मुराक़बा मन को सांसारिक विषयों से विरत कर, ध्यानपूर्वक ईश्वर का स्मरण। इस अवस्था में कुरान के विभिन्न भागों का पाठ भी किया जाता है और चित्त को केवल ईश्वर के ध्यान में ही एकाग्र करना पड़ता है। [सैयद अतहर अब्बास रिजवी]