मैकडॉनल्ड, जेम्स रैम्से श्इंग्लैंड का राजनीतिज्ञ, मजदूर दल का नेता और चार बार प्रधान मंत्री। जन्म १२ अक्टूबर १८६६ ई० को हुआ। गरीबी के कारण उसने मजदूर, अध्यापक और क्लर्क के रूप में काम किया। समाजवाद के सिद्धांतों से प्रभावित हुआ। १८९४ में वह स्वतंत्र मजदूर दल का सदस्य बना और अगले वर्ष साउथैंप्टन से पार्लियामेंट की सदस्यता प्राप्त करने में असफल रहा। इस बीच पत्रकारिता उसकी आय का साधन थी। रात्रि कक्षाओं में अध्ययन द्वारा विभिन्न विषयों का परिचय भी वह इस काल में प्राप्त करता रहा। १८९६ में संभ्रांत और धनी परिवार की कन्या मार्गरेट इथेलश् ग्लैड्स्टन के साथ विवाह होने से उसकी आर्थिक स्थिति सुधरी और सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ी। १९०० में मजदूर प्रतिनिधित्व समिति की स्थापना होने पर मैकडॉनल्ड उसका मंत्री नियुक्त हुआ और १९१२ तक इस पद पर रहा। १९०१ से १९०४ तक वह सेंट्रल फिंसबरी से लंदन काउंटी कौंसिल का सदस्य रहा और १९०६ से १९०९ तक स्वतंत्र मजदूर दल का अध्यक्ष। १९०६ में मजजदूर प्रतिनिधित्व समिति मजदूर दल में परिवर्तित हो गई। दल की ओर से इसी वर्ष मैकडॉनल्ड लिस्टर से पार्लियामेंट का सदस्य निर्वाचित हुआ। मैकडॉनल्ड ने पार्लियामेंट में अपनी योग्यता और कार्यक्षमता का परिचय दिया। १९११ के चुनाव में भी वह सफल रहा। दल के सदस्यों ने उसी को पार्लमेंट में दल का नेता निर्वाचित किया। १८९७ से १९१० तक उसने अपनी पत्नी के साथ कैनाडा, संयुक्त राष्ट्र अमरीका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और भारत की यात्राएँ कीं तथा विश्व राजनीति की जानकारी प्राप्त की। १९११ में पत्नी की असामयकि मृत्यु से उसको गहरा मानसिक आघात पहँुचा। १९११ से १९२४ तक वह दल का कोषाध्यक्ष रहा। देश और विदेश के विवादग्रस्त मामलों में वह शांतिवादी नीति का समर्थक था। १९११ से १९१३ के वर्षो में मजदूरों की हड़तालों से उत्पन्न परिस्थिति में उसने शांतिमय उपायों को बरतने का परामर्श दिया। प्रथम विश्व महायुद्ध में जर्मनी के विरूद्ध शस्त्र ग्रहण करने का उसने हार्दिक समर्थन नहीं किया और दस करोड़ पौंड के युद्धऋण के सरकरी प्रस्ताव का उसने विरोध किया। युद्ध के प्रश्न पर सहयोगियों से मतभेद के कारण १९१४ में वह दल के नेता के पद से हट गया। युद्धविराधी शांतिवादियों का उसने साथ दिया। १९१८ के निर्वाचन में अपने ही क्षेत्र से वह १४,००० मतें से हार गया। १९२२ के निर्वाचन में वह सफल रहा और पार्लमेंट में दल का नेता चुना गया। १९२३ के चुनाव में मजदूर दल को सफलता मिली और मैकडॉनल्ड के नेतृत्व में पहली बार जनवरी, १९२४ में मजदूर दल ने शासनभार सँभाला। प्रधानमंत्री के पद के अतिरिक्त परराष्ट्र विभाग भी मैकडॉनल्ड ने अपने हाथ में रखा। यह मंत्रिमंडल दस मास तक ही रहा। मजदूर दल की रूस संबंधी नीति का देश में बहुत विरोध हुआ। नए निर्वाचन में बाल्डविन के नेतृत्व में अनुदार दल पाँच वर्षो तक सत्तारूढ़ रहा। इस बीच मैकडॉनल्ड पार्लमेंट में विरोधी पक्ष का नेता रहा। १९२९ के चुनाव के पश्चात् मैकडॉनल्ड के नेतृत्व में दूसरी बार मजदूर दल का मंत्रिमंडल बना। विभिन्न राज्यों में शस्त्रों की होड़ कम करने के संबंध में मैकडॉनल्ड ने अमरीका जाकर वाशिंगटन में राष्ट्रपति हूवर से भेंट की और स्वदेश लौटकर प्रमुख राष्ट्रों का जनवरी, १९३० में लंदन में सम्मेलन किया, ब्रिटेन, अमरीका और जापान के बीच नौ शक्ति के संबंध में समझौता कराया पर निरंतर बढ़ती हुई बेरोजगारी से उत्पन्न आर्थिक संकट के निवारण के प्रश्न पर दल में मतभेद के कारण अगस्त, १९३१ में मंत्रिमंडल भंग हो गया। मैकडॉनल्ड के ही नेतृत्व में नया संयुक्त दलीय मंत्रिमंडल बना। अक्टूबर के चुनाव में मजदूर दल को केवल ५२ स्थान पार्लमेंट में मिले पर मंत्रिमंडल संयुक्त दलीय ही रहा और पाँच वर्षो तक मैकडॉनल्ड ही प्रधान मंत्री रहा। उसने १९३१ में भारीय गोलमेज संमेलन को लंदन में आरंभ किया और ब्रिटेन के स्वराज्यप्राप्त उपनिवेशों के संबंध का वेस्टमिंस्टर का कानून पारित कराया। उसने १९३२ में भारत की विधान सभाओं के संबंध में विवादग्रस्त सांप्रदायिक निर्णय किया, नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन में जनेवा में भाग लिया और विश्वव्यापी आर्थिक संकट पर विचार करने के निमित्त लाज़न में आयोजित संमेलन की अध्यक्षता की। १९२३ में लंदन में आयोजित विश्व आर्थिक सम्मेलन की भी उसने अध्यक्षता की। इन सम्मेलनों की असफलता, जर्मनी के शस्त्रीकरण से भावी युद्ध की संभावना और दुर्बल स्वास्थ के कारण मैकडॉनल्ड मई, १९३५ में प्रधान मंत्री के पद से हट गया। अगले दो वर्षो तक यह बाल्डविन के संयुक्त मंत्रिमंडल में कौंसिल का लॉर्ड प्रेसीडेंट रहा। स्वास्थ्यलाभ और विश्राम के लिये दक्षिणी अमरीका जाते हुए ऐटलांटिक सागर में जहाज में ९ नवंबर, १९३७ को उसकी मृत्यु हुई। मैकडॉनल्ड ने कई पुस्तकें भी लिखीं। सोशलिज्म ऐंड सोसाइटी (१९०५), सोशलज्म एंेड गवर्नमेंट (१९०९), औरश् द एवेकनिंग ऑव इंडिया (१९११) और द सोशल अनरेस्ट (१९१३) उसकी प्रमुख रचनाएँ हैं। [त्रिलोचन पंत]