गई थी। बहरे हिजाई के साथ ही साथ उसने अपनी कविता में भाषा भी बोलचाल की ही प्रयुक्त की है। इस प्रकार उसका कौशल हर दृष्टि से जनसाधारण का रहा है और शुद्ध तुकी कौशल है। तुर्की में यूनुस एमरा ही के शेरों के कारण जनसाधारण की भाषा के प्रयोग तथा हिजाई बाहर में कविता लिखने की प्रथा चल पड़ी ओर उन विभिन्न परंपराओं के सूफियों तथा प्रसिद्ध कवियों ने, जो बाद की शतियों में एशियाई कोचक में पैदा हुए, युनुस एमरा ही की शैली पर लोककविताएँ की, जिसमें वे जनसाधरण पर अपना प्रभाव डाल सकें।

सं.ग्र.-ए हिस्ट्री ऑव औटोमन पोएट्री-गिब कृत, युनुस एमरा-ए गोलपेनार्व (इस्तंबोल, १९५४)। (नज़ीर अक़मल अय्यूबी]