मुस्लिम लीग दिसंबर, सन् १९०६ ई० में ढाका में हुए मुस्लिम संमेलन के अनुसार अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की गई। इस प्रकार, जैसा रैमजे मैकडानाल्ड ने लिखा, मुसलमानों के प्रति विशेष कृपा प्रदर्शित कर हिंदू मुसलमानों के बीच मतभेद के बीज बो दिए गए। मुस्लिम लीग के वार्षिक अधिवेशनों में वंगभंग का समर्थन, व्यवस्थापिका सभाओं के अतिरिक्त स्थानीय संस्थाओं के लिए भी पृथक् निर्वाचन क्षेत्र बनाने और नौकरियों के सिवा प्रीवी कौंसिल में भी मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की माँग की जाने लगी। सन् १९१० में मुस्लिम लीग का अधिवेशन दिल्ली में हुआ, जिसका सभापतित्व आगा खाँ ने किया। आप लीग के पाँच वर्षों तक स्थायी सभापति रहे। सन् १९१५ में उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया।

सन् १९१३ में मुस्लिम लीग का अधिवेशन लखनऊ में हुआ। अब उसका प्रधान उद्देश्य हुआ (१) ब्रिटिश सम्राट् के संरक्षण में और बातों के साथ साथ वर्तमान शासनप्रणाली में व्यवस्थित सुधार; (२) राष्ट्रीय एकता और भारतीयों में सार्वजनिक भावना की वृद्धि तथा उद्देश्यप्राप्ति के लिए अन्य समुदायों के साथ सहयोग; (३) वैध उपायों द्वारा स्वायत्त शासन की प्राप्ति। सन् १९१५ में मुस्लिम लीग और कांग्रेस का अधिवेशन बंबई में हुआ। लीग के इस संमेलन में महामना मालवीय, सरोजिनी नायडू, महात्मा गाँधी आदि कांग्रेसी नेता संमिलित हुए। लीग ने कांग्रेस के साथ मिलकर देश के लिए योजना बनाई। सन् १९१६ में भी लीग और कांग्रेस के अधिवेशन लखनऊ में साथ साथ हुए। यहीं लीग तथा कांग्रेस में समझौता हुआ जिसके अनुसार मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन, तथा पंजाब, बंगाल के अतिरिक्त अन्य प्रांतों में जनसंख्या के अनुपात से बहुत अधिक प्रतिनिधित्व देना स्वीकार हुआ। ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासित राज्य की माँग भी संयुक्त रूप से की गई। कांग्रेस के अध्यक्ष लोकमान्य तिलक सहित सभी नेताओं तथा मुस्लिम लीग के अध्यक्ष श्री मुहम्मद अली जिना ने यह समझौता स्वीकार किया। लीग ने कांग्रेस के राजनीतिक कार्यक्रम को मान लिया। सात वर्षों तक लीग, कांग्रेस के कार्यक्रम के समानांतर चलती रही। कांग्रेस द्वारा सविनय अवज्ञा की स्वीकृति होते ही लीग ने कांग्रेस के साथ अपना वार्षिक अधिवेशन समाप्त कर दिया। सन् १९२१ में अहमदाबाद में मुस्लिम लीग का जो अधिवेशन हुआ, वही अंतिम अधिवेशन था, जो एक ही समय एक ही स्थान पर कांग्रेस के साथ साथ हुआ।

