मोने, क्लोद (१८४०-१९२६) सर्वश्रेष्ठ फ्रांसीसी इंप्रेशनिस्ट चित्रकार। सन् १८७४ में फ्रांस की राजकीय ललित कला अकादमी से तिरस्कृत नए चित्रकारों ने मिल जुलकर अपने चित्रों की एक प्रदर्शनी की। इनमें क्लोद मोने भी एक अग्रगण्य कलाकार था। प्रदर्शन में उसका एक द्दश्यचित्र था इंप्रेशन सन्राइज (सूर्योदय का आभास)। यह प्रदर्शनी पुराने कलामर्मज्ञों को बड़ी बेढंगी लगी और इसके खिलाफ उन्होंने अखबारों में कटु आलोचनाएँ प्रकाशित करवाई। एक आलोचक ने, जो क्लोद मोने के चित्र इंप्रेशन सनराइज से काफी भड़का था, इन नए कलाकरों को इंप्रेशनिस्ट्स कहकर अपने आलोचना में इनकी खिल्ली उड़ाई। तब से इन नए कलाकरों द्वारा प्रतिपादित कला का नाम ही पड़ गया इंप्रेशनिज्म।
क्लोद मोने इंप्रेशनिष्ट चित्रकला का प्रमुख प्रतिनिधि कलाकार माना जाता है। बाल्यकाल में ही वह ग्राहकों, सहपाठियों, अध्यापकों तथा राह चलते लोगों का चेहरा बनाने लग गया था। इनमें से कुछ तो उसके चित्रों को साधारण दाम देकर खरीदने भी लग गए थे। इससे बालक मोने तथा उसके माता पिता को भी प्रेरणा मिली। १९ वर्ष की अवस्था में वह पेरिस के कलासंग्रहालय लूब्र में जाकर चित्र बनाने लगा। तत्पश्चात् कला की अग्रगण्य संस्था स्विस अकादमी में भी उसने प्रवेश प्राप्त किया। यहीं उसके मुलाकात एक अत्यंत जागरूक कलाकार पिस्सारों से हुई। पिस्सारो ने ही उसको कला के नए चित्रों से परिचित कराया जिसके आधार पर आगे चलकर इंप्रेशनिज्म नामक चित्रकला विकसित हुई।
मोने की चित्रकला की सबसे प्रमुख विशेषता है चित्रों में रंगों का सम्मिश्रण। वह द्दश्स्थल पर जाकर अपने चित्र बनाता था। उसका विश्वास था कि जब तक सूर्य के प्रकाश में पूरी तरह खुली जगह में चित्र न बनाया जाय, रंगों की शोभा चित्र में पकड़ी नहीं जा सकती। सूर्य के खुले प्रकाश में ही प्रकृति की सभी वस्तुएँ अपने वास्तविक रंगों में प्रगट होते हैं। सूर्य के प्रकाश के द्वारा प्रकृति एक सुंदर आवरण धारण करती है और इसे ही चित्रित कर पाना सफल कलाकार का लक्ष्य होना चाहिए। इस दृष्टि से मोने के चित्र सचमुच अत्यंत रोचक तथा प्रभावकारी हैं। उसके चित्रों में न तो विष्यवस्तु महत्वपूर्ण है, न उनका रूप या आकार, केवल शुद्ध रंगों का चयन उभरकर एक मनोहारी दृश्य उपस्थित करता है। ऐसे चित्रों में इंप्रेशन सन राइज, ब्रिज ऐट आर्गेत्वील, रेड रूपस, रुआँ कथीड्रल, बेसिन ऐट आर्गेत्वील तथा टेरेस ऐट द सी साइड उल्लेखनीय हैं। [रामचंद्र शुक्ल]