मोटरसाइकिल अंतर्दहन इंजन द्वारा चालित दो पहियेवाली साइकिल है। आज मोटरसाइकिल में चालक को शारीरिक श्रम द्वारा पैडल चलाकर, चालक शक्ति प्राप्त करनी होती है, पर मोटरसाइकिल में यह शक्ति अंतर्दहन इंजन से प्राप्त होती है। चालक को शारीरिक श्रम नहीं करना पड़ता। शारीरिक श्रम द्वारा उत्पन्न चालक शक्ति सीमित होता है और एक निश्चित दर से बहुत समय तक उत्पन्न नहीं हो सकती है। शारीरिक श्रम को कम करने और द्रुत परिवहन के उद्देश्य से ही मोटरसाइकिल का विकास हुआ है।

१८८४ ई. में पहली मोटर ट्राइसिकिल एडवर्ड बटलर नामक एक अंग्रेज द्वारा बनी थी। १८८५ ई. में जर्मनी के गॉटलिएट डींबलर के (Gottliet Daembler) द्वारा पहली मोटरसाइकिल बनी थी। १८९६ ई. तक ग्रेटब्रिटेन में मोटरसाइकिलें बनी थीं। १९०३ ई. तक इनकी संख्या ५० हो गई थी। उसके बाद से मोटर साईकिल की लोकप्रियता बढ़ने लग और साथ साथ उनक संख्या में भी बहुत अधिक वृद्धि हुई। आजकल मोटरसाइकिलें यूरोप, अमरीका, जापान आदि अनेक महाप्रदेशों तथा देशों में बनती हैं। स्वत्रतंता प्राप्ति के बाद भारत में भी मोटर साइकिले बनने लगी हैं।

पहले पहल बाइसिकलों में इंजन जोड़कर मोटर साइकिलें बनीं। उस समय इंजन का स्थान निश्चित नहीं था। पर शीघ्र ही मालूम हो गया कि इंजन का सर्वोत्कृष्ट स्थान फ्रेम का मध्य भाग है, क्योंकि मध्य में रहने से गुरुत्व का केंद्र नीचे होता है, जिसके कारण नियंत्रण की सुविधा रहती है और स्टियरिंग (steering) के स्थायित्व में वृद्धि हो जाती है। आजकल इंजन युगल नली झूले में, फ्रेम में पट्ट और काबले (bolts) से, जुड़ा रहता है। मोटरसाइकिल का फ्रेम इस्पात नलों से, झलाई (वेल्डिंग) या पीतल की टँकाई (ब्रेजिंग) द्वारा, बनाया जाता हैं।

अधिकांश मोटरसाइकिलों में एक सिलिंडर वाला इंज़न होता है। कुछ बड़ी तथा अधिक शक्तिशाली मोटरसाइकिलों में दो या चार सिलिंडर वाले इंजन भी होते है। एक सिलिंडर वाले इंजन दो स्ट्रोक, या चार स्ट्रोक प्रतिरूप के हो सकते हैं। ये इंजन २५० धन सेंमी. (c.c.) घारिता के होते हैं। आधुनिक काल में कीटर इंजनों की शक्ति का मूल्यांकन अश्व शक्ति से नहीं किया जाता, अपितु यह धन सेंटीमीटर (c.c.) में धारिता से प्रदर्शित किया जाता है। सामान्य मोटरसाइकिलों के इंजन क धारिता, २५० घन सें.मी. और शक्तिशाली इंजनों की धारिता १,००० घन सेंमी. तक हो सकती है। इन इंजनों में ईधंन के रूप में पेट्रोल का व्यवहार होता है। ये इंजन वायु अनुकूलित होते हैं।

