मुखर्जी, राधाकुमुद (१८८९-१९६३) प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार, राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्र विशेषज्ञ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बरहमपुर (बंगाल) में हुई; तत्पश्चात् कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज से एम० ए० परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् १९१५ में कलकत्ता विश्वविद्यालय से पी-एच० डी० की उपाधि मिली।

इन्होंने शिक्षक जीवन कलकत्ता के रिपन कॉलेज तथा बिशप कॉलेज से आरंभ किया जहाँ वे अंग्रेजी पढ़ाते थे। बाद में डॉ० मुखर्जी बनारस, मैसूर और लखनऊ विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा इतिहास के अध्यापक रहे।

बड़ोदा के गायकवाड़ ने इन्हें ७००० रुपए का पुरस्कार दिया था तथा 'इतिहासशिरोमणि' की उपाधि प्रदान की थी। इनके मित्रों ने इनके संमान में 'राधाकुमुद लेक्चरशिप' शुरू की। सन् १९५४ में डॉ० मुखर्जी ने मैसूर विश्वविद्यालय में दीक्षांत भाषण किया। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थाओं में भी इन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास तथा संस्कृति से संबंधित भाषण किए।

सन् १९३९ और १९४० के बीच वे बंगाल भूराजस्व आयोग के सदस्य रहे। सन् १९४६-४७ में वे खाद्य और कृषि संगठन के उपक्रम आयोग की बैठक में भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में वाशिंगटन गए। सन् १९५२ से १९५८ तक डॉ० मुखर्जी राज्यसभा के सदस्य भी रहे। भारत सरकार ने इन्हें पद्यभूषण की उपाधि से सम्मानित किया।

इन्होंने कई ग्रंथों का संपादन किया तथा अनेक शोधलेख लिखे। इनके प्रमुख ग्रंथ हैं -

१. ए हिस्ट्री ऑव इंडियन शिपिंग, २. दि फ़ंडामेंटल यूनिटि ऑव इंडिया, ३. हिंदू सिविलिज़ेशन, ४. एंशेंट इंडियन एजुकेशन, ५. एंशेंट इंडिया, ६. हर्ष; ७. अशोक, ८. गुप्त एंपायर, ९. लोकल गवर्नमेंट इन एंशेंट इंडिया, १०. मेन ऐंड थॉट इन एंशेंट इंडिया, ११. चंद्रगुप्त मौर्य ऐंड हिज़ टाइम्स, १२. ग्लिम्प्सेज़ ऑव एंशेंट इंडिया, १३. नेशनलिज्म इन हिंदू कल्चर, १४. ए न्यू अप्रोच टु कम्यूनल प्रॉब्लेम और १५. अवर प्रौब्लेम्स इत्यादि।

[बृज मोहन पांडेय]