यशयाह श्(लगभग ७६०-७०१ ई० पूर्व) बाइबिल के पूर्वार्ध के मुख्य नबियों में सबसे महान्। वह राजधानी येरूसलेम के एक प्रभावशाली परिवार के थे। उन्होंने येरूसलेम में ही अपना सारा जीवन बिताया। एक परवर्ती अप्रामाणिक परंपरा के अनुसार आरे से उनका शरीर आरपार काटकर उनको मार डाला गया था।

यशयाह येरूसलेम के मंदिर की पवित्रता तथा ईश्वर की पूजा के औचित्य की चिंता किया करते थे। ईश्वर के आदेश से उन्होंने यहूदियों के उत्तरी राज्य इसराइल तथा दक्षिणी राज्य यूदा, दोनों के विनाश की घोषणा की। दोनों राज्य बाद में क्रमश: नष्ट किए गए - ७२२ ई० पू० मेंश् असीरियों द्वारा और ५८६ ई०पू० में बाबीलोनियो द्वारा। यशयाह ने इस विनाश को ईश्वर पर यहूदिययों के अविश्वास का दंड माना है। यहूदी लोग विदेशी राष्ट्रों के साथ राजनीतिक संधियों पर भरोसा रखते थे, किंतु यशयाह उनसे कहा करते थे कि ईश्वर पर ही भरोसा रखना चाहिए।

बाइबिल के पूर्वार्ध में जो यशयाह नामक ग्रंथ समिलित है इसके प्रथम ३९ अध्याय प्रामाणिक हैं। शेष अध्याय यशयाह की शिष्य परंपरा के एक नबी द्वारा लिखे गए हैं जो ५५० ई०पू० के लगभग बाबुल में प्रवासी यहूदियों के बीच रहते थे। इस अंश में दु:खश् भोगने वाले ईश्वरदास (दे० अध्याय ५३) का जो चित्रण किया गया है। वह ईसा का प्रतीक माना जाता है।

सं०ग्र० - किस्सेन (kissana), इसाइयास, डब्लिन, १९५२। [(फ़ादर) आस्कर वेरेक्रुइसे]