मोर (Peacock, Pavo cristatus) भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। बहुत सोच विचार के बाद भारतीय वन्यपशु-संरक्षण-परिषद् की संस्तुति पर भारत सरकार द्वारा १९६२ ई. में इसे भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया था। यह सम्मान मोर के गौरव के अनुकूल ही है। भारतीय मुकुटों पर मोरपंखों का व्यवहार बहुत प्राचीन काल से होता आ रहा है- (मोमुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माल)। मोर कार्तिकेय का वाहन माना गया है। सुंदरता के कारण पालतू पक्षी संपूर्ण भारत, श्रीलंका और बर्मा में पाया जाता है। राजस्थान, हरियाणा और ब्रज में इसके झुंड के झुंड नजर आते हैं। कुछ लोगों का कथन है कि भूमध्यसागर के देशो से ईसा के पूर्व वह भारत में आया।

भारतीय मोर की आँखें भूरी, चोंच सींग के रंग की ओर पाँव स्लेटी भूरे होते हैं। मोर के पेर बड़े कुरूप होते हैं नर मोर के सिर पर छोटे, हरे नीले, चमकीले रोढँ होते हैं। गरदन चमकीली सुंदर, गहरी नीली होती है। ऊपर का हिस्सा स्लेटी हरा होता है। दुम का ऊपर हिस्सा भूरे रंग का तथा सीना ओर निचले सभी हिस्से चमकीले हरे रंग के होते हैं। दुम के पर लंबे और बड़े सुंदर होते हैं जिनके सिरे पर गालाई होती हे ओर रंग गाढ़ा नीला होता है। गले में एक अर्धचंद्र की आकृति का चिन्ह बना हुआ होता है जो देखने में अच्छा सा लगता है। असम में बिलकुल सफेद मोर भी पाए जाते हैं। जापान में नीले रंग के मोर होते है। बर्मा का बावाक मोर (Pavo muticus) एक दूसरी जाति का होता है। इसकी गर्दन ओर वक्ष सुनहरे हरित वर्ण के होते है। कांगों के मोर ऐफो पैवों कांजेनिसिस (Afro pavo congenisiis) जाति के हैं और सामान्य मोरों से कुछ भिन्न होते है।

मोर का नाच जगतप्रसिद्ध है। कत्थक नृत्य में इसी नाम का एक विशेष नाच होता है। आकाश के काले काले बादलों को देखकर और उनका गर्जन सुनकर मोर अपनी पूँछ को उठाकर, गोलाकार फैलाकर आनंद से नाचने लगता है। इसकी सुदरता से मोहित होकर ही मुगल बादशाही के तख्त ताऊस पर मोर का चित्र बना हुआ था, जिसमें बहुमूल्य हीरे जवाहरात जड़े थे। मोर सर्प का परम शत्रु है। इसकी बोली सुनकर साँप भाग खड़ा होता है। अप्रैल से अक्टूबर तक मोरनी एक बार में तीन से लेकर पाँच तक अंडे देती है और फिर उनसे बच्चे उत्पन्न होते हैं। मोर ३,००० फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है। यह कीड़े मकोड़े और अनाज खाता है। मोर का माँस किसी समय बहुमूल्य समझा जाता था। [फूलदेव सहाय वर्मा]