मेहता, सर फिरोजशाह मेहरवांजी (१८४५-१९१५) का जन्म बंबई के एक धनी पारसी कुल में हुआ था जिनके व्यापार की शाखाएँ देश विदेश में फैली हुई थीं। ये बी० ए० तथा एम० ए० की परीक्षाओं में प्रतिष्ठापूर्वक उतीर्ण हुए। इनकी असाधारण बुद्धिमत्ता देखकर इन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये इंग्लैंड भेजा गया। वहाँ पर न्यायवेत्ताओं की सर्वोच्च परीक्षा में उत्तीर्ण होकर ये स्वदेश लौट आए। इंग्लैंड में ये लंडन भारतीय सभा तथा 'ईस्ट इंडिया ऐसोसिएशन' के संपर्क में आए। यहीं से इनके राजनीतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक जीवन का शुभारंभ हुआ। न्यायवेत्ता के कार्य में इन्होंने अपूर्व ख्याति उपलब्ध की परंतु इन्होंने अपने स्वार्थसाधन के लिये न्याय की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं किया। तीन बार ये बंबई कारपोरेशन के सभााति चुने गए। उस समय कारपोरेशन की दशा शोचनीय थी। उसकी उन्नति के लिये मेहता जी ने हार्दिक प्रयत्न किया। इसलिये ये बंबई कारपोरेशन के बिना छत्रधारी राजा कहलाने लगे। बंबई सरकार ने कारपोरेशन के संगठन के लिये एक बिल प्रस्तुत किया जो अहितकर था। अत: बंबई की जनता ने उसका विरोध किया। इसे परिवर्तित करने के लिये बंबई के गवर्नर ने इस मसविदे को तेलंग और मेहता के पास भेज दिया। इस युगल मूर्ति ने सरकार तथा प्रजा दोनों के हित का ध्यान रखते हुए इस बिल को बड़ी सुदंरता से परिवर्तित किया। इन्होंने स्वतंत्र विचारों को प्रगट करने के लिये बंबई क्रानिकल नाम का दैनिक पत्र प्रकाशित करवाया। धीरे-धीरे इनके कार्यक्षेत्र का विस्तार होता गया तथा मेहता जी बंबई प्रांतीय सभा के सदस्य बने ओर वहाँ पर उनकी प्रतिभा चमकने लगी। बंबई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन के यह सभापति रहे। भारत सरकार तथा प्रांतीय सरकार को महत्वपूर्ण प्रश्नों पर यह सभा सत्परामर्श देती रही। १८८६ में आप बंबई लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य नियुक्त हुए। उन्होंने बजट, पुलिस संबंधी बिल आदि अनेक विषयों पर सरकार के स्वर में स्वर नहीं मिलाया और सरकार का विरोध किया। १९०१ में मराठी और गुजराती भाषाओं को बी० ए० ओर एम० ए० पाठ्यक्रम में लाकर अपने उपयोगी और महत्वपूर्ण कार्य किया। असामान्य योग्यता के कारण वह बंबई विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी नियुक्त हुए और उन्हें डाक्टर आव लॉ की पदवी दी गई। राष्ट्रीय सभा से उनका संबंध उसक प्रारंभ काल से ही रहा और उन्होंने उसकी भी सेवा बड़ी लगन से की। मेहताजी उच्च कोटि के देशभक्त तथा श्रेष्ठ भारतीय थे। वे एक जन्मसिद्ध वक्ता थे [शुभदा तैलंग]