मेंडेल, ग्रेगर जोहैन (Mendel, Gregor, Johann,सन् १८२२-८४) ऑस्ट्रिया निवासी, मठवासी साधु थे, जिन्होंने जैविक वंशागति (inheritance) के मूलभूत नियमों को ढूँढ निकाला। मारेविया प्रदेश के हाइनज़ेंडॉर्फ़ (Heinzendorf) नामक कस्बे में इनका जन्म हुआ था तथा सन् १८४७ में ये ब्रन (Brunn) के ईसाई मठ के साधु वर्ग में संमिलित हुए। मठ के व्यय से ही इन्होंने वियेना (Vienna) के विश्वविद्यालय में सन् १८५१ से १८५३ तक विज्ञान की शिक्षा पाई और स्नातक होने पर रेयाल स्कूल (Realschule) में पढ़ाने लगे। सन् १८६८ में ये मठाधीश निर्वाचित हुए।
मेंडेल ने वियेना से वापस आने के बाद बागीचों में उगने वाले पौधों के साधारण लक्षणों (characters) की वंशागति पर दीर्घकाल तक प्रयोग किए। इस अनुसंधान में इनका मार्ग तत्कालीन अन्य अन्वेषकों से पूर्णत: भिन्न था। मेंडेल द्वारा प्राप्त फलों से सिद्ध हुआ कि इन लक्षणों की वंशागति कुछ सरल सांख्यिकीय नियमों के अनुसार होती है। इनके अनुसंधान संबंधी पुस्तक का प्रकाशन सन् १८६६ में हुआ, किंतु वैज्ञानिकों ने उस पर ध्यान नहीं दिया और इनके अनुसंधान की महत्ता को किसी ने भी नहीं समझा। अनेक वर्ष बाद जब अन्य तीन वैज्ञानिकों ने सन् १९००० में, वही बातें फिर ढूढँ निकाली, तब वैज्ञानिक जगत ने मेंडेल के कार्य की महत्ता स्वीकार की। मेंडेल के प्रसिद्ध, मुख्य प्रयोग मटर के पौधों को लेकर किए गए थे, पर कुछ अन्य पौधों तथा मधु-मक्खियों के संकरण संबंधी अन्वेषण भी इन्होंने किए थे।
उपादानीय (factorial) वंशागति के जो सिद्धांत मेंडेल ने ढूढँ निकाले और एकल लक्षणों के मात्रिक (quantitative) अन्वेषण की जिन रीतियों का प्रयोग मेंडेल ने अपने अन्वेषणों में किया था, वे आज आनुवंशिकी (genetics) विज्ञान का आधार हो गई हैं। वंशागति के घटकों को अब जीन (gene) कहते हैं (देखें आनुवंशिकता)। यद्यपि आधुनिक खोज से इस संबंध की अन्य अनेक पेचीदा बातें ज्ञात हुई हैं, फिर भी मेंडेल द्वारा निकाली रीतियाँ तथा मौलिक सिद्धांत आज भी अपने मूल रूप में स्वीकृत हैं।श् (भगवानदास वर्मा)