यूखारिस्ट ईसा ने अपने दु:खभोग और मृत्यु के ठीक पहले अपने पट्टशिष्यों के साथ भोजन किया था। यह घटना 'अंतिम भोज' के नाम से प्रसिद्ध है। उसी अवसर पर परमप्रसाद संस्कार का नाम यूखारिस्ट (अर्थात् धन्यवाद) रखा गया क्योंकि ईसा ने उस समय यहूदी पास्का पर्व (दे० पुनरूत्थान) की रीति के अनूसार ईश्वर को धन्यवाद की प्रार्थना अर्पित की थी। संत लूकस के सुसमाचार में परमप्रसाद संस्कार की स्थापना का वर्णन इस प्रकार है- तब उन्होंने रोटी ली और धन्यवाद की प्रार्थना करने के बाद उसे तोड़ाश् और यह कहते हुए शिष्यों को दिया: 'यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे लिये दिया जा रहा है, यह मेरी स्मृति में किया करो।' भोजन के बाद उन्होंने ऐसा ही किया और कहा: 'यह कटोरा मेरे रक्त का नूतन विधान है, यह तुम्हारे लिये अर्पित किया जा रहा है।' इस प्रकार ईसा ने रोटी तथा कटोरे की अँगूरी (wine) को अपने शरीर तथा रक्त में बदलकर अपने शिष्यों को प्रसाद के रूप में दिया था और उस कृत्य को अपनी स्मृति में दुहराने का आदेश दिया था। प्रभु के इस आदेश के पालन ने प्रारंभ ही से ईसाइयों की मुख्य तथा केंद्रीय धर्मक्रिया का रूप धारण कर लिया। अंतिम भोज के समय ईसा ने जो किया था, उसे पूरोहित इस धर्मक्रिया में दोहराते हैं। और अंत में यह विश्वासियों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है [दे० यज्ञ०]।
अधिकांश ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा ने अंतिम भोज के समय अपने शिष्यों को सचमुच में अपना शरीर तथा रक्त, रोटी तथा अंगूरी के रूप में दे दिया था और जब विधिवत् अभिषिक्त पुरोहित धर्मक्रिया में ईसा के उपर्युक्त शब्द दोहराते हैं तब ईसा सचमुच परमप्रसाद में विद्यमान हो जाते हैं। इस विश्वास को रियल प्रेजेंस अर्थात् वास्तविक उपस्थिति कहते हैं।
ईसा के उपस्थित हो जाने की प्रक्रिया के विषय में सर्वप्रचलित धारणा यह है कि रोटी का तत्वपरिवर्तन होता है, रोटी का रूप रंग पूर्ववत्श् रहते हुए भी इसका तत्व बदल जाता है और मनुष्यत्व एवं ईश्वरत्व से समन्वित ईसा का पूर्ण व्यक्तित्व विद्यमान हो जाता है। १२वीं शताब्दी ई० में ही ईसाई धर्मपंडितों ने पहले पहल ट्रैंससबस्टैंशिएशन (तत्वपरिवर्तन) शब्द का प्रयोग किया था ओर सन् १२१५ ई० में रोमन काथलिक चर्च ने तत्वपरिवर्तन को धर्मसिद्धांत के रूप में घोषित किया था।
प्रोटेस्टैंट घर्मपंडित यूखारिस्ट में ईसा की उपस्थिति के विषय में एकमत नहीं हैं। लूथर और उनके अधिकांश अनुयायी मानते हैं कि रोटी में तत्वपरिवर्तन नही होता किंतु रोटी के साथ ईसा भी वास्तव में विद्यमान हैं, इस मत को कॉसबस्टैंशिएशन (सह-तत्व-वाद) कहते हैं। ज्विंग्ली (Zwingly) की धारणा थी कि यूखरिस्ट में ईसा की उपस्थिति प्रतीकात्मक मात्र है। कैलविन सिखनाते थे कि यूखारिस्ट में अनुष्ठान के समय विष्वासीगण आध्यात्मिक रूप में स्वर्ग में विद्यमान ईसा से संयुक्त हो जाते हैं। इस प्रकार ईसाई संप्रदायों में यूखारिस्ट संबंधी मतों की विभिन्नता ईसाई एकता के आंदोलीन के लिये एक जटिल समस्या उपस्थित करती है।
सं० गं०- जे० ए० यंगमीन। दि यूखारिस्टिक प्रेयर, लंदन १९५६। [कामिल बुल्के]