मैंगनीज़ अयस्क (Manganese Ore) मैंगनीज़ प्रकृति में धात्विक (metallic state) में नहीं, अपितु ऑक्साइड, कार्बोनेट (carbonate) तथा सिलिकेट (silicate) के रूप में मिलता हैं। यद्यपि पृथ्वी की पर्पटी की रचना में इसका अंश ०.१० प्रतिशत से भी कुछ कम हैं। मैंगनीज़ के अयस्कों और उनके विशिष्ट गुणों का विवरण निम्नलिखित तालिका में दिया जा रहा हैं-

अयस्कों के नाम पाइरोल्युसाइट सिलोमिलेन मैंगनाइटश् रोडोक्रोसाइट रोडोनाइट

रासायनिक सूत्र मैं औश्श् मैं औहा मैंहा मैं का औ मैं सि औ

प्रतिशतत मात्रा ६३ ६२ ४८ ४२

स्फाट समुदाय ऑर्थोरॉम्बिक अस्फाटीय ऑर्थोरॉम्बिक हेक्सागोनल टाइक्लिनिक

रंगश्श् काला काला काला,भूरा लाल लाल

चूर्ण का रंग काला काला काला, गुलाबी सफेद सफेद

चमक धात्विक अर्धधात्विक अर्धधात्विक कांचोपम कांचोपन

विदलन (टूट) असम असम असम असम असम, शंखाभ

कठोरताश् २-२.५श्श् ५-६ ३.५-४.५ ५.५-६.४

आपेक्षिक घनत्व ४.८ ३.७-४.७ ४.२-४.४ ३.५ ३.५

मैंगनीज अयस्क के उपयोग- मैंगनीज़ के प्रारंभिक आर्थिक उपयोगों में लौह आयस्क प्रगलन (iron ore smelting) तथा काँच के कार्य मुख्य थे। पिछली शताब्दी के अंतिम आग में इस्पात उद्योग के विकास तथा उसमें नवीन कार्यपद्धतियों के संचालन के कारण मैंगनीज़ अयस्क की मांग बढ़ गई है और इधर कुछ वर्षो से उत्पादन ९० लाख टन से भी अधिक होने लगा है।

मैगनीज अयस्क इस्पात उत्पादन में, या तो प्रत्यक्ष मिश्रधातु निक्षेप अथवा फेरी-मैंगनीज (Ferro-manganese) के रूप में, प्रयुक्त किया जाता है। इसका कार्य या तो विऑक्सीकरण अथवा गंधकीकरण क्रियाएँ करना हैं। इसकी खपत कुल अस्पात उत्पादन का लगभग १.२५ प्रतिशत है। संपूर्ण उत्पादित मैंगनीजश् अयस्क का ९० प्रतिशत इस्पात उद्योग में प्रयुक्त होता है।

यह अयस्क कुछ विशेष मिश्रधातुओं के उत्पउरन के लिये भी बड़े स्तर पर प्रयुक्त किया जाता है।

इसके अधात्विक उपयोग मात्रा की दृष्टि से कुछ कम महत्व के हैं। यह मुख्य रूप से सूखी बैटरी (dry batteries) के निर्माण में, काँच बनाने में, मृत्तिका शिल्प (ceramics) तथा रासायनिक उद्योगों में प्रयुक्त होता है।

मैंगनीज़ की अंतरराष्ट्रीय माँग में वद्धि और भारतीय उद्योग-कोयले के अतिरिक्त मैंगनीज अयस्क ही भारत का मुख्य खनिज हैं। सारे देश में अभी तक केवल अच्छी जाति के अयस्क का खनन होता था और विदेशों के हाथों से चुना हुआ, उच्च कोटि का अयस्क निर्यात किया जाता था, यद्यपि मैंगनीज़ अयस्क का कुछ भाग भारत में भी कुछ इस्पात उत्पादकों द्वारा उपभोग में लाया जाता था। इस वरणात्मक खनन के परिणामस्वरूप निम्न कोटि का अयस्क विशाल राशि में पृथ्वी की गर्त में पड़ा हैं। आधुनिक विधियों से इस अयस्क को भी वाणिज्य स्तर पर खनित किया जा सकता है।

गत शताब्दी के अर्द्धभाग तक सभी कार्यो के लिये मैंगनीज़ अयस्क की माँग अत्यंत सीमित थी, किंतु सन् १८५६ में बेसेभर इस्पात विधि के प्रथम बार प्रकाशित होने के पश्चात् विश्व का इस्पात उत्पादन अनवरत वद्धि पर हैं, यहाँ तक कि सन् १९५३ में कुछ इस्पात का उत्पादन २,५०० लाख टन से भी अधिक हो गया, जो पचास वर्ष पूर्व के उत्पादन से पचास गुना अधिक है।