धीरे धीरे दूषित प्रचार और सांप्रदायिक तनाव के कारण लीग कांग्रेस के मतभेद की खाई चौड़ी होती गई। दिसंबर, १९२७ में मुस्लिम लीग में दो दल हो गए। एक दल की बैठक मुहम्मद शफी ने लाहौर में की और उसी समय दूसरे दल की बैठक श्री जिना ने कलकत्ता में आयोजित की। साइमन कमीशन की नियुक्ति द्वारा सभी भारतीयों का जो अपमान किया गया और सभी भारतीयों के लिए ग्राह्य विधान बनाने की जो चुनौती दी गई, उससे कांग्रेस, मुस्लिम लीग आदि दलों में पुन: निकटता आई। सन् १९२८ के आरंभ में कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा अन्य संस्थाओं ने मिलकर भारत के लिए एक विधान बनाने का निश्चय किया, सर्वदलीय संमेलन में विधान निर्माण के लिए श्री मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में समिति बनी। विधान स्वीकार करने के समय लीग के प्रतिनिधियों में मतभेद हुआ। श्री जिना ने मुसलमानों के हितों और अधिकारों की रक्षा के लिये चौदह बातें रखीं जो आगे लीग-कांग्रेस-वार्ता तथा समझौता वार्ता का आधार बनीं। ये माँगे इस प्रकार हैं- (१) मुस्लिम लीग की उन माँगों की स्वीकृति जो सन् १९२९ में निर्धारित की गई थीं, (२) कांग्रेस न तो सांप्रदायिक निर्णय का विरोध करे और न उसे राष्ट्रीयता विरोधी बताएं, (३) सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व विधान द्वारा निर्धारित किया जाय, (४) विधान द्वारा मुसलमानो के कानून और संस्कृति की रक्षा की जाय, (५) कांग्रेस शहीदगंज मस्जिद ओंदोलन में भाग न ले और उसे मुसलमानों को वापस दिलाने में सहायक हो, (६) अंग्रेज, निजाम या मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में बाधा न डाली जाय, (७) मुसलमानों को गोबध की आजादी रहे, (८) प्रांतों के प्रति संघटन में जहाँ मुस्लिम बहुमत होश् उसमे किसी प्रकार काश् परिवर्तन न किया जाए, (९) वंदेमातरम् राष्ट्रीय गान के रूप में स्वीकार न किया जाय, (१०) मुसलमान उर्दू को जो राष्ट्रीय भाषा बनाना चाहते हैं, उसमे किसी प्रकार की रुकावट न डाली जाय और न उसका प्रयोग ही कम किया जाय, (११) स्थानीय संस्थाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सांप्रदायिक निर्णय के आधार पर हो, (१२) तिरंगा झंडा बदल दिया जाय, या मुस्लिम लीग के झंडे को उसकी बराबरी का स्थान दिया जाय, (१३) मुस्लिम लीग मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था स्वीकार की जाय, (१४)श् प्रांतों में संयुक्त मंत्रिमंडल बनाए जाएँ। स्मरणीय है कि आगे चलकर जो गोल मेज संमेलन हुआ उसकी अल्पसंख्यक समिति किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकी। फलत: ब्रिटिश प्रधान मंत्री सर रैमेज मैकडाल्ड को अपना निर्णय देना पड़ा जो 'सांप्रदायिक निर्णय' के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें श्री जिना की चौदह माँगों में से अधिकांश माँगों का समावेश कर दिया गया।

मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान का प्रस्ताव पास किया गया और मद्रास अधिवेशन में उसकी प्राप्ति को उसका ध्येय बताया गया। इसके प्रधान उद्देश्य- (१) पृथक् निर्वाचन प्रणाली (२) विशेष प्रतिनिधित्व तथा (३) श्री जिना की चौदह माँगें-ब्रिटिश सरकार ने एक एक कर स्वीकार कर लिए। संघ शासन की माँग सन १९३५ के शासन विधान द्वारा पूर्ण होते ही लीग ने उसका विरोध शुरू किया और उत्तर-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व के इलाकों के लिये स्वतंत्र मुसलिम-राष्ट्र की माँग पेश की। ब्रिटिश सरकार ने लीग को आश्वासन दिया कि संघ शासन स्थगित किया जाता है तथा मुसलमानों की स्वीकृति के बिना कोई शासन विधान नहीं बनाया जायगा। यही नहीं, लीग के नेताओं को यह भी आश्वासन दिया गया कि हिंदू मुसलमानों के समान प्रतिनिधित्व का सिद्धांत स्वीकार कर लिया गया है। सन् १९३५ के भारत शासन विधान के अनुसार सन् १९३६-३७ में प्रांतीय व्यवस्थापक सभाओं का चुनाव हुआ। लीग की घोषणापत्र में मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा तथा उनकी स्थिति में सुधार के यत्न पर विशेष बल दिया गया। चुनाव में कुल ४५८ मुस्लिम स्थानों में लीग उम्मीदवारों को केवल १०८ स्थान मिले। १९३७ की जुलाई में कांग्रेस मंत्रिमंडल बनाने का निश्चय हुआ। मंत्रिमंडल में उन्हीं मुसलमानों को स्थान दिया गया जो कांग्रेस दल के थे। ३० मार्च, १९३८ को लीग की कौंसिल ने प्रस्ताव पास किया कि कांग्रेस मंत्रिमंडल के प्रांतों में मुसलमानों, विशेषकर लीगी कार्यकर्ताओं को, सताया जा रहा है। जाँच समिति बनी और रिपोर्ट प्रकाशित हुई। वस्तुत: अभियोग असत्य थे। कांग्रेस सांप्रदायिक समस्या सुलझाने का प्रयत्न करती रही पर लीग की माँग बराबर बढ़ती गई। ब्रिटिश सरकार के प्रोत्साहन से स्थिति बिगड़ती ही गई।

