मिश्रबंधु मिश्रबंधु नामधारी तीन सहोदर भाई थे, गणेशबिहारी, श्याम-बिहारी और शुकदेवबिहारी। ग्रंथ ही नहीं एक छंद तक की रचना भी तीनों जुटकर करते थे। इसलिये प्रत्येक की रचनाओं का पार्थक्य करना कठिन है। ये कात्यायन गोत्रीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। 'मुहूर्त चिंतामणि' (ज्योतिष ग्रंथ) के प्रणेता चिंतामणि मिश्र इनके पूर्वज थे। इनके पूर्वजों का वासस्थान भगवंतनगर (जि० हरदोई) था। बाद में वे इंटौजा (जि० लखनऊ) चले आये जहाँ मिश्रबंधुओं का बाल्यकाल बीता। गणेशबिहारी (ज० सं० १९२२) को हिंदी, संस्कृत और फारसी की शिक्षा घर पर ही मिली। दो विवाह हुए। दोनों से दो पुत्र हुए। ये लखनऊ डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के सदस्य और उपाध्यक्ष भी रहे। श्याम बिहार (ज०सं १९३०) को एम० एम० तक की उच्च शिक्षा मिली। ११ वर्ष की उम्र में विवाह हुआ। तीन पुत्र हुए। इन्होंने डिप्टी कलक्टर और डिप्टी कमिश्नर जैसे प्रशासकीय सरकारी पदों पर काम किया। इनका पहला लेख 'सरस्वती भाग' १ में 'हमीर हठ' विषयक समालोचना का निकला। रायबहादुर शुकदेव बिहार (ज० सं० १९३५) को भी बी० ए० तथा वकालत तक की शिक्षा मिली। इन्होंने पहले वकालत की शुरुआत कन्नौज में की, फिर लखनऊ चले आए। तत्पश्चात् वे मुंसिफ, दीवान और सबजज हुए। सभी ने हिंदी स्वाध्याय से ही सीखी। सभी बड़े विद्याव्यसनी, उदार, स्वतंत्रचेता और मिलनसार थे। विलायत भी हो आए थे।
प्रमुख रचनाएँ-लवकुश चरित्र, हिंदी नवरत्न, मिश्रबंधु विनोद (४ भा०), नेत्रोन्मीलन, पूर्वभारत, उत्तर भारत (नाटक) भारतवर्ष का इतिहास (२ भा०), भारत विनय (पद्य,) बूँदी वारीश (पद्य), पुष्पांजलि (गद्य पद्यमय लेख संग्रह), भूषण ग्रंथावली, देव ग्रंथावली, सुर सुधा, जापान, रूस और स्पेन के इतिहास, हिंदी साहित्य का इतिहास, हिंदुइज्म (अंग्रेजी) इत्यादि।
इनमें हिंदी साहित्य के इतिहास और समालोचना की दृष्टि से 'हिंदी नवरत्न' और 'मिश्रबंधु विनोद' का विशिष्ट महत्व है। प्रथम में हिंदी के श्रेष्ठ नौ कवियोंश् तुलसी, सूर, देव, बिहारी, भूषण, केशव, मतिराम, चंदबरदायी, हरिश्चंद को क्रमश: बृहत्त्रयी, मध्यत्रयी और लघुत्रयी में श्रेणीबद्ध कर जीवनी के साथ उनके काव्य का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। दूसरी रचना 'मिश्रबंधु विनोद' में पाँच हजार के लगभग कवियों एवं लेखकों का परिचायत्मक उल्लेख हुआ है। इनकी समीक्षा पद्धति की सर्वप्रमुख विशेषता श्रेणी विभाजन है जिसके मूल में शास्त्रीयतायुक्त काव्योत्कर्ष और तुलना है। दोषों की अपेक्षा गुणों की ही चर्चा अधिक की गई है। इतना होने पर भी इनकी समीक्षा में मार्मिक निरूपण, संतुलन निर्वाह, तटस्थता, विश्लेषण, तर्क, प्रौढ़ विवेचन की कमी दिखाई पड़ती है। [रामफेर त्रिपाटी]