कुछ अंतर्दहन इंजन चार स्ट्रोक औटो चंक्र (Otto cycle) के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। ऐसे इंजन में दहन स्थिर आयतन में होता है। यहाँ वायु की अधिकता नहीं होती। इस अंतर्दहन क्रिया में स्फुलिंग ज्वालन और औटो चक्र की विशेषता होती है। पेट्रोल और वायु को संपीडल के पूर्व मिश्रित किया जाता है। विस्थापन और निर्बाधिता (clearance) आयतन के योग को निर्बाधिता आयतन से भाग देने पर अंतर्दहन इंजन का संप्पीदन अनुपात ज्ञात होता है। शक्तिशाली इंजन का संपीडन अनुपात उँचा होता है। मोटरसाइकिल के अंतर्दहन इंजन में वाष्पशील द्रव प्रयुक्त करने पर संपदन अनुपात ईधंन के प्रस्फोटन (detonation) पर निर्भर करता है। यह संपदन दबाव प्रति वर्ग इंच २०० पाउंड तक हो सकता है। मोटर साइकिल में कार्बूरेटर, गैस मिश्रण कपाट (valve) तथा ईधंन इंत:क्षेपक होते हैं। इंजन में दहन का दबाव सामान्य संपीड़न दबाव का साढ़े तीन गुना से पाँच गुना अधिक होता है। पिस्टन की गति अधिक होने पर मोटरसाइकिल तेज चलती है। यहाँ कम पेट्रोल से अधिक शक्ति प्राप्त होती है। मोटर साइकिल के निर्माण का लागत खर्च भी कम पड़ता है। पर मोटरसाइकिल में कंपन अत्यधिक होता है। इससे चालक शीघ्र थक जाता है। मोटरकार में अधिक सिलिंडर वाला इंजन जोड़कर कंपन दोष दूर किया जाता है, पर मोटरसाइकिल में ऐसा करने से भार बढ़ जाता है और पेट्रोल अधिक खर्च होता है। अत: दो सिंलिंडर से अधिक सिलिंडर वाला इंजन मोटरसाइकिल में साधारणताया प्रयुक्त नहीं होता। साइकल के पिछले पहिये में पट्टक, चेन और दंतचक्र जोड़े जाते हैं। इंजन की दहन गैसें प्रधानतया कर्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड होती हैं। ये गैसें इंजन के पीछे पिछले पहिये के समीप स्थित, निकास नली से बाहर निकलती हैं। मोटरसाइकिल के चक्कों के ऊपर रबर टायर और ट्यूब लगे रहते हैं। इससे चलने में द्रुतता आती है। मोटरसाइकिल ने चालमापी भी लगा रहता है। चलाते समय नियंत्रण के लिये अगले पहिये के ऊपर हैंडल लगा रहता है।

मोटरसाइकिल की सीट आरामदेह होती है। इसमें गद्दी, स्प्रिंग और दुसाख (forks) होने से झटका कम लगता है। इसका पाद फलक ऐसा होता है कि पैर उसपर आराम से रखा जा सके। इसका चक्राधार लंबा होता, जिससे पैर में मरोड़ कम होता है। आज कल मोटरसाइकिली के पार्श्व में एक यान भी जोड़ा जा सकता है, जिससे मोटर साइकिल पर दो आदमी आराम से बैठ सकें। साधारणतया यह एक गैलन पेट्रोल से ५० से ९० मील तक चल सकती है। मोटरसाइकिल की चाल प्रति घंटा १८० मील तक पाई गई है जर्मनी के बिलहेल्म हट्रस ने १९५० ई० में उपर्युक्त चाल प्राप्त की थी।श् आजकल मोटरसाइकिल की दौड़, १००, १२५, या २०० मील तक की, अनेक देशों में होती है।

मोटरसाइकिल के उपयोग से अनेक लाभ हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनों ने मोटरसाइलि द्वारा सेना एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजी थी। युद्ध में प्रयुक्त होनेवाली मौटरसाइकिलें मुड़नेवाली होती हैं, जिन्हें हवाई जहाज द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है। नगर की पुलिस के पास, तथा मिलिट्री पुलिस के पास शीघ्रगमनागमन के लिये मोटरसाइकिलें रहती हैं। सामान्य लोगों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाने में मोटरसाइकिल का आज अधिकाधिक व्यवहार कियाश् जा रहा है।श्श् [अभय सिन्हा]