मैग्नीशियम श्(Magnesium) एक धात्विक तत्व है। इसके यौगिक प्रचुर मात्रा में इधर उधर फैले हुए है, परंतु यह शुद्ध धातु के रूप में प्रकृति में नहीं मिलता। १६९५ ई० में नेहमया ग्रियू (Nehemiah Grew) ने एप्सम के एक खनिज स्रोत से एक विशेष लवण उपलब्ध किया, जिसे एप्सम लण्वण का नाम दिया गया। बाद में यह मैग्नीशियम सल्फेट सिद्ध हुआ। मैग्नीशियम और कैल्सियम के यौगिकों के गुणाधर्म आपस में बहुत मिलते हैं हॉफमैन ने १७२२ ई०श् में प्रथम बार इस भेद को स्पष्ट किया। सन् १८०८ में डेबी ने क्लोराइड के विद्युत अपघटन से धात्विक मैग्नीशियम तैयार किया। इन्होंने श्वेत तप्त मैग्नीशिया को पोटैशियम के वाष्प में अवकृत करके भी इस धातु को तैयार किया। १८३३ ई० में डाक्टर फैराडे ने प्रथम बार वोल्टीय सेल की सहायता से गले हुए मैग्नीशियम क्लोराइड का विद्युत अपघटन कर शुद्ध मैग्नीशियम तैयार किया।
भूपर्पटी का २.१ प्रतिशत इस धातु से बना है। इसके लवण काबौंनेट, ऑक्साइड के रूप में मिलते हैं। सिलिकेट खनिजों में भी यह काफी मात्रा में मिलता है, परंतु ये खनिज अधिक उपयोगी नहीं हैं, क्योंकि इनसे मैग्नीशियम धातु को निकालने में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
समुद्र के जल में इसका क्लोराइड मिलता है। मैग्नेसाइट इसका प्रसिद्ध ठोस अयस्क है। यह संसार के लगभग प्रत्येक भाग में अमीरका। डोलोमाइट यू० के०, आस्ट्रिया हंगरी, जर्मनी इत्यादि में मिलता है और कार्नेलाइटश् जर्मनी के स्टासफर्ट लवण स्तर में प्रचुर मात्रा में मिलता है।
नीचे लिखे प्रमुख खनिजों के अतिरिक्त मैग्नीशियम के कुछ अन्य खनिजों के सूत्र इस प्रकार हैं:
(१) कार्नेलाइट, मैगक्लो२. पोक्लो. ६ हा२ औ [MgCl2 KCI. ६ H2O];श् (२) शोएनाइट, मैगगंऔ४. पो२गं,औ४. ६हा२औश् [Mg SO4. K२SO4.� 6 H2O];� (3)� पोलिहेलाइट, मैगगंऔ४.श् २ कै गं औ४.श् पो२ श्गं औ४. श्२हा२ औ [MgSO4.� 2CaSO4. K2 SO4. 2H 2O];श्श् (४) कैसराइट, मैगगंऔ४.श् हा२श् औ [Mg SO4. 2H2O]; (५) एप्सोमाइट, मैगगं औ ४. ७ हा२ औ [Mg SO4 7 H2o]; (6) श्कैनाइट, मैग गं औ४. पाक्लो. ३ हा२ औ. [Mg So4. KCI. 3H 2O]; (७) लेंगबेनाइट, २मैग गंऔ ४.श् पो २ गंऔ ४. [२Mg SO4� K2 SO4 ]।
भारत में मैग्नीशियम काफी मात्रा में पाया जाता है। सलेम की खड़िया मिट्टी की पहाड़ियों में मैग्नेसाइट मिलता है। यहाँ का मैग्नेसाइट खनिज ९६.९९ प्रतिशत शुद्ध है।
नाम सूत्र मैग्नीशियम का प्रतिशत
मैग्नेसाइट मैग का औ३
(Mg CO3) २८.७
डोलोमाइट मैग का औ३.
