मोमिन मुहम्मद मोमिन खाँ कश्मीरी था पर वे दिल्ली में आ बसे थे। उस समय शाह आलम बादशाह थे और इनके पितामह शाही हकीमों में नियत हो गए। अँग्रेजी राज्य में पेंशन मिलने लगा, जो मोमिस को भी मिलती थी। इनका जन्म दिल्ली में सन् १८०० ई. में हुआ। फारसी अरबी की शिक्षा ग्रहण कर हकीमी और मजूम में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। छोटेपन ही से यह कविता करने लगे। तारीख कहने में यह बड़े निपुण थे। अपनी मृत्यु की तारीख इन्होंने कही थी-दस्तों बाजू बशिकस्त। इससे सन् १८५२ ई. निकलता है और इसी वर्ष यह कोठे से गिरकर मर गए। इनमें अहंकार की मात्रा अधिक थी, इसी से जब राजा कपूरथला ने इन्हें तीन सौ रुपए मासिक पर अपने यहाँ बुलाया तब यह केवल इस कारण वहाँ नहीं गए कि उतना ही वेतन एक गवैए को भी मिलता था। मोमिन बड़े सुंदर, प्रेमी, मनमौजी तथा शौकीन प्रकृति के थे। सुंदर वस्त्रों तथा सुगंध से प्रेम था। इनकी कविता में इनकी इस प्रकृति तथा सौंदर्य का प्रभाव लक्षित होता है। इसमें तत्सामयिक दिल्ली का रंग तथा विशेषताएँ भी हैं अर्थात् इसमें अत्यंत सरल, रंगीन शेर भी हैं और क्लिष्ट उलझे हुए भी। इनकी गजलें भी लोकप्रिय हुई। इन्होंने बहुत से अच्छे वासोख्त भी लिखे हैं। वासोख्त लंबी कविता होत है जिसमें प्रेमी अपने प्रेमिका की निंदा और शिकायत बड़े कठोर शब्दों में करता है। [रजिया सज्जाद जहीर]