मुल्ला शाह नाम शाहम्मद, उपनाम अख्वंद था। पिता का नाम मुल्लाश् अब्दी था। बदख्शाँ में स्थित अर्कसान नामक ग्राम में जन्म हुआ था। युवावस्था ही में ईश्वर-मार्ग-प्राप्ति की जिज्ञासा से वहाँ से निकल पड़े तथा कश्मीर आए। वहाँ तीन वर्ष निवास कर लाहौर आए। वहाँ आपने मियाँ मीर से दीक्षा ग्रहण की। तपस्या, मुजाहदा और निस्पृहता में मियाँ मीर के समस्त शिष्यों में आप प्रमुख थे। सात वर्ष तक ज़िक्र खफ़ी (गुप्त रूप से ईश्वर गुणगान) करते रहे। खिलाफ़त का खर्क़ा प्राप्त कर कश्मीर चले गए तथा दारा शिकोह और जहाँआरा द्वारा निर्मित खानकाह में निवास किया। हज़ारों व्यक्तियों को अध्यात्मवाद की शिक्षाओं से संपन्न कर ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाया। उस युग में कश्मीर के सुन्नियों और शियाओं के बीच धार्मिक झगड़ा जोरों पर चल रहा था। मुल्ला शाह चारों खलीफ़ाओं की प्रशंसा करते थे अत: शिया लोग आपसे वादविवाद करते और पराजित होकर सुन्नी मत स्वीकार कर लेते थे। इस प्रकार मुल्लाशाह ने हजारों शियाओं को सुन्नी बनाया था। धार्मिक विषयों में आप सहनशील और उदार थे। अन्य धर्म के लोगों से मिलने जुलने में संकोच नहीं करते थे। आपके प्रभाव में आकर वलीराम कायस्थ ने, जो मुगल सामंत था, अपना पद और वैभव त्याग कर आपसे दीक्षा ली थी और खलीफ़ा नियुक्त हुआ था। मुल्ला शाह सर्वेश्वरवादी थे। यही कारण है कि वलीराम वली की कविताओं में सर्वेश्वरवाद की झलक मिलती है। इस पर कश्मीर के उलिमा ने मुल्ला शाह को नास्तिक घोषित कर शाहजहाँ बादशाह से आपको शरीयत के अनुसार कत्ल करने को कहा। दारा शिकोह के हस्तक्षेप के कारण शाहजहाँ ने आपके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की। १६३९ ई० में दारा शिकोह और जहाँआरा ने मुल्ला शाह से दीक्षा ली। दारा शिकोह की पराजय के बाद जब औरंगज़ेब सिंहासनारूढ़ हुआ तो उलिमा ने पुन: मुल्ला शाह की शिकायत की। औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि वह कश्मीर के बजाए लाहौर में निवास करें। ऐसा ही हुआ।
मुल्ला शाह कवि भी थे। आपका एक फ़ारसी दीवान उपलब्ध है। आपकी काव्य रचनाओं में आध्यात्मवाद के सूक्ष्म विषयों पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है। सन् १६५८ या १६६१ में देहावसान हुआ। समाधि मियाँ मीर की समाधि के निकट है।
सं० ग्रं० - दारा शिकोह : सकीनतुल औलिया (उर्दू अनुवाद, लाहौर) ११६-१६६; मौलवी गुलाम सर्बर : खज़ीनतुल औलिया (नवलकिशोर) १,१७२-१७४; शेख मुहम्मद इक्राम : रौदे कौसर (कराची २५५-२६०; मुहम्मद वारिस कामिल : तज़किरा औलियाए लाहौर (कराची, १९६३) १४०; अब्दुल हमीद लाहौरी : बादशाहनामा (कलकत्ता, १८६७)।
[मुहम्मद उमर]