मेथिल ऐल्कोहॉल जिसके दूसरे नाम मेथेनोल, काठ स्पिरिट और कार्बिनॉल हैं, मोनोहाइड्रिक ऐलिफैटिक प्राथमिक ऐल्कोहॉल श्रेणी का प्रथम सदस्य है। इसको सर्वप्रथम रॉबर्ट बॉयल ने सन् १६६१ में काठ के भंजक आसवन में मिलने वाले पदार्थो में पाया था। इसका सूत्र काहा३. औहा (CH3.OH) गलनांक-९७.८� सें०, क्वथनांक ६४.८� सें० तथा आपेक्षिक गुरूत्व ०.७९२४ है। यह पानी कार्बनिक और द्रवों में पूर्णतया मिश्र्य है और एक अत्यंत विषैला तथा ज्वलनशील पदार्थ है।
मेथेनोल के रासायनिक गुणधर्म प्राथमिक ऐल्कोहॉलों के प्रारूपिक हैं। मेथेनोल एक अत्यंत महत्वपूर्ण औद्योगिक रसायनक है जिसका वार्षिक उत्पादन करोड़ों किलोग्राम आँका गया है। इसके व्यापारिक निर्माण की आधुनिक पद्धति कार्बन मोनोऑक्साइड, या कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च दाब अवकरण पर निर्भर है। १०० से ६०० वायुमंडलीय दाब एवं २५०� से ४००� सेंटीग्रेड ताप पर धातु विशिष्ट के ऑक्साइड उत्प्प्रेरकों के संमुख हाइड्रोजन एवं कार्बन मोनोऑक्साइड, या डाइऑक्साइड की अभिक्रिया से मेथेनोल का संश्लेषण किया जाता है। अल्प मात्रा में यह प्राकृतिक गैस के हाइड्रोकार्बन के आंशिक ऑक्सीकरण से और काठ के भंजक आसवन से प्राप्त पाइरोलिग्नियस अम्ल से भी प्राप्त होता है।श्श्
मेथेनोल की सर्वाधिक उपयोगिता फार्मऐल्डिहाइड, जो एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्बनिक रसायनक है, के निर्माण के लिये एक मध्यवर्ती (intermidiate) के रूप में है। यह सरल विधियों से अन्य महत्वपूर्ण पदार्थो में, जैसे मेथिल ऐसीटेट, मेथिल क्लोराइडा, मेथिल सैलिसिलेट और मेथिल ऐमिन में बदला जा सकता है। मेथेनोल एक उत्तम विलायक एवं निष्कर्षक होने के कारण प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त होता है। विशिष्ट ईधंन, प्रतिहिमायक एवं ऐथिल ऐल्कोहॉल से मेथिलेटेड स्पिरिट बनाने के लिये विकृतीकारक के रूप में इसका उपयोग होता है। [रामचंद्र हरि सह'ाबुद्धेज्]