मूल्यांकन, खदानों का सामान्य रूप से खदान का मूल्य निम्नांकित बातों पर निर्भर है:
(१)�������������� खदान से होनेवाली वार्षिक आय;
(२)�������������� उत्पादन अनुवृत्ति की वर्ष संख्या, तथा
(३)�������������� भावी लाभों का वर्तमान मूल्य।
इन तीनों उपादनों को पृथक-पृथक निर्धारित कर सकना संभव नहीं है। वार्षिक आय तथा खदान का जीवन उत्पादन दर पर आधारित है तथा इसका चुनाव इस प्रकार किया जाना चाहिए कि अधिकतम वर्तमान मूल्य मिल सके। उत्पादन दर ही प्रत्यक्षत: खदान के जीवन को निर्धारित करती हे, क्योंकि जैसा स्पष्ट है, यदि खनिज की दी हुई मात्रा खनित की जाती है, तो जितनी अधिक वार्षि उत्पादन दर होगी उतनी शीघ्रता से खान की आयु घटती चली जाएगी। वार्षिक लाभ भी उत्पादन दर पर आधारित है। यह प्रति टन लाभ गुणित टनों की संख्या के कारण नहीं, बल्कि इसलिये भी कि स्वयं प्रति टन लाभ भी उत्पादन दर के साथ बढ़ जाता है, क्योंकि कार्य बृहद् परिमाण में होने से उत्पादन मूल्य कम हो जाता है। इसके अतिरिक्त उत्पादन मूल्य में कटौती हो जाने के कारण अपेक्षाकृत घटिया खनिज का खनन भी संभव हो जाता है, जिसका अर्थ है वार्षिक क्षमता में वृद्धि। इसके साथ ही खनिज के परिमाण में वृद्धि होने से खदान की आयु भी बढ़ जाती है।श्
किसी चालू खदान का मूल्यांकन करते समय आवश्यक चरणों को संक्षेप में इस प्रकार अनुबद्ध किया जा सकता है:
(१) प्रतिदर्श के आधार पर खनिज के प्रकार तथा परिमाण की गणना।
(२) प्रतिदर्श के प्रकार (sampled grade) के आधार पर तनूकरण (dilution) के लिये आवश्यक संशोधन की गुंजाइश रखते हुए पेषणी-मुख-प्रकार (mill head grade) की गणना।
(३) पेषणी-मूख-प्रकार एवं प्रति शत उपलब्धि का प्रयोग करते हुए उपलब्ध धातु की मात्रा की गणना।
(अ) यदि उत्पादों को संकेद्रित रूप में विक्रय किया जाना है, तो खनिज के धातुशोधक विघटन मूल्य (smelter liquidation value) की गणना।
(४)���� चरण में आता है, परिचालन लागत (operating cost) अनुमान, जिसके अंतर्गत निम्नांकित परिव्ययों का समावेश है:
(क) खनिज का खनन परिव्यय;
(ख) खनित खनिज का दलन एवं पेषण परिव्यय;
(ग) धातु अथवा सारकृत (यदि ३ (अ) में इसकी गणना की है ) की ढुलाई;
(घ) विकास मूल्य तथा
(च) संयंत्र एवं उपकरण का परिरक्षण परिव्यय।
संयंत्र परिरक्षण के अंतर्गत आनेवाले मदों को छोड़कर मूल्य हृास (depreciation) तथा रिक्तीकरण (depletion) आदि का इसमें समावेश नहीं है। यद्यपि कर, बीमा तथा अन्य ऊपरी खर्चो का बहुधा गणना के पिछले चरणों में अनुमान लगा लिया जाता है, तथा उन्हें लाभ से घटा दिया जाता है, (क्योंकि उनमें परिवर्तन टन मान से प्रत्यक्ष में संबंधित नहीं है), तथपि वे खर्चें का एक अंग हैं और इनका यहाँ समावेश सुविधापूर्ण है।
(५)� प्रति टन लाभ प्राप्त करने के लिये संभाव्य उत्पादन दर का टन प्रति वर्ष में अनुमान कर उसे प्रतिटन लाभ से गुणा कर दिया जाता है।
(६)� वार्षिक लाभ प्रापत करने के लिये संभाव्य उत्पादन दर का प्रति वर्ष में अनुमान कर उसे प्रति टन लाभ से गुणा कर दिया जाता है।
(७)� खनिज भंडार की आयु प्राप्त करने के लिये खनिज भंडार की मात्रा को वार्षिक उत्पादन से भाग दिया जाता है।
