मेसॉन (Meson) ऐसे नाभिकीय कणों को कहते है जिनका द्रव्यमान इलेक्ट्रॅान के द्रव्यमान से अधिक, पंरतु प्रोटॉन के द्रव्यमान से कम होता है। इस प्रकार के कई कण ज्ञात है, जो इलेक्ट्रॅान से भारी है, पंरतु प्रोटान से हल्के है।

सर्वप्रथम जापानी भौतिकविद् युकावा (Yukawa) ने सैंद्धांतिक आधार पर १९३५ ई० में मेसॅान के अस्तित्व का प्रतिपादन किया। उन्होंने नाभिकीय बलों को समझाने के लिये एक कण की कल्पना की, जिसका न्यूट्रॉनों और प्रोटानो के बीच विनिमय होता रहता है। सैद्धांतिक विवेचन द्वारा उन्होनें निष्कर्ष निकाला कि इस कण का द्रव्यमान इलेक्ट्रॅान के द्रव्यमान का लगभग २५० गुना होना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह कण अस्थायी होना चाहिए और इसके क्षय से इलेक्ट्रॅान उत्पन्न होने चाहिए। जिस समय युकावा ने अपना सिद्धांत प्रतिपादित किया, कोई ऐसा कण प्रयोगों द्वारा ज्ञात नहीं था। इसके दो वर्ष बाद सन् १९३७ मे ऐंडर्सन (Anderson) और नेडरमायर (Neddermeyer) ने कॉस्मिक किरणों (cosmic rays) के अध्ययन के दौरान एक ऐसे ही कण को खोज निकाला, जिसका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का २१२ गुना था तथा वह कण अस्थायी भी था। उस कण का नाम मेसॉन रख दिया गया और ऐसा विश्वास किया जाने लगा कि वे ही युकावा के कण हैं, जो नाभिकीय बल उत्पन्न करते है।

इन कणों के विस्तृत अध्ययन से यह पाया गया कि इन कणों की नाभिकाणुओं (nucleons) के साथ परस्पर क्रिया (intersaction) बहुत कम होती है। अतएव नाभिकीय बंधन ऊर्जा इन कणों के कारण नहीं हो सकती। तब अन्य कणों की खोज की जाने लगी और एक ऐसे कण का पता लगा जो पहले प्राप्त कण से कुछ अधिक भारी था। इसका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन की अपेक्षा २६५ गुना था। इस कण को पाइ-मेसॉन (p-meson) कहा गया और हल्के कण का नाम म्यू-मेसॉन (m-meson) रखा गया।

मेसॉनो का प्रयोगात्मक आविष्कार निम्न प्रकार से हुआ था : कॉस्मिक किरणों के अध्ययन के लिये फोटो प्लेटें गुब्बारें मेंश् बाँधकर ऊपरी वायुमंडल में भेजी जाती हैं। कॉस्मिक किरणों में पाए जाने वाले कण इन प्लेटों पर अपना प्रभाव डालते हैं। डेवलप करने पर इन प्लेटों में विभिन्न प्रकार के कणों की मार्ग रेखाएँ (tracks) दिखाई पड़ती हैं। इन मांग रेखाओं की मोटाई, लंबाई इत्यादि के अध्ययन से इन कणों का द्रव्यमान ज्ञात किया जा सकता है। इन्हीं में से कुछ मार्गरेखाएँ ऐसी थीं जिनके संगत कणों के द्रव्यमान मध्याणु के द्रव्यमान के बराबर थे। इनमें से अधिकांश कण मार्ग में ही क्षय हो जाते थे और क्षय में जो कण उत्पन्न होते थे उनके भी मार्ग आगे दिखाई पड़ते थे। इससे इन मेसॉनों की क्षयपद्धति (decay scheme) का भी पता चलता है।

पाई-मेसॉन------प्राथमिक कॉस्मिक किरणों में पाए जानेवाले, उच्च ऊर्जा वाले प्रोटॉन, अथवा ऐल्फा कण, जब ऊपरी वायुमंडल में नाभिकों से टकराते हैं तब पाई-मेसॉन उत्पन्न होते हैं।

