मिल्टन, जान अंग्रेजी के इस प्रसिद्ध कवि का जन्म लंदन में ९ दिसंबर, १६०८ को हुआ था। ये एक समृद्ध लेखक-महाजन के सुपुत्र थे। यह व्यवसाय आधुनिक काल में नष्ट हो गया है परंतु उस समय इस प्रकार के लोग आजकल के बंकवालों तथा वकील इन दोनों का काम करते थे। मिल्टन के पिता साहित्य और संगीत के प्रेमी थे, तथा उनके विचार कट्टरपंथी (प्यूरिटन) थे। मिल्टन ने स्वयं उनके विषय में कहा हैं 'उनके जीवन में स्थिरप्रज्ञता की आश्चर्यजनक झलक थी'।
मिल्टन की शिक्षा लंदन में सेंट पाल पाठशाला में हुई, और वहाँ उन्होंने प्रतिभासंपन्न व्यक्ति तथा कवि के रूप में प्रसिद्धि पाई। १६२५ में उन्होंने कैंब्रिज के क्राइस्ट विद्यालय में प्रवेश किया जहाँ उनका हठी तथा क्रोधी स्वभाव प्रकट हुआ, और आज्ञाभंग के फलस्वरूप एक सत्र के लिये वे निष्कासित कर दिए गए। पुन: प्रवेश होने पर उन्होंने विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम पूरा किया और १६३२ में एम० ए० की पदवी प्राप्त की। उनकी इच्छा धर्मोपदेशक बनने की थी परंतु प्रधान पादरी लाड के निरंकुश शासन के कारण उन्होंने अपनी इच्छा त्याग दी और बकिंगहम शायर स्थित हार्टन नामक छोटे से गाँव में चले गए जहाँ उनके पिता अपना व्यवसाय छोड़कर रहने लगे थे। मिल्टन ने अध्ययन तथा स्वानुशासनश् द्वारा महाकवि बनने के एकमात्र उद्देश्य से हार्टन को ही अपना निवासस्थान बना लिया। उनकी काव्यप्रतिभा विश्वविद्यालय में लिखी गई प्राय: एक दर्ज़न विविध विषयों की कविताओं से सिद्ध हो चुकी थी। इन कविताओं में ओड ऑन क्राइस्टृश नेटिविटी (ईसा मसीह का उत्पत्तिगीत), ऐट ए सालेम म्यूजिक (पवित्र गान के समय), ऐन एपिटाफ आन विलियम शेक्सपियर (शेक्सपियर का समाधिलेख) और ऑन अराइविंग द् एज आफ टृवेंटी थ्री (तेइस वर्ष की उम्र होने पर) ये प्रधान हैं। उन्होंने लैटिन में भी सुंदर कविता लिखी है। उनका भव्य काव्य ओड आन क्राइस्ट्स नैटिविटी (१६२९) बीस वर्ष के युवक के लिये एक अद्भुत सफलता है। इसका नादमाधुर्य, सुंदर उतारचढ़ाव युक्त लय पर आधारित है जिसमें अंत तक कवि की प्रतिभा दृष्टिगोचर होती है। संपूर्ण काव्य एक ऐसी महान् शक्ति को सूचित करता है जो प्रतिबंधशून्य स्वतंत्र शैली का अनुसरण करती है।
हार्टन में उन्होंने 'एल अलेग्रो' (प्रसन्नचित्त मानव) तथा 'इल पेंसेरोसो' (चिंतायुक्त मानव) ये दो कविताएँ १६३२ में प्रकाशित कीं। ये दोनों वर्णनात्मक लघु काव्य हैं जो अष्टाक्षरी दो पंक्तिवाले छंद में लिखे गए हैं तथा जिनमें क्रमश: आनंदित तथा चिंतित मनुष्य के अनुभवों का वर्णन किया गया है। ये दोनों काव्य पांडित्यपूर्ण कल्पना और चतुर काव्यानुकूल मुहावरों से भरे हुए हैं। इनके सामने पहले लिखे हुए, जानसन, लिली तथा फ्लेचर के लघु काव्य साधारण श्रेणी के लगते हैं। अभी भी वे अपनी मौलिकता के विषय में किसी से परास्त नहीं किए जाते। हार्टन में लिखी अन्य कविताएँ 'आर्केडिस', 'कोमस' तथा 'लिसिडास' है। आर्केडिस, जो १६३३ में लिखित एक मूकनाट्य (मास्क) का खंड है, अपने गीतों के लिये विख्यात है। 