(८)� भावी वार्षिक लाभ का वर्तमान मूल्य ज्ञात करने के लिये वार्षिक लाभ का अपहार कर दिया जाता है।
(९)���� वर्तमान भंडारों के अतिरिक्त अपेक्षित अंतिम टन मान का अनुमान कर वर्तमान मूल्य में से अपहार कर दिया जाता है।
(१०) ९ मे अनुमानित टन मान की संभावना को प्रदर्शित करने- वाला एक गुणांक मान लिया जाता है तथा ऐसे खनिज के वर्तमान मूल्य में इसका गुणा कर दिया जाता है।
(११) अव्यक्त खनिज के वर्तमान मूल्य तथा विकसित अथवा खनित खनिज के वर्तमान मूल्यों को जोड़ दिया [(८) + (१०) ] जाता है।
(१२) खनिज भंडारों के वर्तमान मूल्य का निर्धारण हो जाने के पश्चात् संयंत्र के प्रथम मूल्य को उसमें घटा दिया जाता है।
(१३) यदि तत्काल उत्पादन प्रारंभ नहीं करना है, तो रूके हुए कार्य के लिये भी अपहार लगा दिया जाता है।
उपर्युक्त चरणों के परिणाम का निष्पादन कई प्रकार से किया जा सकता है।
जहाँ तक सामान्य सिद्धांतों का प्रश्न है, 'खनिप्रत्याशन' का मूल्यांकन भी एक चालू खदान की भाँति ही किया जाता है तथा कार्यरूप में भी अंतर किसी विशेष बात पर जोर दिए जाने का ही हो सकता है। खनि-प्रत्याशन, जहाँ विकसित खनिज की मात्रा बहुत ही थोड़ी अथवा नगणय हो, अप्रकट तथा अविकसित खनिज के मूल्य पर ही जोर दिया जाना स्वाभाविक है। यह मूल्य अधिकांशत: निम्नांकित दो बड़े परंतु अज्ञात परिमाणों के मूल्य की परख पर ही निर्भर है:
(१)������� सफलता की दशा में अपेक्षित खनिज का परिमाण तथा मूल्य, तथा (२) खनिज प्राप्ति की संभावनाओं पर आधारित जोखिम के लिये अपहार।
उपर्युक्त उत्पादानों के संबंध में निर्णय की महत्ता का आभास इससे सहज ही लगाया जा सकता है कि लाभ अनुमान के लिये अधिकतम संभव अनुभवी को होगी। इतना ही नहीं, लॉक के शब्दोें में ' हमें मानना पढ़ेगा कि खबि प्रत्याशन संबंधी निर्णय वास्तव में एक परायक्त समस्या है, जो मार्गदर्शन के लिये नियमों की न्यूनता तथा विकल्पों की अधिकता के लिये । (जिनमें से किसी एक का चुनाव भी स्वयं एक समस्या है) बेजोड़ है। सुंदर स्वप्न सी मोहक तथा प्रयोग में व्यावहारिक नियमों से इतनी उपेक्षित शायद ही कोई दूसरी समस्या है।' जब इतने अधिक उपादानों की केवल कल्पना करनी पड़े, और विशेषकर जब दायित्वपूर्ण उपादान भी इतने अधिक व्यक्तिगत निर्णय के विषय हों, तो स्वाभाविक ही प्रश्न उठता है। 'इस हिसाब किताब में फिर क्यों दिमाग पचाना ? क्यों नहीं मूल्य का केवल अनुमान कर मामला खतम किया जाय ?' इसका कितना उचित उत्तर दिया प्रो० मैकन्स्ट्े ने कि 'यह सत्य है कि एक दीर्घ अनुभवी इंजीनियर के लिये यह संभव है कि कुछ वैयक्तिक नियमों के आधार पर वह सही मूल्यांकन कर दे, परंतु जिन्हे यह षष्ठेंद्रिय अभी प्राप्त नहीं, इस प्रकार की गणना एक शानदार मानसिक अनुशासन है। थोड़ा सा गणित कल्पना को उचित सीमाओं में रखने में सहायक होता हैं तथा यह दिखा सकता है कि किसी भी सत्याभ मान्यता से संपत्ति का मूल्य अन्वेषण परिव्यय के तुल्य हो अथवा इसका विलोम कदापि संभव नहीं और यह बता सकता है कि उचित सफल विकास की दृष्टि से खनि प्रत्याशन में आकर्षक जुए के सभी तत्व विद्यमान हैं।
' [विद्यासागर दुबे]