यज्ञ (ईसाई दृष्टि से) बाइबिल के पूर्वविधान (ओल्ड टेसटामेंट) में बहुतसंध्ख्यक यज्ञों का उल्लेख है। नबियों ने यहूदियों को बारंबार समझाया है कि यज्ञ का वास्तविक अर्थ है- ईश्वर के प्रति मनुष्य के आत्मसमर्पण का प्रतीक। इस भीतरी धार्मिक मनोवृति के अभाव में यज्ञ निष्प्राण कर्मकांड रह जाता है।
ईसा ने सुस्पष्ट शब्दों में शिक्षा दी है कि पूर्वविधान के यज्ञों की सार्थकता समाप्त हो गई है क्योंकि वह क्रूस पर आत्मोत्सर्ग द्वारा मनुष्य जाति के एब पापों का प्रायश्चित कर, मुक्ति के नवीन विधान का अनुष्ठान करनेवाले थे। संत पाल ने भी कहा है कि ईसा पास्का का मानना है जो हमें पाप की दासता से मुक्त कर देता है (दे० पुनरूत्थान)।
अंतिम भोजन में ईसा ने यूखारिस्ट का संस्कार निश्चित कर क्रूस के बलिदान से इसका संबंध स्पष्ट कर दिया था। ईसा ने कहा था-श् 'यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे लिये दिया जाता है। यह कटोरा मेंरे रक्त का नूतन विधान है, यह तुम्हारे लिये अर्पित किया जा रहा है।' (दे० यूखारिस्ट)। अत: रोमन कैथोलिक चर्च की शिक्षा है कि यूखारिस्ट का अनुष्ठान ईसा के रस मरण का स्मरणोत्सव है। इस अनुष्ठान में जब अंतिम भोजन के समय उच्चरित ईसा के शब्द दुहराए जाते हैं, तब ईसा बलि के रूप में वेदी पर विद्यमान हो जाते हैं और इस प्रकार यूखारिस्ट की धर्मक्रिया यज्ञ का रूप धारण कर लेती है। इस यज्ञ का सबसे प्रचलित नाम 'मिस्सा' अथवा 'होली मास' (Holy mass) है। प्रोटेस्टैंट धर्म के अनुसार यूखारिस्ट के अनुष्ठान की यज्ञ नहीं कहा जा सकता।
सं० ग्र०- ज० ए० यंगमैन: दि सेगिफाइस ऑव दि चर्च, लंदन, १९५६।श्श् (कामिल बुल्के)