युधिष्ठिर पांडवों में ज्येष्ठ जो धर्म के पुत्र माने जाते हैं। यद्यपि द्रोणाचार्य से इन्होंने सैनिक शिक्षा प्राप्त की थी, तथापि ये योद्धा ही नहीं, अच्छे विचारक, दार्शनिक, धर्मभीरू और तत्वज्ञानी थे। हस्तिनापुर की गद्दी के लिये धृतराष्ट्र ने इन्हें ही युवराज बनाया और प्राय: इसी कारण कौरवों ने पांडवों का विशेध प्रारंभ कर दिया। महाभारत में केवल एक बार थोड़ा सा झूठ इनसे कहलाया जा सकाश् जिसके कारण हिमालय यात्रा में इनकी छोटी उँगली गल गई थी। वनवास से लौटने पर इंद्रप्रस्थ में इनके शासन की तुलना रामराज्य से की जा सकती है। राजसूय यज्ञ करने के कारण इनकी प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई थी, यद्यपि जुए के दुर्गुणों ने इनकी आपत्तियाँ ही नहीं बढ़ाई बल्कि इनकी कीर्ति में कलंक भी लगा दिया है।श्श् [रामज्ञा द्विवेदी]