यूइची मध्य एशिया तथा चीन के विस्तृत क्षेत्र में जिन खूँखार जातियों ने एक दूसरे को हराकर राजनीतिक उथल पुथल कर दी थी उनमें यूइची उल्लेखनीय हैं । ईसवी पूर्व द्वितीय शताब्दी में इसके हिउंग नु तथा वु सुन के साथ संघर्ष का विवरण चीनी स्त्रोतों में मिलता हैं । वहाँ के कई ग्रन्थों में यूवची के अन्य जातियों के साथ संघर्ष तथा अपने निवासस्थान को छोड़ पश्चिमी क्षैत्र की ओर बढने और राज्य स्थापित करने का उल्लेख हैं । इनसे मुलतया यह प्रतीत होता हैं कि लगभग ईसा पूर्व १७६ में हिउंग नु के शासक माओ तनु ने चीन सम्राट को एक संदेंश भेजा कि उसने यूवची को हटाकर तुनू हुआंग तथा कि लिएन के बीच के क्षेत्र में खदेड़ दिया हैं । यूवची पश्चिम की ओर बढते हुए साइवंग (शको) के क्षेत्र में पहुँचे और उनको वहाँ से हटा दिया । बाद में यूवची जाति को वसुन के आक्रमण के कारण उस क्षेत्र को स्वय छोड़ना पड़ा । उसके बाद वे याहिया की और बढ़े । ई० पू० १२६ में चीनी राजदूत चांग किएन ने यूवची की जाति को अक्षु नदी के उतर में पाया । यूवची की मुख्य शाखा ने आगे चलकर पुन: शको को हराया और कपिश पर अधिकार कर लिया । इसी समय से यूवची जाति का ऐतिहासिक संबंध भारत से भी आरम्भ होता हैं । कहा जाता हैं,यूवची जाति के पाँच कबीलों में बँट गई और उनमें कुइ शुआंग अथवा कुशान-कुषाण जाति के कियुल कथफिस कजकुल कैडाफिसिज ने अन्य और जातिओं को हटाकर अपनी शक्ति संगठित की, काबुल की और यूनानीयों का अंत कर वहाँ का शासक बन बैठा।

इसके विपक्ष में कुछ विद्वान् यूइची तथा कुषाण वंश में कोई संबंध नहीं पाते। उनका कथन है कि कुषाण वास्तव में शक जातिश् के ही एक अंग थे और यूइची ने जब शकों को हराया तो इसी वंश के कुछ प्रमुख सरदार यूइची में मिल गए। बाद के चीनी इतिहासकारों ने इन दोनों जातियों की पृथकता नहीं समझी। कुषाणों के अतिरिक्त चार और जातियों (यवगुओं) ने यूइची आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। वास्तव में यूइची का हिउंगनु तथा नुसुन नामक उन जातियों के साथ संघर्ष तथा एक का दूसरे के प्रति रक्तपिपासु होना कुजुल कैडफसिज़ की अपने 'सत्यधर्म प्रवर्तक' उपाधि ग्रहण करने के साथ उचित प्रतीत नहीं होता। हूणों सहित मध्य एशिया से सबश् जातियाँ अअनी बर्बरता के लिये प्राचीन इतिहास में प्रसिद्ध हैं। इनके विपक्ष में शक कुषाणों की धार्मिक प्रवृत्तियों तथा सहनशीलता का परिचय लेखों तथा सिक्कों से होता है। प्रसिद्ध कुषण सम्राट् कनिष्क छोटी यूइची जाति का था और उसने उत्तरी भारत पर आक्रमण किया तथा पाटलिपुत्र तक पहुँचा। यद्यपि इस शासक का साम्राज्य उत्तरी भारत में वाराणसी तक अवश्य फैला था, तथापि उसके यइची होने में संदेह है।

सं०ग्रं - मानशेन हेल्केन - 'दि यूची प्राब्लम- री-एकज़ा-मिंड, जे०ओ०ए० १९४५; स्टेन कनो-' कार्पस इंस्कृप्शनम इंडिकेरम भाग २; पुरी बी०एन०- इंडिया अंडर दि कुषाणज़। (बैजनाथ पुरी)