मुद्रा हाट मुद्रा हाट का आशय किसी विशिष्ट स्थान से नहीं है जहाँ नगर के अधिकोष तथा मुद्रा के क्रयविक्रय से संबंधित अन्य व्यक्ति अथवा संस्थाएँ संमिलित हों, वरन् उसका तात्पर्य मुद्रा के विनिमय से संबंध रखनेवाले व्यक्तियों और संगठनों के समूह से है। द्रव्य अथवा मुद्रा को उधार लेने वाले व्यक्ति ही विनिमयकर्ता अथवा मुद्रा के क्रेता विक्रेता हैं; क्राउथर (Crowther) के कथनानुसार 'मुद्रा हाट' उन विभिन्न फर्मों तथा संस्थाओं का सामूहिक नाम है जो विभिन्न द्रव्य को काम में लाते हैं। यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि मुद्रा हाट का आशय केवल अल्पकालीन ऋण बाजार से है, दीर्घकालीन ऋण बाजार पूँजी बाजार कहलाता है।
जैसा ऊपर कहा जा चुका है, मुद्रा हाट के अंग मुद्रा के विनिमयकर्ता होते हैं। विनिमयकर्ताओं में साधारणत: देश के विभिन्न अधिकोष, जो मुद्रा के क्रेता तथा विक्रेता दोनों हैं, रुपया उधार देनेवाली संस्थाएँ तथा अन्य व्यक्ति, मुद्रा उधार लेनेवाले व्यक्ति व संस्थाएँ तथा विनिमय अनुबंधों में सहायता देनेवाले कटौती घर और दलाल संमिलित हैं। भारतीय मुद्रा बाजार के प्रमुख अंग ये हैं - (१) केंद्रीय बैंक (रिजर्व बैंक ऑव इंडिया), (२) स्टेट बैंक ऑव इंडिया, (३) संयुक्त स्कंध बैंक, (४) औद्योगिक बैंक, (५) सहकारी बैंक, (६) भू आधि बैंक, (७) विनिमय बैंक, (८) पोस्ट आफिस सेविंग्स बैंक तथा (९) देशी बैंकर और (१०) ऋण लेने व देनेवाली आम जनता।
भारत में अभी तक किसी अखिल भारतीय मुद्रा हाट का विकास नहीं हो पाया है। इसका कारण मुद्रा हाट के विभिन्न अंगों में सहयोग का ही नहीं वरन् संपर्क का भी अभाव है। इसके अतिरिक्त न केवल आधुनिक बैंक तथा देशी बैंकरों के मध्य वरन् आधुनिक बैंकरों के बीच भी हानिकारक स्पर्द्धा रहती है। देश के आधुनिक बैंकों का ऐसा कोई अखिल भारतीय संगठन नहीं है जो संपूर्ण स्थिति को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सदस्य बैंकों की सामान्य नीति का निर्धारण करे। कुछ समय से रिजर्व बैंक के तत्वावधान में इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ अब तक बैंकिग सुविधाएँ अप्राप्य थीं बैंक की शाखाएँ स्थापित होने लगी हैं। देश में असंगठित मुद्रा हाट का सबसे प्रमुख कारण उन महाजनों का बहुसंख्या में होना है जो ब्याज की अनुचित दरों पर धन उधार देते हैं। इस संगठन के अभाव के फलस्वरूप देश में विभिन्न स्थानों की ब्याज की दरों में गहत असमानता रही है जिसके कारण देश की बैंक दर असफल हो जाती है तथा रिजर्व बैंक को साख नियंत्रण करने में भारी कठिनाई होती है।
देश में मुद्रा हाट का अन्य बड़ा दोष व्यापारिक बिलों तथा हुंडियों के बाजार का अभाव है। रिजर्व बैंक ने अभी इस दिशा में एक उपयोगी कदम उठाया है। रिजर्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को पुन: कटौती (rediscount) की सुविधा बिल बाजार के विकास को काफी प्रोत्साहन देगी।
रिजर्व बैंक की स्थापना के समय से भारतीय मुद्रा हाट को व्यवस्थित रूप से विकसित करने की ओर अनेक कदम उठाए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएँ उलब्ध करने के लिए अनेक शाखाएँ खोली गई हैं। जनता का विश्वास भी आधुनिक बैंकों में स्थापित हो रहा है। देश की बैंकिंग प्रणाली के सर्वाधिक कमजोर अंग, महाजनों के प्रभाव, को दूर करने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ वे अधिक प्रभावशाली हैं, सहकारी बैंक, पोस्ट आफिस सेविंग्स बैंक तथा अन्य बैंकों की शाखाओं का खुलना देश में मुद्रा बाजार के समुचित विकास के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। [अमरनारायण अग्रवाल]