मिंटो, गिल्बर्ट इलियट लार्ड (१७५१-१८१४), इंगलैंड में ह्विग दल का सदस्य था। उसने वारेन हेस्टिंग्ज के विरुद्ध मुकदमा तैयार करने में बर्क को मदद दी तथा इंपे के विरुद्ध पार्लियामेंट में अभियोग लगाया। १८०६ में वह वोर्ड ऑव कंट्रोल का अध्यक्ष बना। १८०७ से १८१३ तक वह भारत का गवर्नर-जनरल रहा। उसने ब्रिटिश हितों को बढ़ाया तथा सुरक्षित बनाया।
स्थलमार्ग से फ्रांसीसी आक्रमण की संभावना को दूर करने के लिये मिंटो ने पंजाब, सिंध और अफगानिस्तान में राजदूत भेजकर १८०९ में उनके साथ संधियों द्वारा मैत्री संबंध स्थापित किए। ईरान के साथ ब्रिटेन के राजदूत ने संधि की। वहाँ कंपनी का राजदूत मैलकम असफल रहा। जलमार्ग की ओर से ब्रिटिश भारत को सुरक्षित रखने के लिये मिंटों ने अरब सागर में फ्रांसीसी टापुओं पर अधिकार कर लिया तथा फारस की खाड़ी पर ब्रिटिश प्रभाव स्थापित किया। पूर्व में जावा और मसाले के द्वीप ले लिये। इससे सारे हिंद महासागर पर ब्रिटिश प्रभाव स्थापित हो गया तथा प्रशांत महासागर के प्रवेशद्वार पर अधिकार हो गया।
आंतरिक सुरक्षा के लिये मिंटो ने रणजीत सिंह को सतलज से पूर्व की ओर बढ़ने से रोका, सरहिंद के राज्यों को संरक्षण दिया, ट्रावनकोर के विद्रोह को दबाया, बुंदेला विद्रोहियों से कालिंजर और अजयगढ़ के किले छीन लिए, हरियाना पर अधिकार कर लिया, मद्रास में अंग्रेज अफसरों के विद्रोह को दबाया तथा देशी राज्यों में आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप किया।
मिंटो ने व्यापार और शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। १८१३ का चार्टर ऐक्ट उसी के समय में पारित हुआ। उसी वर्ष वह मिंटो का प्रथम अर्ल बना। १८१४ में इंग्लैंड में मृत्यु होने पर उसे वेस्टमिंस्टर एवी में स्थान मिला। [हीरालाल गुप्त]