कै का औ३
(Mg CO3 Ca CO3)������� 23.8
ब्रुसाइट मैगश्औ.हा२ औ
(Mg O. H2O)�������������� 41.6
सर्पेटाइन ३ मैग औ. २ सि औ२.२हा२औ
(३MgO. 2Si O2.2H2O) ४५.९
ओलिवीन (मैगलो) सि औ४श्
[(Mg, Fe) Si O4]��������� 28.4
टैल्क ३मैगऔ ४ सि औ२.हा२औ
(३Mg O.4 Si O2. H2O) २०.७-२६.९
निष्कर्षण और उत्पादन - मैग्नीशियम के उत्पादन के लिये १९४७ ई० में दो मुख्य विधियों का उपयोग होता था: (१) विद्युत् उपघटनी विधि और (२) ऊष्मीय विधि। पहली विधि अधिक प्रचलित थी। जर्मनी में, जहाँ मैग्नीशियम उद्योग का सर्वप्रथम विकास हुआ, पहली विधि को ही अपनाया गया। गले हुए मैग्नीशियम क्लोराइड का विद्युत् अपघटन कर इस धातु को तैयार किया जाता था। अमरीका में भी ८५ प्रतिशत मैग्नीशियम इसी विधि से प्राप्त किया जाता था। अमरीका में १९४७ ई० में समुद्र के पानी का विद्युत् अपघटन कर इस धातु को तैयार करने की नई विधि का आविष्कार हुआ। विद्युत अपघटन विधि की मुख्य प्रक्रियाएँ इस प्रकार हैं:
विद्युत अपघटन विधि - समुद्र के जल को, जिसमें ०.१३ प्रतिशत मैग्नीशियम होता है, बड़े बड़े टैंकों में चूने के पानी के साथ मिलाया जाता है। कैल्सियम का समुद्र के मैग्नीशियम से विनिमय हो जाता है और यह अविलैय मैग्नीशियम हाइड्रोक्सॉइड के रूप में नीचे बैठ जाता है। इसे फिल्टर कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करने देते हैं, जिससे यह मैग्नीशियम क्लोराइड बन जाता है। अब इसे निर्जल करते हैं, जो बहुत आवश्यक है। इसके क्रिस्टल को साधारणतया गर्म करने पर केवल ४ अणु पानी निकल जाता है। जल का शेष दो अणु कठिनाई उपस्थित करता है। अत: निर्जल मैग्नीशियम क्लोराइड प्राप्त करने के लिये इसको ३५०� सें० पर शुष्क हाइड्रोक्लोरिक अम्ल मेंश् गर्म करना पड़ता है।
आधुनिक विधि में विद्युत अपघटन का कुंड इस्पात का बना ६ फुट गहरा, ५फुट चौड़ा और ११ फुट लंबा होता है। एक बार में १० टन विद्युत् अपघटन, पो क्लो ५० %, मैगक्लौ२ १५ %, सो क्लो ३५% (KCI 50%, Mg CI2 15%, NaCI 35%), इसमें लिया जा सकता है। यह कुंड और इसका भीतरी भाग ऋणाग्र का कार्य करता है।श् ८ इंच व्यास और ९ फुट लंबा ग्रेफाइट घनाग्र कुंड में ऊपर से लटकाया जाता है। ७१०� सें० पर विद्युत् अपघटन होता है। इस क्रिया के दौरान में मैग्नीशियम ऋणाग्र पर बूँद बूँद होकर इकट्ठा होता है और फिर ये सब बूँदें मिलकर ऊपर उठ जाती हैं। इस प्रकार ९९.९ प्रतिशत शुद्ध धातु तैयार होती है।
ऊष्मीयय विधियाँ, या ताप ऑक्सीकरण विधि -श् विद्युत् अपघटय् विधि में खर्चा अधिक पड़ता ह। अत: आजकल इस स्थान पर ऊष्मा अकरण विधि का उपयोग होने लगा है। मैग्नीशियम ऑक्साइड को कार्बन, या अन्य अच्छे अवकारकों, के साथ ऊँचे ताप पर गरम कर मैग्नीशियम को आसवन क्रिया द्वारा द्रव, या ठोस अवस्था में संघनित कर लेते हैं। इसी सिद्धांत पर कैनाडा में १९४१ ई० में पिजिओन फेरोसिलिकन विधि अपनाई गई। इसमें फेरोसिलिकन और चूर्णमय डोलोमाइट को लाल ताप पर गर्म करके शुद्ध मैग्नीशियम तैयार किया जाता है।
