मेघदूत महाकवि कालिदास द्वारा विरचित विप्रलंभ शृंगार परक खंड काव्य। इसका कथासूत्र साधारण सा है----विरही यक्ष रामगिरि से अपनी पत्नी को संदेश भेजता है और दूत बनाता है मेघ को जो अचेतन है, मूक है। इस साधारण कथा को कवि ने अपनी उच्च आदर्शत्मकता, विरहव्यथा की सरस अभिव्यंजना, काव्यमय भौगोलिक वर्णानों की संपूर्णाता, आदि के यथास्थान संयोजन द्वारा अत्यंत रमणीय बना दिया है और यक्ष के संदेशवाहक मेघ को अमर कर दिया है।
मेघदूत में पूर्व मेघ और उत्तर मेघ नाम से दो विभाग हैं। पूर्व मेघ में कल्पनाओं की रंगीनी और भावों की तरलता के अपूर्व संयोजन द्वारा प्रकृति के अनेक रम्य चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। रामगिरि से अलका तक के प्रकृति वर्णन में मालक्षेत्र में जनपद वधूजनों का वर्णन, विदिशा, विंध्य की तलहटी में हाथी के मस्तक पर की पत्ररचना के समान छिटकी हुई रेवा की धारा, रसभरी सिप्रा नदी, उज्जयिनी, देवगिरि, चंबल, रंतिपुर, कुरूक्षेत्र, कनखल में गंगा, क्रौंचरध्रं के मार्ग से होते हुए कैलास पर्वत और फिर अलका पहुँचने तक भौगोलिक यात्रा के काव्यमय दृश्यों का उत्कृष्ट एवं संमोहक चित्र आ जाता है। उत्तर मेघ में अलकापुरी का, शापित यक्ष के गृह का और विरहविधुरा यक्ष पत्नी का वर्णन है। इसके अनंतर 'यक्ष संदेश' है जिसमें कल्पना और भावना, दोनों का घन संशिलष्ट आवेगमय रूप मिलता है। काव्य में संयोग शृंगार को गौण करता हुआ विप्रलंभ अपने अलकापुरी का वर्णन प्रमुख है। इनमें कवि रम गया है, मूलत: नागरिक जीवन का कवि होने के कारण। मेघ यक्ष का संदेशवाहक है अत: इसे दूत काव्य कहते हैं जो इसके नाम 'मेघदूत' से ही स्पष्ट है। मेघदूत के छंद गेय हैं अत: इसे गीतिकाव्य कहना भी उपयुक्त होगा।
इस काव्य का संस्कृत साहित्य पर अमिट प्रभाव पड़ा। इसके अनंतर संस्कृत में लिखे गए दूत काव्यों की एक परंपरा सी बँध गई। इनकी संख्या शताधिक होगी। इनमें गौड़ीय संप्रदाय के भी दूत काव्य हैं और जैनियों के भी।
मेघदूत पर अनेक संस्कृत टीकाएँ हैं। भारत की विभिन्न भाषाओं के अतिरिक्त विदेशी भाषाओं में भी उसके अनुवाद हुए हैं जिनमें जर्मन, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, इतालीय, स्वीडिश, आदि हैं। सिंहली और तिब्बती अनुवाद के अतिरिक्त मेघदूत के चीनी अनुवाद का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
प्रकृति ही मेघदूत की काव्यकला का मूलदंड है जिसके सरस चित्रों को एक कुशल चितेरे की तरह कवि ने चित्रित किया है। मेघदूत का कवि यक्ष की आँखों से देखता है और वह यक्षदूत मेघ के साथ है, वह ऊँचे से देखता है। वर्णन तत्व की प्रमुख विशेषता है शैथिल्य का अभाव। उच्च कल्पना सौंदर्य, तलस्पर्शी अनुभूति और संगीतमयी कविवाणी ने संयोग और विप्रलंभ शृंगार को जो रूप दिया है वह साहित्य में अद्वितीय है। (विश्वनाथ त्रिपाठी)