मुरारि गुप्त इनका जन्म श्रीहट्ट में वैद्य वंश में हुआ था और इनके परिवार वाले वहाँ से नवद्वीप आकर श्री गौरांग के पड़ोस में बस गये। यह श्री गोरांग के बाल्यबंधु तथा सहपाठी थे। इन्होंने संस्कृत काव्य ग्रंथ 'चैतन्यचरितामृत' में इस सबका वर्णन किया है। इस ग्रंथ के सिवा पदावली भी बनाई है तथा रामाष्टक भी लिखा है। महाप्रभु के प्रति इनकी भक्ति अतुलनीय थी और श्री गौरांग भी इन पर अत्यंत स्नेह रखते थे। [(स्व.) ब्रजरत्नदास]