मेनोन वल्लत्तोल नारायण (१८७८-१९५८) मलयालम कवि जो दक्षिण मालाबार में पैदा हुए थे। इन्होंने १२ वर्ष की अवस्था से ही लिखना प्रारंभ किया। २८ वर्ष की अवस्था में इनका वाल्मीकि रामायण का अनुवाद प्रकाशित हुआ। जीवन के आरंभ में ही वधिर हो जाने के कारण उन्हें एक अत्यंत मर्मस्पर्शी कविता 'बधिर विलापम्' लिखने की प्रेरणा मिली। उन्होंने चित्र-योगम् नामक एक महाकाव्य भी लिखा जो कथा सरित्सागर में वर्णित मंदारवती और सुँदरसेन की कहानी पर आधारित है। उनका प्रथम खंडकाव्य आधुनिक शैली में 'बंधनस्थनाय अनिरूद्धना' है। उनकी अधिकांश छोटी छोटी कविताएँ और गीत साहित्य मंजरी में ९ भागों में संगृहीत हैं। उसकी 'एंटे गुरूनाथन्' कविता भारतीय भाषाओं में गांधी जी पर लिखी हुई अच्छी से अच्छी कविताओं में से एक है। उनकी कुछ अधिक महत्वपूर्ण कविताएँ जो साहित्यमंजरी ग्रंथों में तीक्कोल्लि, कविता, आंपाटियिल चेल्लुन्ना अक्रूरन, ओरूकृष्णप्परू-बिनोटु, राधयुटे कृतार्थता, परीक्षयिल जयिच्चु, नागिला भारतस्त्रीकल तन भावशुद्धि इत्यादि।

मलयालम में उनके तीन खंड काव्य हैं। शिष्यनुम् मकनुम् अच्छनुम्मकलुम् और मग्दलन मरियम्। शिष्यनुम् मकनुम् में परशुराम ओर गणेश के बीच युद्ध और शिव पार्वती की मुद्राओं का वर्ण है। अच्छनुम् मकलुम् कश्यप मुनि के आश्रम पर विश्वामित्र और शकुंतला के बीच मिलन की कल्पना करता है। मग्दलनमरियम का आधार बाइबिल की कहानी हे। वल्लतोल ने अनेक सुंदर राष्ट्रीय कविताएँ भी लिखी हैं। इन कविताओं ने केरल की जनता को राजनीतिक तंद्रा पराजय की अवस्था से जागरित करने में पर्याप्त योग दिया हे। राजनीतिक आंदोलनों के संगठित होने के बहुत पहले ही केरल में नारायण मेनोन ने ऐसी कविताओं की रचना की जिनमें दरिद्रों की दु:खद अवस्था का वर्णन एवं मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण की निंदा की गई है।

नारायण मेनोन ने अपनी कविताओं में उच्च कोटि की प्राविधिक पूर्णता प्राप्त की है। उन्होंने स्वाभाविक द्रविड़ छंदों को पुनरूज्जीवित किया एवं लोकप्रिय बनाया ओर मलयालम पद्यरचना को अत्यधिक रूप से प्रभावित किया। उन्होंने अनेक संस्कृत नाटकों, कुछ पुराणों आदि का तथा ऋग्वेद का मलयालम में अनुवाद कर ख्याति प्राप्त की। उन्होंने कथकलि का कायाकल्प किया और१९०३ ई० में केरल कला मंडलम् की स्थापना की। [जी. बालमोहन तंपी]