मीडिया ईरान का उत्तर पश्चिमी प्रांत, जिसके निवासियों ने ईरान के प्रथम ऐतिहासिक आर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। यह प्रदेश अपने घोड़ों के लिये बहुत प्रसिद्ध था। आर्यों के आगमन के पूर्व इस प्रदेश में संभवत: तूरानी जाति की एक शाखा रहती थी। दूसरी सहस्राब्दी ई०पू० में किसी समय यहाँ ईरानी आर्य आकर बसे जिन्होंने अधिकांश पुराने निवासियों को मौत के घाट उतार दिया। इसके पश्चिमी भाग में जगरोस का पर्वतीय प्रदेश था और पूर्वी भाग में उर्वर मैदान। इसके मध्य से बेबिलोनिया और ईरान को जोड़ने वाला व्यापार मार्ग गुजरता था, इसलिये इसके निवासी, अन्य ईरानी कबीलों की तुलना में अधिक समृद्ध हो गए। दूसरे,वे असीरियनों के अधिक निकट थे इसलिये उन्हें बार बार असीरियन आक्रमणों का समना करना पड़ता था। इससे उनमें एकता की भावना अन्य ईरानियों से पहले आई। प्रथम तिगलथपिलेसर (११०० ई० पू०), द्वितीय श्लमनेसर (८४४ ई० पू०), तृतीय अदाद निरारी (८१० ई० पू०) तथा चतुर्थ तिगलथपिलेसर (७४४ ई० पू०) आदि असीरियन सम्राटों ने मीडिया पर आक्रमण किए थे। हेरोडोटस के अनुसार मीडिया के संयुक्त राज्य की स्थापना डीयोकोज नामक नागरिक ने की थी। अपने साथियों के झगड़ों का उचित फैसला करने के कारण उसने बहुत कीर्ति प्राप्त की। जब उसके पास बहुत मुकदमे आने लगे तब उसने इस काम से हाथ खींच लिया। इससे देश में अराजकता फैल गई और विवश होकर मीडों को अपना राजा चुनने के लिये बाध्य होना पड़ा। उसने अल्वंद पर्वत की तलहटी में स्थित 'राहों के मिलनस्थल' हगमतन (हमदन) अथवा एक्बटना को अपनी राजधानी बनाया, दरबार के रीति रिवाज निश्चित किए और राजानुशासन लागू किया। असीरियन सम्राट सारगोन द्वितीय (७२२-७०५ ई० पू०) के एक अभिलेख में कहा गया है कि उसके शासनकाल में मीडिया के बहुत से सरदारों ने उरर्तु नरेश रूसस के साथ मिलकर एक संघ बनाया था। इनमें एक नाम दायक्कु बताया गया है। यही व्यक्ति हेरोडोटस का डीयोकीज रहा होगा। सरगोन ने इजराइल राज्य को पराजित करके बहुत से यहूदियों को भी मीडिया में बसाया था।
हेरोडोटस के अनुसार डीयोकीज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र फरोओर्टीज (फ्रवर्तिश) था। लेकिन असीरियन अभिलेखों में इस समय क्षस्तरित (लगभग ६८०-६५३ ई० पू०) नामक व्यक्ति को मीडों का राजा बताया गया है जिसने ६८० ई० पू० के लगभग असीरियन नरेश एसरहद्दोन के विरुद्ध विद्रोह किया था। उसने अपनी शक्ति उस समय बढ़ा ली होगी जब सारगोन द्वितीय का उत्तराधिकारी सेनाकेरिब एलम, मिस्र और जूडा के साथ युद्धों में फँसा हुआ था। क्षस्तरित अथवा फ्रवर्तिश ने किमरियन और सीथियन जातियों को पराजित किया, उनके साथ मिलकर असीरिया के विरुद्ध एक संघ बनाया और हेरोडोटस के अनुसार, अपने को भली-भाँति शक्तिशाली समझकर निनेवेह पर आक्रमण कर दिया, परंतु पराजित हुआ और मार डाला गया (६५३ ई० पू०)।
क्षस्तरित की मृत्यु के बाद मीडिया २८ वर्ष तक सीथियनों के अधिकार में रहा। उसे सीथियन आधिपत्य से मुक्ति दिलाने और एक विशाल साम्राज्य के रूप में परिणत करने का श्रेय उवक्षत्र (सियकस्रीज) को प्राप्त है। उसने सीथियनों को मीडिया से भगाने के बाद समस्त पश्चिमी ईरान को संगठित किया। कैल्डियन नरेश नेबोपालस्सर के साथ निनेवेह के विरुद्ध संधि की और ६१२ ई० पू० में असीरियन साम्राज्य का सदैव के लिये अंत कर दिया। इस विजय से नेबोपोलस्सर को उत्तर में अशुर तक का प्रदेश और भूमध्यसागरीय तटवर्ती प्रांत मिले और शेष असीरिया, उत्तरी मेसोपोटामिया, आरामीनिया और कप्पेडोशिया उवक्षत्र को। बैबिलोन के साथ मैत्री बढ़ाने के हेतु उवक्षत्र ने अपनी पुत्री का विवाह नेबोपोलस्सर के युवराज नेबूशद्रेज्जर से कर दिया। ५९० ई० पू० के लगभग उसने लीडिया पर आक्रमण किया। पाँच वर्ष तक घोर युद्ध हुआ। अंत में ५८५ ई० पू० में सूर्यग्रहण के दिन नए बैबिलोनियन सम्राट नेबूशद्रेज्जर की मध्यस्थता से दोनों पक्षों में संधि हुई। हैलीज नदी दोनों राज्यों की सीमा निश्चित हुई और लीडियन राजकुमारी का विवाह मीड राजकुमार इश्तुवेगु (अस्त्यागीज) के साथ कर दिया गया। इस प्रकार उवक्षत्र ने न केवल मीडिया को स्वतंत्र किया वरन् असीरियन साम्राज्य का अंत करके प्रथम महान, ईरानी साम्राज्य की स्थापना भी की।