आज कल प्रयोगशाला में p-मेसॉन अति उच्च ऊर्जावाले त्वरक यंत्रों के द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। जब ऊर्जा तक त्वरित नाभिकीय कण, जैसे प्रोटॉन अथवा ऐल्फा कण, किसी नाभिक से टकराते हैं, तो p-मेसॉन उत्पन्न होते हैं। अधिक ऊर्जावाले इलेक्ट्रॉन किसी पदार्थ से टकरा कर जब गामा किरणें उत्पन्न करते हैं, तो ये गामा किरणें भी नाभिकाणुओं से परस्पर क्रिया करके p-मेसॉन उत्पन्न करती हैं।

p-मेसॉन ऋण आवेशित, अनावेशित, अथवा धन आवेशित होते हैं। धन और ऋण आवेशित p-मेसॉन (p+ और p-) इलेक्ट्रॉन से २७५ गुना भारी होते हैं। इनके द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान me की इकाई लिखे जाते हैं। इस प्रकार आवेशित p-मेसॉन का द्रव्यमान mp+,श्श् mp- हो, तो

mp = 275 me��

अनावेशितश्श् p-मेसॉन (p-meson) का द्रव्यमान २६५ me के बराबर होता है।

तीनो प्रकार के पाई-मेसॉन अस्थायी होते हैं और इनका अति शीघ्र क्षय (dexay) हो जाता है। आवेशित पाई-मेसॉन के क्षय स म्यू-मेसॉन और न्यूट्रिनो उत्पन्न हाते हैं। इनका क्षय निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है:

श्श् pश्श् mश्श् + श्श् n

(पाई-मेसॉन) (म्यू-मेसॉन) (न्यूट्रिनो)

आवेशित पाई-मेसॉन की आयु लगभग १०-8 सेकंड है। अनावेशित पाई (p) मेसॉन का क्षय अति शीघ्र होता है। इसकी आयु १०-14 सेकंड के लगभग होती है। इसके क्षय से दो गामा किरणें (फोटोन) उत्पन्न होती हैं।

ऋण आवेशित पाई (p-) मेसॉन का नाभिक में अवशोषण भी होता है। धन आवेशित (p+) मेसॉन और धन आवेशित नाभिक में परस्पर विकर्षण होता है। अत: वे नाभिक में अवशोषित नहीं हो पाते।

तीनों ही प्रकार के पाई-मेसॉन का चक्रण (spine) शून्य, और इनकी जातीयता (parity) ऋण (-) है।

पाई-मेसॉन के नाभिकाणु की रचना------आरंभ में ऐसा माना जाता था कि न्यूट्रॉन और प्रोटॉन मौलिक कण हैं और इनकी रचना एकरूप (homogeneous) है, परंतु इस मान्यता के अनुसार इनके चुंबकीय आघूर्ण (magenetic moment) की सैद्धांतिक व्याख्या नहीं हो सकती है। उदाहरण के लिये, न्यूट्रॉन अनावेशित होता है, फिर भी उसका चुंबकीय आघूर्ण-१.९१ इकाई है। अब ऐसा विचार किया जाता है कि नाभिकाणु की रचना क्लिष्ट है। नाभिकाणु के केंद्रीय भाग में एक क्रोड़ (core) के चारों ओर एक, या अधिक पाई-मेसॉन घूमते रहते हैं। केंद्रीय क्रोड़ और बाहृा पाई-मेसॉन के आवेश इस प्रकार समंजित रहते हैं कि संपूर्ण तंत्र (system) का औसत आवेश नाभिकाणु के आवेश के बराबर हो। उदाहरण के लिये, न्यूट्रॉनश् में केंद्रीय धनात्मक क्रोड़ के चारों ओर, ऋण आवेशित पाई-मेसॉन घूमते हुए माने जाते हैं। न्यूट्रॉन का ऋणात्मक आघूर्ण इन्हीं पाई-मेसॉनों के कारण होता है।

p-मेसॉन का नाभिकीय बल----नाभिक के भीतर न्यूट्रॉन और प्रोटॉन संभवत: अपने आवेश और चक्रण का आदान प्रदान करते हैं। इस विनिमय के कारण एक प्रकार के बल की उत्पत्ति होती है, जिसे विनिमय बल (exchange force) कहते हैं। इस विनिमय बल के कारण नाभिकाणुओं में परस्पर आकर्षण होता है। न्यूट्रॉन और प्रोटॉन के बीच आवेश के विनिमय को युकावा ने मेसॉनो के आधार पर समझाया।

