यदु नहुष के पुत्र ययाति के दो पुत्र यदु तथा तुर्वसु हुए। अपने जीवन काल में ही ययाति ने पुत्रों को राज्य बाँट दिया और ज्येष्ठ पुत्र यदु पूर्वेत्तर भाग के राजा हुए। यदु के पाँच पुत्र हुए जिनके विवरण कूर्म, मत्स्य, लिंग, वायु तथा हरिवंश पुराणों में मिलते हैं। भागवत में पाँच के स्थान पर इनके चार ही पुत्र लिखते हैं। विष्णु, गरुड़ तथा कूर्म पुराणों में इनके पुत्रों में रघु का नाम भी दिया है जो सूर्यवंशी रघु से सर्वथा भिन्न हैं, क्योंकि यदु के ही नाम से यदुवंश का प्रादुर्भाव हुआ।
ययाति ने अपने पुत्रों से अपना बुढ़ापा देकर उनके यौवन प्राप्त करने को प्रस्ताव किया तो यदु ने इस आज्ञा का पालन नहीं किया। इसपर पिता ने इन्हें शाप देकर राजवंश से परिभ्रष्ट कर दिया और ये क्रौंचक नामक दुर्गम स्थान में राक्षस होकर रहने लगे। इन्ही के वंश में हैहय हुए। पद्यपुराण में यदु को ययति के पाँच पुत्रों में से कनिष्ठ माना है। यदु की सगी माता देवयानी और सौतीली माता शर्मिष्ठा थीं।
अग्निपुराणानुसार उपरिचर वसु नामक राजा की पत्नी गिरिका के गर्भ से यदु का जन्म हुआ था और इनके सात भाई थे। तदनुसार इस यदु ने पन्नगराज की पाँच कन्याओं से विवाह किया।
यदु का उल्लेख ऋग्वेद में भी कई बार आया है। इसके अनुसार महर्षि कणव ने एक बार यदु से दस्युदमनकारी अग्नि के साथ आने की प्रार्थना की थी और दूसरी बार इंद्र से यदु की रक्षा उनके शत्रुओं से की। यदु के भाई तुर्वसु का नाम ऋग्वेद में तुर्वा दिया है और उसमें इन दोनों को दासजातीय राजा कहा गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में यदु की राजर्षि माना है। यदु के पुत्रों के संबंध में बहुत मतभेद है और पद्यपुराण के भूमिखंड में इनकी सख्या दी गई है जिनमें भोज और भीम हैं। [रामज्ञा द्विवेदी]