मुहम्मद मासूम (ख़्वाजा) हजरत अल्फ़े सानी शैख अहमद सरहिंदी के पुत्र तथा द्वितीय ख़लीफ़ा थे। १००७/१५९८ में जन्म हुआ था। १६ वर्ष की उम्र में अध्यात्म ज्ञान की ओर उन्मुख हुए और क्रमश: सूफ़ीवाद की समस्त अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त किया। फलस्वरूप वृद्धावस्था के कारण पिता ने शिष्यों का शिक्षणकार्य उनको सौंप दिया था। मृत्यु के समय पिता ने वसीयत की थी कि वह पुरानी गुदड़ी को राजसिंहासन समझौते हुए निस्पृह का जीवन व्यतीत करें तथा धनवानों और सामंतों के संपर्क से दूर रहें। ख़्वाजा मासूम ने इस वसीयत का अक्षरश: पालन किया। कहा जाता है कि सम्राट् शाहजहाँ उनसे भेंट के लिये उत्सुक था परंतु उसे यह सौभाग्य प्राप्त न हो सका। औरंगजेब भी उनपर श्रद्धा रखता था। संभवत: एक बार उनसे उसकी भेंट भी हुई। ख़्वाजा मासूम ने अपने पुत्र और भाई को सम्राट के लश्कर में धर्मप्रचार के लिये भेजा था और एक अवसर पर औरंगजेब ने उनके भाई शेख मुहम्मद सईद का ३०० अशर्फियाँ उपहार रूप दी थीं। ख्वाजा मासूम के शिष्यों की संख्या एक लाख से भी अधिक बताई जाती है और जब वह हज करने अरब गए तो कहा जाता है कि बहुसंख्यक अजमी और अरबों ने उनसे दीक्षा ली। दारा शिकोह मुल्लाशाह का शिष्य था और औरंगजेब ख़्वाजा मासूम में श्रद्धा रखता था। अरब निवास के समय जब ख़्वाजा मासूम ने यह समाचार सुना कि दारा शिकोह सिंहासनारूढ़ हो गया है तो वह भारत लौट आए। परंतु इसी बीच औरंगजेब से पराजित होकर दारा परलोक सिधार चुका था। शिया सुन्नी झगड़े में ख़्वाजा मासूम अपने पिता के मतानुसार चारों ख़लीफ़ाओं में से किसी की भी बुराई नहीं सुन सकते थे और ऐसे लोगों के दंडित किए जाने के पक्ष में थे। उन्होंने इस विषय में औरंगजेब को एक पत्र लिखा था और शिष्यों को दंडित किए जाने के संबंध में अनेक हदीसे प्रमाण के रूप में प्रस्तुत की थीं। ७२ वर्ष की आयु में १०७९/१६६८ मेंश् उनका स्वर्गवास हुआ। समाधि सरहिंद में है। कहा जाता है कि सम्राट् शाहजहाँ की पुत्री ने समाधि पर भवय भवन का निर्माण कराया था।
सं० ग्र० : ख़्वाजा मुहम्मद मासूम : मकतूबता (कानपुर, १३०२), मौलवी गुलाम सर्वर : ख़ज़ीनतुल आस्फ़िया (नवल किशोर) १,६३९-६४२, शेख मुहम्मद इक्राम : रौदे कौसर (कराँची) २१८-२२२, निजामी बदायूँनी, कामूसुल मुशाहीर (बदायूँ, १९२६) २,२०१ अतहर अब्बास रिज़वी : रिवाइवलिस्ट मुवमेंट, लखनऊ १९६५। (मुहम्मद उमर)