म्योर, जान १९वीं शताब्दी के ब्रिटिश प्रशासनाधिकारियों में जान म्योर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह उन चुने हुए व्यक्तियों में थे जिन्होंने अपनी लेखनी द्वारा प्राचीन संस्कृत साहित्य का पाश्चात्य जगत् में दिग्दर्शन कराया। ५ फरवरी, १८१० को ग्लास्गो में विलियम म्योर के पुत्र जान का जन्म हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी मिलने पर पले यह हेलेवरी कालेज में प्रशिक्षण पाते रहे और १८२९ में भारत आये। सर्वप्रथम इनकी नियुक्ति आजमगढ़ के आयुक्त पद पर हुई । इनका झुकाव आारंभ से ही संस्कृत भाषा और साहित्य की ओर था, अत: १९०४ में यह वाराणसी में विवटोयाि अथवा क्वीन्स कालेज के कुलपति नियुक्त हुए। इस पद पर आसीन होने पर जान म्योर की प्रतिभा चमकी।श् १८५५ में आक्सफोर्ड के विश्वविद्यालय ने इनको 'डाक्टर आफ सिविल लां' की उपाधि प्रदान की। जर्मनी के बान विश्वविद्यालय ने भी इन्हें 'डाक्टर आफ फिलासफी' की डिग्री से सुशोभित किया। १८६२ में जान म्योर एडिनबरो विश्वविद्यालय में संस्कृत तथा भाषाविज्ञान के प्रोफेसर बने। इनकी विशेष रुचि वैदिक साहित्य की ओर थी और इन्होंने पाँच भागों में उन संस्कृत ग्रंथों को संपादित किया जिनका संबंध भारतीय इतिहास के मूल स्रोत से था। इसके अतिरिक्त उन्होंने वैदिक अध्ययन, सांस्कृतिक परंपराओं तथा धार्मिक विचारधाराआंे पर भी 'इंडियन ऐंटीक्वेरी' इंग्लैंड तथा बंगाल के रायल एशियाटिक जर्नल , में बहुत से निबंध प्रकाशित किये। ७ मार्च १८८२ को ७३ वर्ष की उम्र में इनका देहांत हो गया। [बैजनाथ पुरी]