मुखर्जी, श्यामाप्रसाद आप महान् शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ, कुशल प्रशासक तथा संघटनकर्ता थे। आप न केवल बंगाल के चोटी के नेता था अपितु आपका स्थान देश के वरिष्ठ नेताओं की प्रथम पंक्ति में रहा है। आपका दृढ़ विश्वास था कि जब तक भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता को सुदृढ़ नींव पर खड़ा होकर बदले हुए युग की आवश्यकताओं के अनुरूप समता, नैतिकता और प्रगति की दीपशिखा लेकर आगे नहीं बढ़ता, तब तक उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा। आपका जन्म ६ जुलाई, सन् १९०१ ई० को हुआ। देश के प्रख्यात शिक्षाशास्त्री श्री आशुतोष मुखर्जी के आप पुत्र थे। एम० ए० तथा बी० एल० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर आप इंग्लैंड गए और सन् १९२७ में वहाँ से बैरिस्टर होकर आए। कलकत्ता उच्च न्यायालय में आपने कार्य प्रारंभ किया और अपनी प्रतिभा के कारण अल्प काल में ही प्रसिद्ध बैरिस्टर हो गए। सार्वजनिक कार्यक्षेत्र में आपका पदार्पण बंगाल धारासभा के सदस्य निर्वाचित होने के समय (१९२९) से होता है। आप सन् १९३४ से '३८ तक कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर थे तथा सन् '४१ से '४२ तक बंगाल के अर्थमंत्री। सन् १९४६ में आप निर्विरोध केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। आप सन् १९४७ से १९५० तक भारत सरकार के उद्योग तथा पूर्ति मंत्री रहे। सन् १९५२ ई० में आप कांग्रेस के विपक्ष में लोकसभा के सदस्य चुन लिए गए। आप परम देशभक्त रहे हैं और सार्वजनिक हित के लिए महान् त्याग तथा बलिदान की परंपरा स्थापित कर गए हैं। जैसा प्रभावशाली आपका व्यक्तित्व था, वैसी ही ओजस्वितापूर्ण आपकी वाणी थी। हिंदू धर्म तथा सभ्यता का आपको सहज अभिमान था और इस दिशा में उपेक्षा की नीति आपको असहनीय थी। इसी प्रवृत्ति के कारण आप भारतीय कांग्रेस दल के कटु आलोचक थे। हिंदू महासभा के नेताओं में आपका अग्रगण्य स्थान था किंतु इस दल में भी संकीर्णता देखकर आपने २१ अक्टूबर, १९५१ ई० को भारतीय जनसंघ की स्थापना की जिसके सदस्य सभी जाति तथा धर्म के लोग हो सकते हैं। शक्तिशाली विरोधी दल की नींव आपने ही डाली।
सन् १९५२ में आप भारतीय जनसंघ के प्रथम वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए और आपने देश के समक्ष राष्ट्रीय दृष्टिकोण, सुव्यवस्थित अर्थव्यवस्था, आध्यात्मिक पुनर्जागरण, पंचवर्षीय योजना, कश्मीर, पूर्वी बंगाल, सुसंघटित राष्ट्रजीवन तथा विश्वशांति संबंधी अपने महत्वपूर्ण विचार रखे। कश्मीर के भारतीय संघ में एकीकरण के आप प्रबल समर्थक थे और इसी आंदोलन के सिलसिले में कश्मीर यात्रा के दौरान नजरबंदी की स्थिति में २३ जून, १९५३ ई० को आपका निधन हो गया। श्श् [लक्ष्मीशंकर व्यास]