ऑस्टेलिया में १९२८ ई० में कार्बोथर्मिक विधि का आविष्कार हुआ। इसमें मैग्नीशियम ऑक्साइड को कार्बन के साथा २,०००� सें० से अधिक ताप परश् गरम करते हैं। मैग्नीशियम और कार्बन मोनो ऑक्साइड के वाष्पों को अभिक्रिया कक्ष से बाहर निकलते ही एकदम ठंडा कर लिया जाता है। ताप गिर कर २००� सें० हो जाता है और मैग्नीशियम वाष्प ठोस रूप धारण कर लेता है। हाइड्रोजन के स्थान पर अब कहीं कहीं प्राकृतिक गैस का भी उपयोग होने लगा है।
गुणधर्म- मैग्नीशियम धातु का रंग चाँदी के समान सफेद है। इसका स्थान तत्वों के आवर्ती वर्गीकरण के द्वितीय समूह में है तथा कैल्सियम, यशद और बेरीलियम से संबंधित है। इसकी संयोजकता दो है। यह मैग्नीशियम आयन, मैंग ++(Mg++) बनाता है। साधारण ताप पर शुष्क हवा का धातु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परंतु गरम करने पर मैग्नीशियम बड़ी चमक और सफेद रंग की रोशनी के साथ हवा में जलने लगता है। रात में इन रोशनी की सहायता से फोटो उतारा जा सकता है।
मैग्नीशियम बहुत अच्छा ऑक्सीकारक है और लगभग सब अम्लों के साथ अभिक्रिया कर हाइड्रोजन पृथक् कर देता है। यह इतना प्रबल धनात्मक है कि लगभग सभी लवणों में से यह धातुओं को बाहर निकाल देता है।
मैग ऱ्+सी (ना औ३)२ =मैंग (ना औ३)२ +सी
[Mg+Pb (No3)2 =Mg(No3)2+ Pb]
�कार्बन-डाई-ऑक्साइड में इसका तार जलता रहता है।
२मैंग + का औ२ = २ मैंग औ + का [2Mg+Co2 = 2Mgo + C]
पानी में भाप में गरम करने पर यह जल उठता है, परंतु झारों का इसपर प्रभाव नहीं पड़ता ।
मैग्नीशियम का परमाणु भार २४.३२ और परमाणु क्रमांक १२ है। इसका गलनांक ६५०� सें० तथा क्वथनांक १,१२०� सें० है। यह काफी द्दढ़ धातु है। इसके तार या फीते बनाए जा सकते हैं।
इसके यौगिकों में से निम्नलिखित प्रसिद्ध हैं:
मैग्नीशियम ऑक्साइड - मैग्नीशियम कार्बोनेट को तपाकर इसे बनाते हैं। यह श्वेत चूर्ण है। भट्ठियों के अस्तर के काम आता है।
मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड- मैग्नीशियम लवण में चूने का पानी मिलाने से सफेद आक्षेप के रूप में यह मिलता है। इसे दवाइयों में रेचक के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
मैग्नीशिमय कार्बोनेट-श् प्रकृति में मैग्नेसाइट और कैल्सियम कार्बोनेट के साथ डोलोमइट में भी पाया जाता है। मैग्नीशियम लवण के विलयन में यदि कार्बन डाइ-आक्साइड संतृप्त सोडियम कार्बोनेट के विलयन को छोड़ा जाए, तो मैग्नीशियम कार्बोनेट का अवक्षेप मिलता है। यह रबर और स्याही के उद्योग तथा अंगरोग और दवाइयों में काम आता है।
मैग्नीशियम क्लोराइड - मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड पर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की अभिक्रिया से, या कार्नेलाइट से इसे प्राप्त किया जा सकता है। निर्जल क्लोराइड प्राप्त करने के लिये, इसे शुष्क हाइड्रोक्लोरिक अम्ल गर्म करते हैं।
इसका उपयोग अधिकतर ऑक्सिक्लोराइड सीमेंट, कपड़ा उद्योग और मैग्नीशियम धातु के उत्पादन में होता है।
अभिव्यक्तिकरण - मैग्नीशियम लवण के विलयन में सोडियम हाइड्रॉक्साइड डालने से मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड का अवक्षेप मिलता है, जो सोडियम हाइड्ऱॉक्साइड की अधिक मात्रा में विलेय नहीं है, परंतु अमोनियम क्लोराइड के संतृप्त विलयन में विलेय है।
सं० ग्रं० - थॉर्प : डिक्शनरी ऑव ऐप्लाइड केमिक्ट्री, फोर्थ एडीशन; सत्यप्रकाश : अकार्बनिक रसायन। [चमनलाल गुप्त]