मेनिएर्ज रोग (Menier`s disease) का पत पहले मेनिएर ने १८६१ ई० में लगाया था जिनके नाम पर इस रोग का नाम पड़ा। इसके उत्पन्न होने का कारण तीव्र आंतकर्ण रक्तस्राव (acute labyrinthine haemorrage) तथा तीव्र पूयजनक आंतरकर्णशोथ है। किसी किसी व्यक्ति में आधारभूत धमनी के असाधारण स्फीत (aneurion), अथवा आभ्यंतर श्रवण धमनी के बढ़ जाने, अथवा अनुमस्तिष्क कर्णकटक अर्बुद (cerebellum pontile tumor) इत्यादि कारणों से भी यह रोग हो सकता है। इन सभी में मस्तिष्क की आठवीं नाड़ी का प्रधाण क्षेत्र (vestibular area) अवश्य आक्रांत होता है।
इस रोग का आक्रमण अधिकांश युवावस्था में होता है। रोगी को एकाएक चक्कर आने लगता, कानों में झनझनाहट की आवाज होती, उल्टी आती और अंशत: बहरापन हो जाता है। ऐसे रोगी स्वस्थ भाग की ओर लेटे मिलते हैं। दूसरी करवट लेटने से उल्टी आने लगती है, आँखों की काली पुतली विकृत पार्श्व की ओर हो जाती है और रोगी पूर्णतया बेहोश हो जाता है। अच्छे होने पर रोगी के बहरे होने का भय रहता है१
रोगी को पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए, सिर पर बर्फ की टोपी रखनी चाहिए और तरल आहार देना चाहिए। नमक बिल्कुल न देना चाहिए। वमन इत्यादि का उपचार उपयुक्त औषधियों द्वारा करना चाहिए। [प्रियकुमार चौबे]