नाभिक के भीतर एक प्रोट्रॉन और एक न्यूट्रॉन की कल्पना कीजिए, जिनके बीच आवेश का विनिमय होता है। न्यूट्रॉन एक ऋणात्मक p-मेसॉन उत्सर्जित करता है, जिससे वह प्रोटॉन बन जाता है। यह मेसॉन दूसरे प्रोटॉन में अवशोषित हो जाता है और वह न्यूट्रॉन बन जाता है:

n+p �� p+p- +pp + n

इस समीकरण में न्यूट्रॉन एन का क्षय होकर प्रोटॉन p बनता है और p-मेसॉन उत्सर्जित होता है। यह मेसॉन पहले से उपस्थित प्रोटॉन p अवशोषित हो जाता है, जिससे न्यूट्रॉन n बनता है। इस प्रकार पहले जो नाभिकाणु न्यूट्रॉन था, वह अब प्रोटॉन हो गया है और पहले जो नाभिकाणु प्रोटॉन था, वह अब न्यूट्रॉन बन गया है, अर्थात् न्यूट्रॉन और प्रोटॉन में आवेश का विनिमय हो जाता है।

आवेश विनिमय धन आवेशित p+मेसॉन के द्वारा भी हो सकता है। तब

n + p n + p+�� +n �� p+n����������������������

अर्थात् प्रोटॉन में से धन आवेशित पाई मेसॉन उत्सर्जित होता है और यह न्यूट्रॉन में अवशोषित हो जाता है। इस प्रकार भी प्रोटॉन से न्यूट्रॉन में और न्यूट्रॉन से प्रोटॉन में परिवर्तन हो जाता है।

म्यू-मेसॉन (m-Meson)-----म्यू मेसॉन सदैव पाइ-मेसॉन के क्षय से उत्पन्न होते हैं। कॉस्मिक किरणों मे जो म्यू-मेसॉन पाए जाते हैं, वे भी कॉस्मिक किरणों में उपस्थित पाइ-मेसॉनो उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल में अधिक ऊँचाई पर पाइ-मेसॉन उत्पन्न होते हैं। पृथ्वी के समीप आते-आते उनका क्षय हो जाता है, जिससे म्यू-मेसॉन उत्पन्न होते हैं। इसलिये पृथ्वी की सतह के समीप की कॉस्मिक किरणों में म्यू-मेसॉन ही पाए जाते हैं। प्रयोगशाला मं म्यू-मेसॉा को उत्पन्न करने के लिये बताई विधि से पाइ-मेसॉन उत्पन्न किए जाते हैं और फिर उनके क्षय से म्यू-मेसॉन प्राप्त होते हैं।

अभी तक ऋण आवेशित (m-) और धनावेशित (m+) म्यू-मेसॉन ही ज्ञात हैं। अनावेशित म्यू-मेसॉन का अभी तक पता नहीं चला है। शायद इसका अस्तित्व नहीं है। ऋण आवशित और धन आवेशित दोनों ही प्रकार के म्यू-मेसॉनों का द्रव्यमान २१२ m होता है। म्यू-मेसॉन भी अस्थायी हैं और इनकी आयु २०१०-6 सेकंड है। एक म्यू-मेसॉन के क्षय से एक इलेक्ट्रॉन और दो न्यूट्रिनो उत्पन्न होते हैं। इस क्रिया को समीकरण के रूप मं निम्न प्रकार से लिख सकते हैं:

श्श् m+ श् e����������������� +��������� n�������� +������� ��n

म्यू-मसॉन इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो

म्यू-मेसॉन का चक्रण (spin) है और इसकी जातीयता ऋण (-) है। म्यू-मेसॉन और नाभिकाणुओं में परस्पर क्रिया बहुत क्षीण होती है।

अन्य मेसॉन -------आजकल पाइ-मेसॉन और म्यू-मेसॉन के अतिरिक्त अन्य कई नाभिकीय कण ज्ञात हैं, जिनके द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन के द्रव्यमान के मध्य में हैं। इन सबके द्रव्यमान पाइ-मेसॉन के द्रव्यमान से अधिक, परंतु प्रोटॉन के द्रव्यमान से कम हैं। इन सबकी आयु अत्यंत कम होती है। इस प्रकार के मसॉन निम्नलिखित हैं:

(क) टाउ-मेसॉन ( T- meson)----धन आवेशित टाउ (T+) और ऋण आवेशित टाउ (T-) मेसॉनों के बारे मे प्रयोगात्मक प्रमाण उपलब्ध हैं, परंतु अनावेशित टाउ (T) को प्रयोगों में अभी नहीं देखा गया है। इनके क्षय से तीन पाइ-मेसॉन उत्पन्न होत हैं। इनकी आयु लगभग ५१०-11 सेकंड होती है। इनका द्रव्यमान लगभग ९७४meश् होता है।

