यशवंतराव होलकर तुकोजी होलकर का अवैध पुत्र यशवंतराव उद्दंड होते हुए भी बड़ा साहसी तथा दक्ष सेनानायक था। तुकोजजी की मृत्यु पर (१७९७) उत्तराधिकार के प्रश्न पर दौलतराव शिंदे के हस्तक्षेप तथा तज्जनित युद्ध में यशवंतराव के ज्येष्ठ भ्राता मल्हरराव के वध (१७९७) के कारण, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो यशवंतराव ने शिंदे के राज्य में निरंतर लूट-मार आरंभ कर दी। अहिल्या बाई का संचित कोष हाथ आ जाने से (१८००० उसकी शक्ति और भी बढ़ गई। १८०२ में उसने पेशवा तथा शिंदे को सम्मिलित सेना को पूर्णतया पराजित किया;श् जिससे पेशवा ने बसई भागकर अंग्रेजों से संधि की (३१ दिसंबर, १८०२)। फलस्वरूप आंग्ल-मराठा-युद्ध छिड़ गया। शिंदे से वैमनस्य के कारण मराठासंघ छोड़ने में यशवंतराव ने बड़ी गलती की;श् कारण की भोंसले तथा शिंदे क पराजय के बाद, होलकर को अकेले अंग्रेजों सेश् युद्ध करना पड़ा। पहले ता यशवंतराव ने मॉनसन पर विजय पाई (१८०४), किंतु, फर्रूखाबाद (नवम्बर १७) तथाश् डीग (दिसंबर १३) में उसकी पराजय हुई। निदान उसे अंग्रेजों से संधि स्थापित करनी पड़ी (२४ दिसबंर, १८०५) अंत में, पूर्ण विक्षिप्तावस्था में, तीस वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई (२८ अक्टूबर, १८११)।
सं०ग्रं०- जी० एस० सरदेसाई: दि न्यू हिस्ट्री ऑव दि मराठाज़।श् [राजेंद्र नागर]