यामनाचार्य रामनुज के पहले विशिष्टाद्वैत वेदांत के सुप्रसिद्ध आचार्य जिन्हें आलबंदार भी कहते हैं। एक परंपरा के अनुसार ये रामानुज के गुरु भी थे। इनका काल ११वीं शताब्दी का पूर्वार्ध होना चाहिए। इन्होंने वैणव आगमों कोश् वेदों के समान प्रामाणिक माना। आगम-प्रमाण्य, सिद्धित्रय, गीतार्थसंग्रह चत:श्लोकी और स्तोत्ररत्न इनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। (देखिए रामनुज और उनका संप्रदाय)। [रामचंद्र पांडेय]