श्री जिना की जिद थी कि कांग्रेस हिंदुओं की संस्था है और लीग ही मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था। सन् १९३९ में महात्मा गांधी, नेहरू जी आदि ने श्री जिना से समझौते काश् प्रयत्न किया पर सफलता नहीं मिली। असेम्बली के प्रथम अधिवेशन में ही एक परचा बाँटा गया, जिसका शीर्षक था- 'पाकिस्तान'। यह परचा कैंब्रिज से छपकर आया था और इसमें पाकिस्तान की माँग की गई थी। द्वितीय महायुद्ध के समय वाइसराय की ओर से जब युद्ध तक संघ शासन की कोई व्यवस्था न होने की घोषणा की गई तो लीग की कार्यकारिणी समिति ने उसका स्वागत किया। लीग की ओर से संघ शासन की योजना त्यागने तथा उसकी स्वीकृति के बिना भारत के लिये कोई भी शासन विधान तैयार न करने की माँग की गई। दिसंबर, १९४० ई० को लार्ड लिनलिथगो की ओर से इसका आश्वासन दिया गया। मार्च, १९४२ में क्रिप्स प्रस्ताव आया जिसके अनुसार किसी भी प्रांत को भारतीय संघ से अलग होने का पूरा अधिकार दिया गया। इस प्रकार प्रकारांतर से मुस्लिम स्वतंत्र राष्ट्र स्थापित करने की माँग स्वीकार कर ली गई। इस प्रस्ताव को लीग ने अस्वीकार किया किंतु उसकी कार्यसमिति में यह बात मानी गई कि पाकिस्तान के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया गया।

कांग्रेस ने अगस्त, ४२ में 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव स्वीकार किया। लीग ने इसका विरोध किया। सन् १९४४ में गांधी जी श्री जिना से मिले किंतु कई दिनों की वार्ता के बाद भी कोई समझौता न हो सका। वार्ता के मध्य श्री जिना पाकिस्तान की रूपरेखा तक न बता सके किंतु अपनी जिद पर अड़े रहे। सन् १९४५ में लार्ड वेवल ने अस्थायी समझौते का प्रस्ताव किया जिसमें दलित जातियों को छोड़कर हिंदू मुसलमानों को समान प्रतिनिधित्व की व्यवस्था थी। इस प्रकार लीग की माँग पूरी हो गई। इस पर श्री जिना की जिद बनी रही कि मुसलिम सदस्यों को नामजद करने का अधिकार एकमात्र लीग को मिले। वेवल के इनकार के बाद लीग की नई माँग यह हुई कि मुसलमानों को केवल हिंदुओं के बराबर ही प्रतिनिधित्व न मिले अपितु दलित वर्ग, अल्पसंख्यकक जातियों के प्रतिनिधियों को भी हिंदुओं में मिलाकर कुल संख्या के बराबर मुसलमानों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

पाकिस्तान संबंधी लतीफ योजना, अलीगढ़ योजना, सर सिकंदर योजना, लाहौर प्रस्ताव, हारून कमेटी की योजना, राजाजी का सूत्र, महात्मा जी का प्रस्ताव, जगतनारायण लाल का प्रस्ताव, देसाई लियाकत समझौता, आदि में सांप्रदायिक समस्या को हल करने के लिये विभिन्न विचारसूत्र रखे गए। अंतत: २० फरवरी, १९४७ को ब्रिटिश सरकार ने भारत के विभाजन का प्रस्ताव रखा और १४ अगस्त, १९४७ को मुस्लिम बहुमत वाले भारतीय क्षेत्र पाकिस्तान का अंग बने, जिसके प्रथम गवर्नर जनरल श्री जिना हुए। संप्रति पाकिस्तान में मुस्लिम लीग की ही सरकार सत्तारूढ़ है। इसे सन् १९६५ के चुनाव में नेशनल असेम्बली में ११८ स्थान प्राप्त हुए। भारत में केरल में मुस्लिम लीग को सन् १९६७ के महानिर्वाचन में संसद में दो स्थान तथाश् राज्य विधान सभा में कुल १३३ स्थानों में से १४ स्थान प्राप्त हुए हैं। [लक्ष्मीशंकर व्यास]