मृगावती (१) भगवान बुद्ध के समकालिन कौशांबी नरेश उदयन की पत्नी का नाम मृगावती है। (२) वैशाली नरेश चेटक की पुत्री, महावीर की ममेरी बहन और राजा शतानीक की पत्नी। इनकी गणना जैन धर्म में १६ सतियों में की जाती है। इनकी कथा भारतीय साहित्य में प्रसिद्ध है। उसके अनुसार जब वे गर्भवती हुई तो एक दिन उन्हें रुधिरस्नान का दोहद हुआ। उसे पूरा करने के लिए प्रधान मंत्री युगंधर ने बावली को लाल रंग के पानी से भरवा दिया। उसमें स्नान कर ज्यों ही मृगावती बाहर आई, मांसपिंड जानकर मारंड नामक पक्षी उन्हे अपने पंजे में दबोचकर उड़ गया। १४ बरसों तक शतानीक ने उनकी खोज कराई पर कुछ पता न चला। एक दिन एक वनवासी कंकण बेचते हुए पकड़ा गया जिस पर राजा का नाम अकिंत था। उसे ही रक्तस्नान के दिन मृगावती ने पहना था। राजा ने कंकण देखते ही पहचान लिया। इस प्रकार वनवासी की सहायता से रानी मृगावती अपने पुत्र उदयन के साथ शतानीक को पुन: प्राप्त हुई। कुछ दिनों पश्चात् एक चित्रकार के पास मृगावती का चित्र देखकर उज्जैन नरेशश् प्रद्योत उन पर मुग्ध हो गया और शतनीक से उनकी माँग की। किंतु शतानीक ने देने से मना कर दिया। इस पर दोनो में युद्ध छिड़ गया। इसी बीच शतानीक की मृत्यु हो गई और महावीर कौशांबी पधारे। मृगावती ने उनसे दीक्षा ग्रहण की और ६० समय उपवास कर मोक्ष प्राप्त किया।

जैन साहित्य में इस कथा की चर्चा है ही : महायान बौद्ध पिटक में भी सुधन मनोहरा की कथा के रुप में इसकी चर्चा है।

१६वीं शताब्दी के आरंभ (१५०३-०४ ई०) में, कुतबन नामक मुसलमान कवि ने मिरगावती नाम से एक प्रेमाख्यानक काव्य प्रस्तुत किया है। इस काव्य की कथा है कि कंचन नगर के राजा रुप मुरारी की बेटी मृगावती मृगी का वेश धारण कर वन में विचरण कर रही थी। उसे चंद्रगिरि के राजा गणपति देव के पुत्र ने देखा और उस पर आसक्त हो गया और उसकी खोज में योगी वेश धारण करके निकला । मार्ग में रुपमणि नामक राजकुमारी की राक्षस से रक्षा कर विवाह किया। फिर उसे छोड़ कर मृगावती की खोज में चल पड़ा। नाना कष्ट सहते हुए कंचन नगर पहुँचा और वहाँ मृगावती को राज करते पाया। वहाँ १२ वर्ष रहा। जब वह घर न लौटा तो उसे बुलाने के लिए उसके पिता ने दुत भेजा। रास्ते में वह रुपमणि से मिलता हुआ राजकुमार के पास पहुँचा और उसे लौटा लाया। अंत मे एक दिन आखेट करते हुए राजकुमार की मृत्यु हो गई और मृगावती और रुपमणि उसके साथ सती हो गई। इस कथा के आधार पर पीछे अनेक लोगो ने हिंदी और बंगला मे रचनाएँ की हैं।श्श् (परमेश्वरीलाल गुप्त)