इस्पात उद्योग में वृहत् उन्नति और विकास होने के साथ साथ मैंगनीज उत्पादन में भी वृद्धि हुई जिससे मैंगनीज़ की अतिरिक्त माँग की पूर्ति की जा सके। परिणामस्वरूप संपूर्ण विश्व का मैंगनीज़ उत्पादन, जो सनद्य १८९२ में ४,००,००० टन से भी कम था, १०० लाख टन तक पहुँच गया और सन् १९५२ में ३० प्रतिशत अतिरिक्त वृद्धि हुई। भारत, जो प्रथम विश्वयुद्ध तक मैंगनीज़ के उत्पादन में रूप के अत्यंत समीप ही दूसरे स्थान पर था, रूस के अंतराष्ट्रीय व्यापार से पृथक् हो जोने के कारण प्रथम हो गया है। यद्यपि समय समय पर पश्चिमी और दक्षिणी अफ्रीका तथा ब्राज़ील से उसे चुनौती मिलती रही हैं।

६० वर्ष से भी अधिक हुए जब भारत में मैंगनीज़ अयस्क का खनन प्रारंभ हुआ। उस समय से अब तक भारतीय मैंगीज़ उत्पादन तथा उद्योग का विकास मुख्यत: विश्व इस्पात उत्पादन पर निर्भर रहा। इसकी माँग में विविधता का एकमात्र कारण इस्पात उत्पादन में उच्चावचन (fluctuation) ही रहा। सन् १९५० से १९५३ तक मैंगनीज़ की माँग में विशाल स्तर पर वृद्धि हुई तथा अधिक मुख्य प्राप्त होने के कारण मैंगनीज़ उत्पादन चोटी पर पहुँच गया। भारत में १९५३ ई० में १८,६४,००० टन मैंगनीज़ का उत्पादन हुआ।

भारतीय निक्षेप में प्राप्त होनेवाले मैंगनीज़ के खनिज निम्न प्रकार है:

(१)श् ब्राउनाइट (Braunnite)- ३ मै मैंसि औ(3 Mn2O3 Mn Si O3)।

(२)श् साइलोमिलेन (Psilomelane)- यह मैंगनीज़ का कोलॉइड रूप समझा जाता हैं, जिसमें मैंगनीज ४५ से ६० प्रतिशत तक हो सकता है। अवशोषित जल तथा सोडियम पोटैशियम वेरियम के ऑक्साइड भी इससे मिले रहते हैं।

पाइरोलुसाइट (Pyrolusite)-यह मैंगनीज़ का डाइऑक्साइड हैं, जिसमें सामन्यत- जल भी अल्प मात्रा में रहता हैं।

अनेक स्थानों पर मैंगनीज़ अयस्क के निक्षेपों का खनन कार्य हुआ किंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान मध्य प्रदेश है। सर लेविस फरमर के अनुसार भारतीय निक्षेपों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

(१)   आर्कियन शिलाओं (Archaeon rocks) के साहचर्य (association) में प्राप्त होनेवाले निक्षेप-इन निक्षेपों में गौंडाइट (gondite) भी सम्मिलित हैं। इन निक्षेपों से सर्वाधिक मात्रा में अयस्क प्राप्त हुआ है। ये निक्षेप बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बंबई तथा मैसूर में पाए जाते हैं। विशेषकर जिनमें गोंडाइट संमिलित है, वे निक्षेप बालाघाट, भंडारा, छिंदवाड़ा और झाबुआ (मध्य प्रदेश), नागपुर (बंबई), नारूकोट (गुजरात) तथा गंगपुर (उड़ीसा) में स्थिर हैं।

(२)   कोडूराइट (Kodurite) के साहचर्य में प्राप्त निक्षेप-ये निक्षेप पूर्वी घाट के समीप आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में तथा उड़ीसा के गंजम एवं कोरापुट में मिलते हैं, किंतु ये निक्षेप कम महत्व के हैं।

(३)   लैटराइट गुणों (Lateriite character) की सतही समृद्धियाँ (surface enrichments)- ये निक्षेप किसी भी स्थान में पाए जा सकते हैं, जहाँ पर उपर्युक्त निक्षेप मिलते हों। इस प्रकार के निक्षपों से अयस्क, बिहार के सिंहभूम उड़ीसा के क्योंझर, वोनाई तथा बालेंगीर-पटना, मैसूर के उत्तर कर्नाटक, बेलगाँव, बल्लारी, चित्रद्रुग, चिक्कमगलूरु, और शिमोगा जिलों में प्राप्त होते हैं।

