मुकुल भट्ट श्कश्मीर के प्रथितयश विद्वान एवं सिद्ध आचार्य कल्लट के पुत्र। राजतरंगिणी के अनुसार भट्ट कल्लट कश्मीर नरेश अवंतिवर्मा के शासनकाल में वर्तमान थे। अवंतिवर्मा का समय सन् ८५७-८८४ ई० मान्य है अत: मुकुल भट्ट का समय नवीं शताब्दी का अंतिम चरण और दसवीं का प्रारंभ मान्य होता है। मुकुल भट्ट ने 'अभिधावृत्तिमातृका' नाम का ग्रंथ लिखा है जिसमें कुल १५ कारिकाएँ हैं। इन कारिकाओं पर विस्तृत वृत्ति भी मुकुल भट्ट ने ही लिखी है। इस छोटे किंतु महत्वपूर्ण ग्रंथ में वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) और लक्ष्यार्थ का तथा अभिधा ओर लक्षणा मात्र का निरूपण किया गया है। यह निरूपण विस्तृत एवं समीक्षात्मक है। अभिनव भारती में भी मुकुल भट्ट की कारिकाएँ उद्धृत हैं। काव्यप्रकाश में भी यत्र तत्र मुकुल भट्ट के विचार पूर्व पक्ष के रूप में उद्धृत किए गए हैं। उद्भटाचार्य के 'काव्यालंकार सारसंग्रह' पर 'लघुवृत्ति' व्याख्याकार प्रतिहारेंदुराज या इंदुराज ने अपनी व्याख्या के अंतिम पद्य में अपने आचार्य के रूप मे मुकुल भट्ट का गौरव के साथ उल्लेख किया है। यह प्रतिहारेंदुराज कोंकण निवासी था। मुकुल भट्ट द्वारा रचित अन्य कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है, फिर भी इस छोटे से ग्रंथ 'अभिधावृत्तिमातृका' द्वारा साहित्य क्षेत्र में उनका नाम उल्लेखनीय एवं समादरणीय आचार्यों में परिगणित है। [विश्वनाथ त्रिपाठी]