मीर जुमला औरंगजेब के सर्वश्रेष्ठ सेनापतियों में से था। उसे बंगाल का गवर्नर बनाया गया। इस समय पूर्वीय सीमा पर मंगोलों के वंशज अहोम लोग बड़ा ऊधम मचाए हुए थे। इन लोगों ने १३ वीं शताब्दी में बर्मा से आकर ब्रह्मपुत्र की घाटी का कुछ भाग अपने अधिकार में कर लिया था। शनै: शनै: इन्होंने अपने राज्य को काफी विस्तृत कर लिया। सन् १६३९ में शाहजहाँ से अहोम लोगों ने एक संधि कर ली थी, पर उसकी मृत्यु के बाद जब उत्तराधिकार के लिए युद्ध छिड़ गया तो अहोम लोगों ने सन् १६५८ में आक्रमण करके गौहाटी पर अधिकार कर लिया, बहुत सी संपत्ति लूट ली तथा कई तोपें एवं घोड़े आदि अपने कब्जे में कर लिए। क्रुद्ध होकर नवंबर, १६६१ में मीर जुमला अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित एक शक्तिशाली सेना लेकर आक्रमणकारियों को दंडित करने के लिए ढाका से चल पड़ा। रास्ते में आसाम तक कूचबिहार पर आक्रमण करके उन पर विजय प्राप्त करता हुआ वह मार्च, १६६२ में राज्य की राजधानी गढ़गाँव पहुँच गया। अहोम लोग अपने नृपति जयध्वज के साथ राजधानी छोड़कर भाग खड़े हुए। मीर जुमला के शाही सैनिकों ने राजधानी को लूटकर विशाल धन संपत्ति प्राप्त की।

गढ़गाँव की जलवायु मुगल सेना के सर्वथा प्रतिकूल थी। अन्य सैनिकों के साथ मीर जुमला को भी कष्ट झेलने पड़े। गढ़गाँव पर अधिकार करने के शीघ्र बाद ही वर्षा ऋतु प्रारंभ हो गई। इससे जलवायु और भी कष्टदायक हो गई। चिकित्सा तथा रसद का उचित प्रबंध न होने के कारण मुगल सेना में बीमारियाँ फैल गईं और सैनिक भूखों मरने लगे।

मुगल सेना की इस दुर्दशा से लाभ उठाकर अहोम लोगों ने पुन: वापस लौटकर शत्रुओं को छकाना शुरू कर दिया। इन सब कष्टों से मीर जुमला हतोत्साह नहीं हुआ। वह वर्षा के समाप्त होने की प्रतीक्षा करता रहा। वर्षा समाप्त होते ही उसने अहोम लोगों पर पुन: आक्रमण कर दिया। विवश होकर जयध्वज ने मुगलों से संधि कर ली। इस संधि के द्वारा मुगलों को गजबाहुल्यवाले दारंग प्रांत का अधिकांश मिल गया। इसके अतिरिक्त मीर को हर्जाने के रूप में एक बड़ी धनराशि मिली। इस युद्ध के संबंध में कई सैनिकों की जानें गईं और सारी सेना को बेहद कष्ट उठाना पड़ा। ढाका लौटते समय मार्ग में ३० मार्च, १६६३ को मीर जुमला की मृत्यु हो गई। [मिथिलेशचंद्र पांड्या]