मुहम्मद हादी उर्फ मुर्शिद कुली खाँ हाजी शफी इस्फहानी ने मुहम्मद हादी का पुत्रवत् पालन कर उसे उचित शिक्षा दी। हाजी के ही अंतर्गत उसने दीवानी संबंधी दीक्षा ग्रहण की। उसकी असाधारण योग्यता की ख्याति सुन सम्राट् औरंगजेब ने उसे हैदराबाद का दीवान नियुक्त किया (१६९८)। बंगाल में योग्य अधिकारी की आवश्यकता पड़ने पर वह बंगाल का दीवान तथा मखसूसाबाद का फौजदार नियुक्त किया गया (१७००)। शासकीय दक्षता के कारण वह मुर्शिद कुली खाँ की उपाधि से विभूषित हुआ (१७०२)। युद्धजनित आर्थिक संकट में अपनी कार्यतत्परता द्वारा औरंगजेबश् को बंगाल से एक करोड़ रुपए वार्षिक लगान देने के कारण मुर्शिदकुली औरंगजेब काश् पूर्ण विश्वासपात्र बन गया। किंतु सम्राट की मृत्यु के बाद, द्वेषवश, मुर्शिद कुली दक्षिण स्थानांतरित कर दिया गया (१७०८-०९)। जनवरी, १७१० में वह पुन: बंगाल का दीवान नियुक्त हुआ। फिर उसने उत्तरोत्तर पदोन्नति की। अंतत: दीवान के अतिरिक्त बंगाल का सूबेदार नियुक्त होकर, वह प्रांत का सर्वोच्च अधिकारी (१७१४) बना। अपनी असाधारण योग्यता से कृषि के क्षेत्र में उसने बड़े महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। उसी ने मुर्शिदाबाद बसाया। ३० जून, १७२७ के दिन उसकी मृत्यु हुई। [राजेंद्र नागर]