मेहरौली पुरानी दिल्ली से लगभग दस मील दक्षिण दिल्ली का ही एक भाग है जो इतिहास, पुरातत्व की इमारतों एवं उनके वर्तमान अवशेषों के लिये प्रसिद्ध हे मेहरौली का नामकरण 'मिहिरावलि' अथवा नक्षत्रों की पंक्ति से लिया जाता है। कहा जाता है कि ग्रहों, उपग्रहों और नक्षत्रों संबंधी मंदिरों की इस भीड़-भाड़ के कारण उक्त नगर का नाम मिहिरावलि अथवा नक्षत्रों की पंक्ति पड़ गया। कुत्ब क्षेत्र, जो मेहरौली का ही अंश है, पहले लालकोट के नाम से जाना जाता था जिसका निर्माण तोमर राजा अनंगपाल ने करवाया था। तोमर राजपूतों ने इसी जगह दिल्ली की स्थापना की थी। लालाकोट के भग्नावशेष अब भी वर्तमान हैं। १२वीं शती में लालकोट का विस्तार दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान ने किया। (ये इतिहास में राय पिथौरा के नाम से भी जाने जाते हैं।) अब यह स्थान किला-ए-राय पिथौरा के नाम से प्रसिद्ध है और इसे दिल्ली का प्रथम ऐतिहासिक शहर माना जाता है। सन् ११९३ में इस पर कुत्बउद्दीन ऐबक का आधिपत्य हुआ और किला-ए-राय पिथौरा दिल्ली सुलतान की प्रथम राजधानी हुआ। कुत्ब-उद्दीन ऐबक ने राजपूतों के ऊपर अपनी इस निर्णायक विजय के फलस्वरूप एक भव्य मस्जिद का निर्माण पर उल्लिखित अरबी भाषा के एक लेख से पता चलता है। इसके निर्माण की सामग्री जुटाने के लिये २७ मंदिरों को तोड़वाया गया था। इस मस्जिद में लगे पत्थरों एवं स्तंभों से यह बात सहज ही विदित हो जाती है। ऐबक ने सन् ११९९ में जगत् विख्यात कुत्ब मीनार इल्तुतमिश के राज्यकाल में पूर्ण हुआ। इस मीनार की आधुनिक ऊँचाई २३४ फुट है और यह अपनी स्थापत्य शैली के चमत्कारपूर्ण निर्माण के लिये दुनिया भर में अनूठी है। इल्तुतमिश ने ऐबक के बनवाए कुबत-उल इस्लाम का भी विस्तार किया।

इस मस्जिद के प्रांगण में विश्वविख्यात २२ फुट ऊँचा लौह-स्तंभ खड़ा है। इस पर अंकित ब्राहृी लिपि के एक लेख से इसका निर्माण प्रसिद्ध गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में माना जाता है एवं यह 'विष्णुध्वज' के नाम से जाना जाता है। यहाँ यह कब और किस प्रकार लाया गया यह अब तक विदित नहीं हो सका है।

यहाँ की अन्य प्रमुख इमारतों में अलाउद्दीन खलजी का बनवाया अलई दरवाजा एवं अधूरी अलई मीनार तथा इल्तुतमिश का मकबरा उल्लेखनीय हैं।

मेहरौली की कुछ अन्य ऐतिहासिक इमारतें ये हैं-----१. अलाउद्दीन खलजी का मकबरा एवं मदरसा; २. इमाम जामन का मकबरा; ३. आदम खाँ का मकबरा ४. दरगाह कुत्ब साहब; ५. जाफर महल।

इनके अतिरिक्त भी यहाँ विभिन्न काल की अनेक गौण ऐतिहासिक इमारतें एवं खंडहर वर्तमान हैं। [शांतिप्रकाश रोहतगी]