'कोमस' प्रसिद्ध संगीतशास्त्रज्ञ हेनरी लाज की प्रेरणा से तथा लार्ड ब्रिजवाटर के वैल्स का अध्यक्ष पद ग्रहण करने के उपलक्ष में लिखा गया था तथा लुडलो कैसल में (१६३४) खेला गया था। यह १६३५ में प्रकाशित हुआ और सर्वसाधारण की दृष्टि से अंग्रेजी के मूक नाटकों में श्रेष्ठ समझा जाता है। मिल्टन के काव्यों में यह अत्यंत निर्दोषं काव्य है और इसका 'सद्गुणों का गुणगान' (ए युलजी आफ वर्चू) सार्थक नामकरण किया गया है। कोमस तथा उसके अनुयायी तत्कालीन संभ्रांत लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, सभ्य महिला तथा उसके भाई कट्टरपंथी आदर्श उपस्थित करते हैं जिनमें विचारों की श्रेष्ठता तथा जीवन की पवित्रता का पूर्ण सम्मिश्रण है। शास्त्रीय दृष्टि से, 'कोमस' मिल्टन के तुक शून्य काव्यरचना का प्रथम प्रयत्न है तथा यह कुछ काव्यशरीर की विशेषताओं को छोड़कर 'पैराडाइज लास्ट' से मिलता जुलता है। १६३७ में 'एडवर्ड किंग' नामक मिल्टन के मित्र की मृत्यु हो गई और यही घटना लिसिडास की रचना का कारण बनी। यह एक ग्राम शोकगीत है तथा शेली के 'अडोनेस', 'मैथ्यू आर्नल्ड' के थीसिस इत्यादि सर्वोत्तम अंग्रेजी शोकगीतों के लिये आर्दश हो गया। यह कल्पना की विविधता तथा रचना की एकरूपता में उपरिनिर्दिष्ट दोनों काव्यों से अधिक सुदंर है। अनुप्रास तथा लय की कोमलता को प्रकट करनेवाला ऐसा दूसरा काव्य अंग्रेजी साहित्य में नहीं है। उसी प्रकार 'लिसिडास के' आकार की बहुत कम कविताएँ हैं जिनमें विचार तथा स्वरमार्धुय की दृष्टि से अधिक से अधिक संख्या में समुचित तथा असाधारण शब्दविन्यास किया गया हो। इस काव्य में ऐसा एक भी अंश तथा पंक्ति नहीं होगी जो पूर्ण रूप से काव्यमय न हो। 'लिसिडास' केवल स्वरमार्धुय के लिये ही नहीं परंतु काव्य की सजावट, विशेषणों का उत्तरोत्तर गौरव तथा भावनाओं का ऊँचे दर्जे का गांभीर्य आदि गुणों के लिये भी बेजोड़ है।
१६३८-३९ में उन्होंने छह महीने इटली की यात्रा की जहाँ इटालियन साहित्यकारों ने उनका हृदय से स्वागत किया। इटली से लौटने पर उन्होंने अपनी विधवा बहन के बच्चों की शिक्षा की ओर ध्यान दिया। परंतु इसी समय इंग्लैंड में गृहयुद्ध छिड़ गया और मिल्टन की लेखनी पार्लियामेंट की सहायता के लिये सक्रिय हो उठी क्योंकि वे प्रतिनिधि सभा से अत्यधिक प्रेम रखते थे। उन्होंने अपने जीवनकाल के मध्य के बीस वर्ष तक (१६४०-६०) पच्चीस छोट लेख प्रकाशित किए जिनमें से बीस अंग्रेजी में तथा शेष लैटिन में लिखे। इसके अतिरिक्त बीच बीच में उन्होंने कुछ इटालियन तरीके के सानेट (चतुर्दशपदी) भी प्रकाशित किए जिनमें से कुछ अंग्रेजी में सर्वोत्तम समझे जाते हैं। लघु लेखों में 'एरिओपे जिटिका' नामक लेख (१६४४ ई०) सर्वोत्कृष्ट हैं जिसमें प्रेस स्वातंत्रय के निमित्त आवेगपूर्ण आग्रह है। १६४१ ई० में उन्होंने मेरी नामक सत्रह वर्षीय युवती के साथ विवाह किया। वह युवती रिचर्ड पावेल की ज्येष्ठ कन्या थी। परंतु यह देखकर कि विख्यात परंतु कट्टर धर्मपंथी मिल्टन के साथ जीवनयात्रा अंधकारमय है, विवाह के महीने भर बाद ही वह अपने पिता से मिलने गई और लौटने से इन्कार कर दिया। इसी के बाद मिल्टन ने 'तलाक के सिद्धांत तथा अनुशासन' पर एक पुस्तिका लिखी (१६४३ ई०)। इसके बाद 'मार्टिन व्यूसर का तलाक विषयक निर्णय' प्रकाशित हुआ। १६४५ में उनकी पत्नी लौट आई और तीन पुत्रियों की माँ बनने के बाद १६५२ में मर गई। १६४१ में वे 'कौंसिल आफ स्टेट' के लैटिन सेक्रेटरी बन गए और रेस्टोरेशन (पुन: राजतंत्र स्थापित होने) तक इसी पद पर बने रहे। इस समय उन्होंने कई पुस्तिकाएँ लिखीं और चार्ल्स द्वितीय के लौटने के पूर्व ही 'प्रजातंत्र स्थापित करने के सहज तथा सरल उपाय' शीर्षक पुस्तक प्रकाशित की। अब मिल्टन खतरे के बाहर न थे। राजभक्त उनके विरोध में उत्तेजित हुए। वे पकड़े गए। परंतु जमानत होने के कारण उनके संकटों का अंत हुआ। उन्होंने १६५८ ई० में दुबारा विवाह किया। इस पत्नी की भी मृत्यु के दो वर्ष बाद उन्होंने १६६३ में एलिजाबेथ मिंसल से शादी की।
