युवराज भारतीय भाषाओं और पाश्चात्य भाषाओं में इस शब्द का प्रयोग होता हैं । यह प्राचीन शब्द हैं । भाषायी द्दष्टि से इस शब्द का अर्थ राजा का पुत्र किया जा सकता हैं । भाषाओं में इस शब्द का अर्थ प्रथम या संमान के स्थान पर आसिन व्यक्ति के रूप में किया जाता था । क्रमश: इस शब्द का दपयोग राजा या सम्राट के पुत्र या पुत्रियों के लिये किया जाने लगा हैं और राजघराने से संबंधित निकट कुटुंबियों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता हैं । इंगलैड के भावी उतराधिकारी को प्रिंस आँव वेल्स की उपाधी दी जाती हैं । इंग्लैड में बड़े बड़े रईसों और नबाबों को भी प्रिंस की उपाधी दी जाती थी । जमर्नी में भी सम्राट् के कुटुंबिकयों को उपाधि दी जाती थी और कभी कभी जर्मन साम्राज्य के अन्दर राज्य करने वाले कुछ राजाओं को भी यह पदवी दी जाती थी । युरोप के कई देशों में प्रिंस की उपाधी ऐसे व्यक्तियों को दी जाती थी राजघराने से संबंधित नहीं थे । अत: प्रिंस या युवराज एक प्राचीन प्रथा का द्योतक हैं । जब संसार में राज्यशासन की कला का अर्थ राजतंत्र शासन पद्वति थी, तब इस प्रथा का उत्कर्ष हुआ और युवराजों की तथा प्रिंस की महिमा होती रही ।
पाश्चात्य देशों में, विशेषकर इंग्लैड में, युवराज की शिक्षा दीक्षा का बहुत अच्छा प्रबंध रखा जाता था, क्योंकि वह देश का भावी राजा था । उसका सम्मान और प्रतिष्ठा उच्च कोटि की होती थी । इंग्लैड में युवराज के विवाह आदि वैयत्कि विषयों पर भी क्राउन का नियत्रंण रहता हैं । एडवर्ड अष्टम के विवाह को क्राउन ने अमान्य कर दिया और उसके उत्तराधिकार का अधिकार छीन लिया। प्राचीन भारत में भी युवराज की शिक्षा को बहुत महत्व दिया गया था । प्राचीन हिन्दू कल्पना थी कि राजा में देवस्त्र हैं। परन्तु फिर भी युवराज की शिक्षा पर पुरा ध्यान दिया जाता था । राजपुत्रों की शिक्षा के लिये विशेष प्रबंध होता था, यद्यपि उनके सामान्य विधार्थियों के साथ साथ तक्षशिला आदि प्रख्यात शिक्षा केन्द्रों में शिक्षा प्राप्त करने के उदाहरण भी मिलते हैं। प्रारंभिक काल में दराजपुत्रों के पाठयक्रम में वेद, तत्वज्ञान आदि विषय भी संलग्न थें। परन्तु धीरे धीरें वार्ता और राजनीति ही अध्ययन के मुख्य विषय बन गए। राजकार्य, शस्त्रविद्या, युद्धकौशल आदि कर उन्हें केवल पुस्तकी ज्ञान ही नहीं दिया जाता था किन्तु प्रत्यक्ष रूप से इन विषयों की शिक्षा दी जाती थी। वयस्कता प्राप्त करने पर राजकुमारों का युवराज पद पर अभिषेक होता था।
ब्रिटिश शासन काल में ५६२ देशी राज्य भारत में थें । स्वतंत्राप्राप्ति के बाद इन राज्यों का विलयन हो गया हैं । परन्तु स्वतंत्रापाप्ति से पूर्व युवराजों और राजकुमारों की उचित शिक्षा के लिये कई राजकुमार विद्यालयों की स्थापना भारतीय सरकार के द्वारा तथा देशी नरेशों के अनूदान से की गई थी जिनमे अजमेर तथा रायपूर के राजकुमारों के लियें स्थापित किए हुए विद्यालय प्रसिद्व थें । प्रजातंत्र की प्रगति के साथ यह पुराना वैभव समाप्त हो रहा हैं । नवीन युग की पुकार के साथ राजा और युवराज अपनी पुरानी परंपरा और वैभव को त्यागने के लियें बाध्य हो रहे हैं ।श्श् [शुभदा तैलंग]