(ख) कप्पा मेसॉन (k-meson) ----ये धन आवेशित (k+), ऋण आवेशित (k-) और दो प्रकार के अनावेशित (k1 , k2) होते हैं। इनका द्रव्यमान ९९० me होता है।

(ग) ईटा मेसॉन (h-meson)-----यह अनावेशित होता है। इसका द्रव्यमान १,०९६ meश् होता है।

(घ) रो-मेसॉन (r-meson)------ये धन आवेशित (r+), ऋण आवेशित (r-) और अनावेशित (r) हो सकते हैं। इनका द्रव्यमान १,५०० meश् होता है।

(ड.) ओमेगा-मेसॉन (w-meson)-----यह अनावेशित होता है।

ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि इनके अतिरिक्त अन्य मेसॉन भी हो सकते हैं, परंतु उनके बारे में यहाँ विवेचन करना संभव नहीं है।

म्यू-मेसॉनिक परमाणु (m-mesonic atom)--ऋण आवेशित (p-) मेसॉन के विघटन से एक ऋण आवेशित म्यू-मेसॉन उत्पन्न होता है और वह इलेक्ट्रॉनों से टकराकर मंदित (slow) हो जाता है। म्यू-मेसॉन की नाभिकाणुओं के चक्रण और आवेश बराबर होते हैं। अत: यह ऋण मेसॉन नाभिक के चतुर्दिक् एक नियत कक्षा में घूमने लगता है। नाभिक और उसके चतुर्दिक घूमता हुआ यह मसॉन एक परमाणु सदृश है, जिसे मेसॉनिक परमाणु कहते हैं। जिस प्रकार एक इलेक्ट्रॉन नाभिक के चतुर्दिक विभिन्न कक्षाओं में घूम सकता है और प्रत्येक कक्षा के संगत उसकी भिन्न-भिन्न ऊर्जाएँ होती हैं, उसी प्रकार म्यू-मेसॉन भी नाभिक के चारों ओर विभिन्न ऊर्जास्तरों में घूम सकता है। चूँकि इलेक्ट्रॉन की अपेक्षा म्यू-मेसॉन लगभग २०० गुना अधिक भारी होता है, अतएव इसकी कक्षाओं का अर्धव्यास इलेक्ट्रॉन की संगत कक्षाओं के अर्धव्यास की अपेक्षा लगभग २०० गुना कम होता है। नाभिक के निकटतम वाली कक्षा में, जिसे के-कक्षा भी कहते हैं, मेसॉन नाभिक के इतना समीप होता है कि यदि नाभिक बड़ा हो तो यह वास्तव में आधे समय तक नाभिक के भीतर ही रहता है।

जिस समय म्यू-मेसॉन मंदित होकर किसी नाभिक के चतुर्दिक् एक कक्षा में घूमना प्रारंभ करता है, तो उस कक्षा में मेसॉन नाभिक तंत्र (system) ऊर्जा बहुत अधिक होती है, अर्थात् यह मेसॉनिक परमाणु उत्तेजित अवस्था में होता है। किसी नाभिक के चतुर्दिक् मेसॉन की जो अन्य कक्षाएँ हो सकती है, वे सब रिक्त होती हैं। अत:मेसॉन बाहृातम कक्षा से क्रमश: भीतरी कक्षाओं की ओर आता है। इन संक्रमणों (transitions) में जो ऊर्जा स्वतंत्र होती है, वह एक्सकिरणों अथवा गामा-किरणों के रूप में प्रकट होती है।

जब मेसॉन सबसे भीतरी (k-कक्षा) कक्षा में चला जाता है, तब वह अधिक समय तक नाभिक के भीतर ही रहता है। इस कारण वह किसी प्रोट्रॉन मे अवशोषित हो सकता है। क्रिया निम्न समीकरण से व्यक्त की जा सकती है:

m-श्श् +श् श्p��� ��� n�� +��� n

यहाँ प्रयुक्त संकेत क्रमश: मसॉन, प्रोट्रॉन, न्यूट्रॉन और न्युट्रिनों को व्यक्त करते हैं। यदि म्यू-मेसॉन अवशोषित न हो, तो इलेक्ट्रॉन में क्षय हो जाता है। (धनवंत किशोर गुप्त)