मेघनाद साहा (सन् १८९३-१९५६) प्रमुख, भारतीय भौतिकी विद्, का जन्म पूर्वी बंगाल के ढाका जिले के सिओराताली नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री जगन्नाथ साहा साधारण व्यापारी थे। सन् १९०९ में मेघनाद ने कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेशिका परीक्षा पास की। गणित में विश्वविद्यालय के छात्रों में तथा पूरी परीक्षा में पूर्वी बंगाल के छात्रों में आप सर्वप्रथम आए। इंटरमीडिएट, बी० एस-सी० और एम० एस-सी० परीक्षाओं में भी ससम्मान उत्तीर्ण हुए तथा अत्युच्च स्थान पाए।

सन् १९१६ में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सायंस कॉलेज में आपको एक पद मिल गया तथा आपके उच्च अनुसंधान के आधार पर सन् १९१८ में डी० एस-सी० की उपाधि मिली। इसी समय तारा भौतिकी संबंधी एक निबंध पर आपको प्रेमचंद रायचंद पुरस्कार भी मिला। सन् १९२१ में आप इंग्लैड गए। इंपीरियल कॉलेज ऑव सायंस, लंदन, में प्रोफेसर फाउलर के साथ तथा बर्लिन में प्रोफेसर नर्न्स्ट की प्रयोगशाला में आपने महत्वपूर्ण खोजें कीं। विदेश से वापस आने पर आपकी नियुक्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में प्रोफेसर तथा अध्यक्ष के पद पर हुई। सन् १९३८ में आप कलकत्ता विश्वविद्यालय के सायंस कॉलेज में पालित प्रोफेसर के पद पर चले गए। सन् १९५२ में इंडियन ऐसोसिएशन फॉर दि कल्टिवेशन ऑव सायंस के निदेशक नियुक्त हुए।

सन् १९२१ में ही तारों के ताप और वर्णक्रम के निकट संबंध के भौतिकीय कारणों को आपने खोज निकाला था। २६ वर्ष की अल्पायु में श्री साहा के कारण तापीय आयनन (Thermal Ionization) के अपने सिद्धांत के कारण विश्व प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। इसी सिद्धांत को तारों के वर्णक्रम पर लगा कर, इन्होंने आणविक तथा परमाणविक वर्णक्रम संबंधी अनेक गुत्थियों को सुलझाया। इनके अनुसंधान से सूर्य तथा उसके चतुर्दिक् अंतरिक्ष में दिखाई पड़ने वाली प्राकृतिक घटनाओं में से मुख्य के कारण ज्ञात हुए।

सन् १९२७ में, कुल ३४ वर्ष की उम्र में ही, इंग्लैंड की सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक संस्था, रॉयल सोसायटी, का फेलो चुने जाने का उच्च संमान आपको मिला। सन् १९३० में आप एशियाटिक सोसायटी ऑव बेंगाल के फेलों तथा सन् १९४४-४६ में सभापति हुए और सन् १९३४ में इंडियन सायंस कांग्रेस के सभापति मनोनीत हुए। इंग्लैंड के इंस्टिट्यूट ऑव फिजिक्स ने तथा अंतरराष्ट्रीय ज्योति: सभा ने भी आपको सदस्य चुनकर संमानित किया था।

दि इंडियन फिज़िकल सोसायटी तथा इंस्टिट्यूट ऑव न्यूक्लियर फिज़िक्स की स्थापना तथा कलकता के इंडियन इंस्टिट्यूट फॉर दि कल्टिवेशन ऑव सायंस के विस्तार का श्रेय आपको है।

[भगवानदास वर्मा]