मैथिलीशरण गुप्त जन्म चिरगाँव, झाँसी में संवत् १९४३ में । (मृत्यु २०११ सं.) पिता सेठ रामचरण थे। छोटे भाई सियारामशरण गुप्त थे। तीन और भाई थे, जो व्यापार में लगे रहे। पिता कविताप्रेमी और भगवत्भक्त थे, उन्हीं से यह उत्तराधिकर गुप्त जी को मिला। शिक्षा दीक्षा घर पर ही हुई।
गुप्त जी को प्रारंभिक रचनाएँ कलकत्ता के पत्र 'जातीय' में प्रकाशित हुईं। बाद में आपकी कविताएँ नियमित रूप से 'सरस्वती' में प्रकाशित होने लगी थीं और 'सरस्वती' के संपादक, महावीरप्रसाद द्विवेदी, का बहुत प्रभाव आपकी भाषा और रचचनाशैली पर पड़ा।
आपके मौलिक काव्य ग्रंथों में 'जयद्रथ वध' 'भारत भारती', 'पंचवटी', 'साकेत', 'यशोधरा', 'द्वापर', 'नहुष' 'मंगल घट', 'जय भारत', आदि विशष उल्लेखनीय हैं। अनुवादों में 'विरहिणी ब्रजांगना', 'मेघनाथ बध', 'पलासी का युद्ध', 'स्वप्न वासवदता', आदि महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। गुप्त जो के 'साकेत' पर हिंदी साहित्य सम्मेलन का मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला। गुप्त जी को प्रयाग विश्वविद्यालय ने डॉक्टर की सम्मानित उपाधि प्रदान की। वे राज्यसभा के सदस्य थे और असंख्य हिंदीप्रेमियों ने उन्हें राष्ट्र कवि की उपाधि से विभूषित किया।
गुप्त जी के काव्य के दो प्रेरणास्रोत हैं: देशभ्भक्ति और भगवद्भक्ति। 'भारत भारती' का राष्ट्रीय गाथाओं में प्रमुख स्थान है। प्राचीन गाथाओं को आपने सरस प्रेरणा से अभिनव रूप प्रदान किया। आपके काव्य में सहज माधुरी और निश्छलता के गुण प्रधान हैं।
गुप्त जी भारतेंदु के समान हिंदी कविता के इतिहास में एक नए युग के प्रवर्तक हैं। इस युग को द्विवेदी युग की संज्ञा दी गई है। द्विवेदी युग में खड़ीश् बोली साहित्य की भाषा बनी और हिंदी कविता ने अभिनव रूप धारण किया। रीतिकाल की परंपरा को दृढ़तापूर्वक त्याग कर वह आधुनिक जीवन के समीप आ गई।
मैथिलीशरण गुप्त की भाषा की सहज मिठास और सादगी है। आपकी अनुभूतियाँ जनजीवन का स्पर्श कर द्रवित होती हैं। आपके अनेक शब्दचित्र हिंदी पाठकों की स्मृति में घर बना चुके हैं। आपकी पुष्ठ राष्ट्रीय विचारधरा ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को बल दिया। गुप्त जी अपनी सरलता, निश्छलता, सहज देशप्रम और वैष्णव वृतियों के कारण राष्ट्रीय जीवन के साहित्यिक प्रतीक बन गए थे। [प्रकाशचंद्र गुप्त]