मैक्सवेल जेम्स क्लार्क श्ब्रिटेन के महान् भौतिक विज्ञानी थे। आपका जन्म एडिनर्ब में १३ नवंबर सन् १८३१ के हुआ था। आपने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय तथा केंब्रिज में शिक्षा पाई। १८५६ से १८६० तक आप ऐबर्डीनके मार्शल कालेज में प्राकृतिक दर्शन (Naturalphilosophy) के प्रोफेसर रहे। सन् १८६० से ६८ तक आप लंदन के किंग कालेज में भौतिकी और खगोलमिति के प्रोफेसर रहे। १८६८ ई० आपने अवकाश ग्रहण किया, किंतु १८७१ में आपको पुन: केंब्रिज में प्रायोगिक भौतिकी विभाग के अध्यक्ष का भार सौंपा गया। आपके निर्देशन में इन्हीं दिनों सुविख्यात कैंबेंडिश प्रयोगशाला की रूपपरेखा निर्धारित की गई। आपकी मृत्यु सन् १८७९ में हुई।
अनुसंधान कार्य - १८ वर्ष की अवस्था में ही आपने गिडनबर्ग की रॉयल सोसायटी के समक्ष प्रत्यास्थता (elasticity) वाले ठोस पिंडों के संतुलन पर अपना निबंध प्रस्तुत किया था। इसी के आधार पर आपने श्यानतावाले (viscous) द्रव पर स्पर्शरेखीय प्रतिबल (tangential stress) के प्रभाव से क्षण मात्र के लिये उत्पन्न होनेवाले दुहरे अपवर्तन की खोज की। सन् १८५९ में आपने शनि के वलय के स्थायित्व पर एक गवेषणपूर्ण निबंध प्रस्तुत किया। गैस के गतिज सिद्धान्त (Kinetic Ttheory) पर महत्वपूर्ण शोधकार्य करके, गैस के अणुओं के वेग के विस्तरण के लिये आपने सूत्र प्राप्त किया, जो 'मैक्सवेल के रियम' के नाम से जाना जाता है। मैक्सवेल ने विशेष महत्व के अनुसंधान विद्युत् के क्षेत्र में किए। गणित के समीकरणों द्वारा आपने दिखाया कि सभी विद्युत् और चुंबकीय क्रियाएँ भौतिक माध्यम के प्रतिबल तथा उसकी गति द्वारा प्राप्त की जा सती हैं। इन्होंने यह भी बतलाया कि विद्युच्चुंबकीय तरंगें तथा प्रकाशतरंगें एक से ही माध्यम में बनती हैं, अत: इनका वेग ही उस निष्पत्ति के बराबर होना चाहिए जो विद्युत् परिमाण की विद्युतचुंबकीय इकाई तथा उसकी स्थित विद्युत् इकाई के बीच वर्तमान है। निस्संदेह प्रयोग की कसौटी पर मैक्सवेल क यह निष्कर्ष पूर्णतया खरा उतरा।
[अंबिका प्रसाद सक्सेना]