उवक्षत्र के पश्चात् उसका उत्तराधिकारी इश्तुवेगु (५८४-५५० ई० पू०) हुआ। उसके शासन काल में दक्षिणी ईरान में स्थित अंसान प्रांत के शासक प्रथम कंबुजिय ने, जो नाम-मात्र के लिये उसके अधीन था, अपनी शक्ति बढ़ा ली जिससे प्रभावित होकर इश्तुवेगु ने उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। परंतु कंबुजिय के पुत्र कुरुष द्वितीय ने इश्तुवेगु के असंतुष्ट सामंतों का सहयोग पाकर ५५३ ई० पू० में विद्रोह कर दिया और ५५० ई० पू० में मीडिया को अधिकृत कर लिया। टीसियस और हेरोडोटस ने बताया है कि उसने शक्ति से मीडिया को अधिकृत किया था। परंतु हेरोडोटस यह भी कहता है कि उसको बहुत से मीड सरदारों का सहयोग प्राप्त था। हो सकता है, उसको बहुत से मीड सरदारों ने किसी कारणवश इश्तुवेगु से अप्रसन्न होकर उसके दौहित्र कुरुष को राजा बनने के लिये निमंत्रित किया हो। संभवत: इसीलिए यूनानी बहुत समय तक खामशी साम्राज्य को मीड साम्राज्य और कुरुष को मीड राजा मानते रहे। इस सहायता के बदले मे कुरुष ने मीड सरदारों को अपने साम्राज्य में बहुत सम्मान्नपूर्ण स्थान दिया और मीड नगर एक्बटना को अपनी एक राजधानी होने का गौरव भी प्रदान किया।
मीड जाति ईरानी आर्यों की एक शाखा थी। उसका धर्म स्पष्टत: ईरानी आर्यो के धर्म से अभिन्न था। स्ट्रेबो के अनुसार वह 'पर्सियनों', 'एरियनों' और 'सोग्दी' लोगों को बोलियों से सादृश्य रखने वाली बोली बोलती थी। अभी तक मीड भाषा में लिखित कोई अभिलेख नहीं मिला है। इसलिये कुछ विद्वानों का सुझाव है कि मीडों को अपनी भाषा, केवल बोल-चाल की भाषा थीं, लिखित भाषा के रूप में वे असीरियन भाषा का प्रयोग करते थे, उसी प्रकार जैसे अफगानिस्तान में बोलचाल की भाषा पश्तु है और लिखने की भाषा फारसी। अभिलेख अनुपलब्ध होने के कारण मीडों के साहित्य की भी जानकारी नहीं हो पाती। उनके राजनीतिक संगठन के विषय में भी कुछ कहना दुष्कर है। अनुमान किया जाता है कि उन्होंने असीरियन और बैबिलोनियन सम्राटों का अनुकरण करके कुछ राजकीय नियम बनाए थे जिनका अनुसरण कालांतर में ईरान के हखामशी सम्राटों ने किया। हखामशियों ने मीडों की वेशभूषा भी अपनाई थी, जिसका कुछ ज्ञान असीरियन रिलीफ चित्रों में मीड बंदियो के अंकन से होता है। यूनानी साहित्य से ज्ञात होता है कि मीडिया के राजे अपनी विलासिता और वैभव के लिये प्रसिद्ध थे। कला के क्षेत्र में उनकी सफलता का कुछ ज्ञान साकिज से प्राप्त कोष से होता है जिसमें मिली कलाकृतियों पर असीरियन छाप स्पष्ट है। उनकी वास्तुकला का कोई नमूना कुछ मामूली समाधियों को छोड़कर अभी तक नहीं मिला है, परंतु उनकी राजधानी एक्बटना का विवरण हेरोडोटस के ग्रंथ मे मिलता है। यह क्रमश: छोटी होती गई सात प्राचीरों से घिरा था। सातवीं मध्यवर्ती प्राचीर के बीच में राजप्रसाद और कोषागार थे। इनकी दीवारों को विभिन्न रंगों के प्रयोग से सुंदर बनाने की चेष्टा भी की गई थी। हमदन से प्राप्त शेर की एक विशाल परंतु अत्यंत खंडित मूर्ति उनकी स्थापत्य कला के विरल नमूनों में से एक है।
सं० ग्रं० : श्रीराम गोयल: विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ, अध्याय १९-२०। [श्री राम गोयल]