मैंगनीज़ अयस्क के मुख्य उत्पादक मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा आंध्र (विशाखापत्तनम) हैं। कुल उत्पादन का ५० प्रतिशत से भी अधिक भाग मध्यप्रदेश से प्राप्त होता है। भारत में मैंगनीज़ अयस्क की अनुमानित मात्रा १,७५० लाख टन है, जिसमें लगभग १,५ लाख टन केवल मध्य प्रदेश में ही विद्यमान है।

मध्यप्रदेश के निक्षेप लंबे विस्तार में हैं तथा कहीं कहीं तो उनका विस्तार अनुदैर्ध्य दिखा (strike) के अनुप्रस्थ कई मीलोंश् तक सीमित है। सामान्य चौड़ाई लगभग १०० फुट है, जो अनेक दशाओंश् मेंश् समनत बलन (isoclinal fold) होने के कारण पर्याप्त बढ़ गई है। भंडारा और बालाघाट जिलों के निक्षेपों में प्राय: ८०० फुट की गहराई तक लगभग १० करोड़ टन मैंगनीज़ खनिज संचित। इसमें प्राय: आधी खनिज राशि ऐसे उत्तम वर्ग की होगी जिसमें मैंगनीज धातु का अंश ४५ प्रतिशत से अधिक है।

भारत में मैंगनीज़ खनन का विकास-भारत में सन् १८९१-९२ में विशाखपटनम के समीप मैंगनीज का खनन प्रारंभ हुआ। सन् १९०५ में उत्पादन ६३,००० टन था, जो १९०९ ई० में बढ़कर ११०,००० टन से भी अधिक हो गया।

सन् १८९९ में डब्ल्यू० एच० क्लार्क (W. H. Clark) तथा हार्वे डीड (Harvey Dodd) के पूर्वेक्षण ने मध्य प्रदेश के विश्वप्रसिद्ध निक्षेपों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया तथा इस नवीन क्षेत्र में भी उत्पादन द्रुत गति से बढ़ते लगा। मैंगनीज़ का उत्पादन सन् १९०५ में १,५.१,००० टन था तथा १९०६ में ३,५२,००० टन तक पहुँच गया।

सन् १९०९ तक खनन कार्य सांदूर, सिंहभूम, पंचमहल तथा मैसूर में उन्नति पर था। इस प्रकार इस समय तक भारत के लगभग संभी मुख्य निक्षेपों से उत्पादन प्रारंभ हो गया था, और कुछ उत्पादन ५,७९,००० टन तक पहुँच गया था जब कि कुल विश्व का उत्पादन १४,४५,००० टन था।

इसके पश्चात् सन् १९४७ तक मैंगनीज़ अयस्क के उत्पादन में अनेक उच्चवचन आए। इस समय उत्पादन ४,५१,००० टन था, जो १९५१ ई० में १२,९२,३००० टन हो गया। १९५८ ई० के प्राप्त अर्घवार्षिक आँकड़ों के आधार पर खनित मैंगनीज अयस्क की अनुमानित मात्रा २६,००,००० टन वार्षिक होगी जो प्रदशिर्त करता है कि मैंगनीज़ का खनन उद्योग अनवरत विकास को और अग्रसर है।

भारत में मैंगनीज-धातु-उद्योग का विकास और उसका भविष्य- भारत में मैंगनीज़ अयस्क की संकेंनिद्रत (concentrate) करने के लिये प्रथम आधुनिक संयंत्र सन् १९५४ में सी० पी० मैंगनीज़ ओर कं० लि० द्वारा उनकी खान डोगरी बुजुर्ग में स्थापित किया गया था। इस संयंत्र में स्थूल-माध्यम-पृथक्करण विधि (heavy media separation method) का प्रयोग होता है तथा ५ इंच से १/८ इंच आकार तक के ७५ टन अयस्क की प्रति घंटे उपचारित करता है। एक संयंत्र इसी कंपनी द्वारा किसी अन्य क्षेत्र में सिलिकामय विमुक्त अयस्क (silicious flat ore) के उपचार के लिये स्थापित करने की संभावना है। भारत में इस समय फेरो-मैंगनीज़ के चार संयंत्र हैं, जो बिहार में जमशेदपुर, उड़ीसा में जोघा, आंध्र प्रदेश में गारीविडी और डांडेली में हैं। इनके अतिरिक्त छह नवीन संयंत्रों के प्रतिष्ठापन के संबंध में भारत सरकार प्रयास कर रही है, जिनमें से कुछ का निर्माण कार्य पर्याप्त उन्नत अवस्था में है।

मैंगनीज़ अयस्क के वर्तमान भंडारों के अतिरिक्त, भविष्य में कुछ नवीन भंडार प्राप्त होने की संभावना है और वह भी विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ निक्षेप साधारण मिट्टी द्वारा आच्छादित हैं। इन क्षेत्रों में भू-भौतिक अन्वेषण द्वारा सफल होने की अधिक संभावना है।श् [विद्यासागर दुबे]