मुंज, वाक्पतिराज ९वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी के आरंभ तक मालव पर परमार वंश के राजाओं का राज था, जिनकी राजधानी धारा थी। मुंज इसी वंश का सातवाँ राजा था। वह राजा सीयक द्वितीय का पुत्र था और उसकी वाक्पति और उत्पल नाम से भी प्रसिद्धि थी। ९७२ ई० में राज्यारूढ़ होने के बाद ही अपने राज्य का विस्तार करने के लिए उसने पड़ौसी राज्यों के विरुद्ध बड़े सैनिक अभियान किए। पहले उसने अपने पूर्वी पड़ौसी अर्थात् दाहल के कलचुरियों पर हमला किया, जिनकी राजधानी त्रिपुरी थी। इस चढ़ाई में उसने कलचुरि राजा युवराज द्वितीय को हटाया और कुछ समय के लिए राजधानी पर अधिकार जमा लिया। पश्चिमोत्तर में मुंज ने मेवाड़ के गुहिलवंशीय राजा शक्तिकुमार को हराया और अपने राज्य की सीमा और भी उत्तर तक बढ़ाई। नद्दुल (नादोल) के चाहमान बलिराज से उसने आबू पर्वत और दक्षिण मारवाड़ प्रदेश छीन लिए, किंतु राजधानी पर कब्जा करने का उनका प्रयास बलिराज ने विफल कर दिया। इसी समय वाक्पति ने एक हूण राजा को हराया, जिसका राज्य मालव के पश्चिमोत्तर में पड़ता था। राजपूताना में सैनिक अभियान के बाद मुंज ने गुजरात पर चढ़ाई की और वहाँ के राजा चालुक्य मूलराज प्रथम को पराजित किया। स्थिति प्रतिकूल देखकर चालुक्य मूलराज अपने राज्य से भाग गया। उसने हस्तिकुडी के धवल की शरण ली। इस अवसर पर मुंज ने लाट प्रदेश अर्थात् दक्षिणी गुजरात पर हमला किया और वहाँ के राजा चौलुक्य बारप्प को हराया। इन सब जीतों से मुंज बहुत बड़े क्षेत्र का स्वामी बन गया किंतु दक्षिणी मारवाड़ को छोड़कर शेष प्रदेश अधिक दिनों तक उसके हाथ में नहीं रह सके। मुंज अपना बड़ा साम्राज्य इस कारण न स्थापित कर सका कि उसे बार बार दक्षिण के चालुक्य वंशीय राजा तैलप द्वितीय के आक्रमणों का सामना करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगानी पड़ रही थी। कहा जाता है, मुंज ने छह बार तैलप के आक्रमण विफल कर दिए, किंतु सातवीं बार वह पराजित हो गया और शत्रु द्वारा बंदी बना लिया गया। चालुक्य राजधानी कल्याणी की जेल से, जहाँ उसे बंद रखा गया था, उसने भाग निकलने की कोशिश की, किंतु पकड़ लिया गया और इसके लिए उसे बहुत अपमान सहन करने पड़े। कहा जाता है, प्रति दिन उसे लोहे के कटघरे में बंद करके दरवाजे दरवाजे घुमाया जाता था और भीख माँग कर उसे अपनी क्षुधा शांत करनी पड़ती थी। इतना होने पर भी तैलप द्वितीय को उसे बहुत दिनों तक बंदी रखना निरापद नहीं प्रतीत हुआ। उसने ९९७ में मुंज को फाँसी दे दी। अपने समय के एक सबसे बड़े रणकुशल योद्धा मुंज की दु:खद परिस्थितियों में मृत्यु होने से पश्चिम भारत की जनता बहुत दिनों तक शोकसंतप्त रही। इस घटना के संबंध में गाथाएँ चल पड़ी, जिनका जैन मुनि मेरुतुंग ने तेरहवीं शताब्दी में अपनी कृति प्रबधचिंतामणि में बहुत करुण और भावुकतापूर्ण वर्णन किया।

मुंज महायोद्धा ही नहीं, बहुत प्रसिद्ध कवि भी था। उसने अनेक बड़े विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया, जिनमें धनंजय भट्ट, हलायुध, धनिक, धनपाख, शोभन, पद्यगुप्त, परिमल आदि के नाम प्रमुख हैं। मंदिरों के निर्माण द्वारा उसने मालव की सौंदर्यवृद्धि की।

[धीरेंद्रचंद्र गांगुली]