यमद्वितीया ्व्रातविशेष जिसका प्रचलित नाम भाईदूज है । इसे यमप्रिया द्वितीया और भ्रातृद्वितीया भी कहते हैं । इसका अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल द्वितीया को किया जाता हैं ।

पुराणों के अनुसार यम की अगिनी यमी अथवा यमुना में सबसे पहले इस व्रत का अनुष्ठान किया था जिसका उद्देश्य यम को प्रसन्न करना था (स्कंद २.४.९९) । इसमें यम, चित्रगुप्त आदि की पूजा भी कुछ लोग करते हैं । व्रतराज ग्रंथ में इस ्व्रात का अनुष्ठाान विस्तार के साथ वर्णित हैं ।

इस दिन भगिनी के हाथ का बनाया हुआ भोजन ही भाई की खाना चाहिए तथा भगिनी को वस्त्रादि दान करना चाहिए । इस अवसर पर भगिनी भ्राता को निमंत्रित कर उसकेश् साथ उसे यमदि की पूजा करनी चाहिए । व्रतगत मंत्रों से प्रतीत होता हैं कि भाई के चिरायुष्य की कामना करना ही इस व्रत का मुख्य उद्ेदश्य हैं । यमी के अनुष्ठान से प्रसन्न होकर यम ने उसे यह वरदान दिया था कि जो कार्तिक शुक्ल द्वितीया को बहन के साथ भोजन करेगा वह सदा सुखी रहेगा (स्कंद०, २-४-११) दे० यमी [रामशंकर भट्टाचार्य]