मीर जाफ़र श्एक उत्साहसंपन्न सैनिक था। बंगाल में सिपाही के पद से उसकी दिनोंदिन पदोन्नति होती गई। उसने अलीवर्दी खाँ को नवाब बनाने में सहायता दी; उसके लिए उड़ीसा की विजय की तथा आंतरिक विद्रोहों और मराठों के आक्रमणों से बंगाल की रक्षा की। इस सहायता के लिए मीर जाफ़र को बख्शी का पद मिला। नवाब ने अपनी सौतेली बहन का विवाह उसके साथ कर दिया, उसे उड़ीसा की सूबेदारी दी तथा उपसेनापति बनाया। इससे मीर जाफ़र की प्रतिष्ठा बढ़ी और उसकी महत्वाकांक्षा जाग्रत हुई।

सिराजुद्दौला के नवाब बनने पर मीर जाफर ने उसके प्रति स्वामिभक्त रहने का वचन दिया, पर बाद में विश्वासघात किया। पहले उसने शौकतजंग को नवाब के विरुद्ध उकसाया और स्वयं नवाब बनने के स्वप्न देखने लगा। क्लाइव ने अमीचंद के माध्यम से उसके साथ गुप्त संधि की, तथा रायदुर्लभ, जगत सेठ आदि असंतुष्ट लोगों के सहयोग से नवाब के विरुद्ध षड्यंत्र रचकर प्लासी के युद्ध के पश्चात् उसे नवाब बनाया। इसके बदले में मीर जाफर ने ईस्ट इंडिया कंपनी को चौबीस परगने की जमींदारी, शोरा के व्यापार पर एकाधिकार तथा क्षतिपूर्ति और ईनाम के रूप में १,५३,१०,९६६ रुपये दिए। इसके अतिरिक्त १,१४,५०,००० रुपए न दे सकने के कारण उसे बर्दवान, नदिया तथा हुगली का लगान कंपनी को सौंपना पड़ा।

सन् १७५७ से १७६० तक मीर जाफर बंगाल का नवाब रहा। वह असफल सिद्ध हुआ। उसका शासन अंग्रेजों की सैनिक शक्ति पर अवलंबित रहा। वह उनके अनुचित कार्यों का विरोध न कर सका। इसलिए बंगाल की राजनीति पर अंग्रेज हावी हो गए। उन्होंने डचों का प्रभाव हटा दिया। वे व्यापारिक अधिकारों का प्रत्यक्ष रूप से दुरुपयोग करके नि:शुल्क अंतर्देशीय व्यापार करने लगे। अंत में मीर जाफर पर अतिरंजित आरोप लगाकर उसे पदच्युत कर दिया गया।

७ जुलाई, १७६३ को अंग्रेजों ने अशक्त एवं अयोग्य मीर जाफर को पुन: बंगाल का नवाब बनाकर उससे महत्वपूर्ण अधिकार तथा बड़ी धनराशि प्राप्त की। ५ फरवरी, १७६५ को ७४ वर्ष की आयु में मीर जाफर का देहांत हो गया। उसकी सूबेदारी बंगाल के लिए घातक बनी। शासन अव्यवस्थित हो गया। व्यापार तथा उद्योग धंधे नष्ट होने लगे। बंगाल से अर्थनिस्सरण होने लगा। इस बहुमुखी शोषण से बंगाल के ्ह्रास का युग प्रारंभ हुआ। [हीरालाल गुप्त]