अब अंध, निर्धन तथा उपेक्षित अवस्था में उन्होंने चिरकाल से अभिलषित महाकाव्य लिखना आरंभ कर दिया। पैराडाइज लास्ट १६५८ ई० शुरू किया गया तथा आब्रे के अनुसार पाँच वर्ष बाद समाप्त हुआ, यद्यपि उसका प्रकाशन १६६७ तक नहीं हुआ। 'पैराडाइज रिगेंड' (पुन: स्वर्गप्राप्ति)१६७१ ई० में प्रकाशित किया गया। इसी समय उनका अंतिम महत्वपूर्ण ग्रंथ 'सैम्सन अगोनिस्टज' नामक ग्रीक आदर्श पर लिखा हुआ नाटक प्रकशित हुआ। परंतु यह रगमंच पर खेलने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया था। मिल्टन की मृत्यु ८ नवंबर, १६७४ को हुई तथा वे क्रिपलगेट के सेंट गाइल्स में दफनाए गए। यहाँ उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाया गया। 'वेस्ट मिंस्टर एबे' में भी उनका एक दूसरा स्मारक विद्यमान है।
उनके जीवन के अंतिम तीन काव्यग्रंथ अंग्रेजी काव्यजगत् के उत्कृष्ट आभूषण हैं। 'पैराडाइज लास्ट' होमर 'व्हर्जिल तथा टैस्सो' के विस्तृत आदर्श पर लिखा हुआ अंग्रेजी भाषा का सर्वश्रेष्ठश् महाकाव्य है, तथा 'पैराडाइज रीगेंड' 'बुक आफ जाब' के संक्षिप्त आदर्श पर लिखा श्रेष्ठ महाकाव्य है। इनमें से दूसरा सीमित तथा गंभीर शैली में लिखा अंग्रेजी काव्यग्रंथों में अद्वितीय है। 'पैराडाइज लास्ट' पूर्ण रूप से प्राचीन ग्रीक महाकाव्यों के स्वरूप का अनुकरण करता है। उसका विषय मानव का पतन है। विचारधारा में वह प्रभावपूर्ण है। वह ऐसे सभी विस्तृत वर्णनों से अधिकाधिक परिष्कृत है जिनको प्राचीन महाकाव्यों के तथा क्रिश्चियन धर्म ग्रंथ के ज्ञान से परिपुष्ट हुई मिल्टन की अनोखी कल्पनाशक्ति प्रकट करती है। तुकरहित छंद की कल्पना नई तथा आश्चर्यजनक है। इसमें कविता पाठ का उतारचढ़ाव, यति लय तथा स्वरमाधुर्य आदि गुण प्रारंभ से अंत तक बिखरे हुए है। 'पैराडाइज रीगेंड' यद्यपि आकार में संकुचित है तथापि उपदेश, नीतिशास्त्र तथा अध्यात्मिकता, इन गुणों के कारण अधिक सुंदर है। 'सैम्सन अगोनिस्टीज' अंग्रेजी काव्यमय नाटकों में जो तीन चार सर्वश्रेष्ठ नाटक हैं उनमें से एक है। शैली में वह कठोर होने पर भी भावपूर्ण है। वह मिल्टन की ही जीवनकथा का नाटकीय प्रमाणपत्र है। स्थान स्थान पर मिल्टन की हठी आत्मा करुणार्द तथा परलोकश्रद्धा से ऊँची हो उठती है। उसे सहगीत (कोरस) एक अनोखी सफलता दिखाते हैं।
मिल्टन के अनेक जीवनचरित्र प्रकाशित हुए हैं, परंतु मैसन द्वारा छह भागों में लिखी जान मिल्टन की जीवनी, जो १८५९-८० में प्रकाशित हुई, सर्वांगसुंदर है। मैसन ने मिल्टन के ग्रंथ भी प्रकाशित किए हैं (दूसरा संस्करण १८९०)।
सं० ग्रं०- दि वर्क्स ऑव जॉन मिल्टन इन वर्स ऐंड प्रोज, संपादक जे० मिटफोर्ड, आठ भागों में। पोइटिकल वर्क्स, संपादक, सर ऐच० न्यूबोल्ट। मिल्टन, लेखक एम० पेटिसन। लाइफ ऑव मिल्टन लेखक आर० गारनट। दि एज ऑव मिल्टन, लेखक जे० एच० मास्टमैन। मिल्टन, लेखक सर वाल्टर रैले। मिल्टन, लेखक जे० पी० बेली। मिल्टन, मैन ऐंड थिंकर, लेखक डी० सौरट। मिल्टन, लेखक ई० एम० डब्लू० टिलियार्ड। मिल्टन, लेखक रोज मैकाले।
[ब्रजमोहन लाल साहनी]